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गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा से लोगों को क्या फल मिलता है, जानें कब है गोर्वधन पूजा का मुहूर्त

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की विधिपूर्वक पूजा करने का विधान है। साथ ही श्रीकृष्ण को 56 तरह के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि गोवर्धन पूजा के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी होता है।

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Mukesh Pandit
Goverdhan Puja 2025

Govardhan Puja 2025:सनातन धर्म के लोगों के लिए गोवर्धन पूजा के पर्व का खास महत्व है। ये त्योहार दिवाली से अगले दिन और भाई दूज से एक दिन पहले कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की विधिपूर्वक पूजा करने का विधान है। साथ ही श्रीकृष्ण को 56 तरह के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि गोवर्धन पूजा के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी होता है, नहीं तो साधक को पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है। जानते हैं गोवर्धन पूजा से जुड़े खास नियमों के बारे में।

गोवर्धन पूजा कब है?

इस वर्ष 2025 में गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर, बुधवार के दिन मनाई जाएगी।गोवर्धन पूजा  और अन्नकूट महोत्सव की पूजा विधि-विधान से करने वाले को लम्बी आयु, धन-वैभव, सम्पदा आदि प्राप्त होती है। यह पर्व मनुष्य की दरिद्रता को मिटाता और उसके जीवन को सुखी बना देता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दुखी रहने वाला व्यक्ति पूरे वर्ष दुखी ही रहता है। इसलिए सभी मनुष्यों से इस दिन सुखी रहने को कहा जाता है। गोवर्धन पूजा से घर-परिवार में धन-धान्य की वृद्धि होती है तथा गौरस में भी बढ़ोतरी होती है।

गोवर्धन की कथा 

द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्णके कहने पर ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत  की पूजा शुरू की थी। इससे इद्र देव नाराज हो गए और उन्होंने अपना कोप बरसाते हुए ब्रज  में मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। इसे देख श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठा लिया। इंद्र देव  लगातार सात दिन वर्षा करते रहे। इसके बाद जब उन्हें ज्ञात हुआ कि वह विष्णु भगवान के अवतार श्रीकृष्ण से युद्ध कर रहे हैं तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और क्षमा मांगते हुए उनकी पूजा अर्चना की। उसके बाद से शुरू हुई गोवर्धन पूजा की परम्परा आज तक चली आ रही है। 

किस प्रकार करें गोवर्धन पूजा 

गोवर्धन पूजा के दिन सर्वप्रथम प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान करने के पश्चात गऊ माता व बछड़े का नहला-धुला कर उनकी पूजा करें। उन्हें फूल माला पहनायें, गुड़ व चावल खिलायें तथा आरती करें। इसके बाद घर के आंगन को गाय के गोबर से लीप कर शुद्ध कर लें। इसके बाद उसमें गिरिराज गोवर्धन पर्वत यानी लेटे हुए व्यक्ति के आकार की प्रतिमा गोबर से बनाएं। इस प्रतिमा के आस पास गाय-बछड़े, गोप-गोपिकाओं की प्रतिमांएं भी गोबर से बनाएं। इनके मध्य में श्रीकृष्ण की प्रतिमा को रखें। इसके  बाद चंदन, रोली, अक्षत, धूप-दीप, खील-बताशा आदि से पूजा करें। पूजा के बाद अन्नकूट का भोग लगाएं

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गोवर्धन परिक्रमा का महत्व

गोवर्धन पर्वत को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना गया है। भागवत पुराण में कहा गया है कि “गोवर्धनः स्वयं विष्णुः, शैलो देवमयो हि सः।” अर्थात गोवर्धन पर्वत स्वयं भगवान विष्णु का अवतार है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का अर्थ केवल एक पर्वत के चारों ओर घूमना नहीं, बल्कि यह भक्ति, श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक है। यह परिक्रमा ब्रजवासियों और भक्तों के लिए आत्मशुद्धि और भगवान के प्रति समर्पण का मार्ग है।

कैसे की जाती है गोवर्धन परिक्रमा 

वास्तविक गोवर्धन पर्वत मथुरा जिले के गोवर्धन कस्बे में स्थित है। यह परिक्रमा मार्ग लगभग 21 किलोमीटर लंबा है। भक्तजन नंगे पांव यह परिक्रमा करते हैं। कुछ भक्त तो पूरी परिक्रमा दंडवत प्रणाम करते हुए करते हैं, जिसे ‘साष्टांग परिक्रमा’ कहा जाता है। परिक्रमा के दौरान भक्त “जय गोवर्धनधारी श्रीकृष्ण की जय!” के नारे लगाते हैं और पर्वत की मिट्टी को मस्तक से लगाते हैं।

गोवर्धन परिक्रमा से मिलने वाले फल
शास्त्रों में गोवर्धन परिक्रमा से मिलने वाले कई प्रकार के आध्यात्मिक और सांसारिक फल बताए गए हैं।

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अन्न और धन की प्राप्ति

कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करता है, उसके जीवन में कभी अन्न और धन की कमी नहीं रहती। क्योंकि यह पर्वत अन्न, जल और गौ-संपदा का प्रतीक है। “गोवर्धनं नमस्यामि, देवदेवस्वरूपिणम्। अन्नदं धनदं चैव सर्वसंपत्प्रदायकम्॥”गोवर्धन परिक्रमा करते समय भक्त अपने मन की सभी नकारात्मकता, अहंकार और मोह को त्यागता है। इससे मन शुद्ध होता है और व्यक्ति में आध्यात्मिक आत्मबल जाग्रत होता है।विष्णु पुराण में उल्लेख है कि जो दंपत्ति साथ में गोवर्धन परिक्रमा करते हैं, उन्हें दीर्घायु संतान और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।

गोवर्धन परिक्रमा की धार्मिक कथा

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का उल्लेख कई पौराणिक कथाओं में मिलता है। एक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की, तो सबने सात दिनों तक उसी पर्वत के नीचे रहकर उनकी स्तुति की। तब भगवान ने कहा कि जो भी मेरे इस पर्वत की परिक्रमा करेगा, वह मेरे समान पुण्य का भागी होगा। एक अन्य कथा के अनुसार, जब इंद्र ने अपनी गलती का प्रायश्चित किया, तो उसने स्वयं गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की। उसने कहा कि हे गोवर्धन! तुमने न केवल ब्रज की रक्षा की, बल्कि मेरे अहंकार का नाश भी किया। इसलिए परिक्रमा को अहंकार-त्याग का प्रतीक भी माना गया है। : Hindu festivals | hindu festival | Hindu festivals 2025 | Hindu festivals India

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