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नारद जयंती हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व देवर्षि नारद मुनि के जन्मोत्सव के रूप में उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। नारद मुनि को भगवान विष्णु के परम भक्त, देवताओं के संदेशवाहक और विश्व के प्रथम पत्रकार के रूप में जाना जाता है। उनकी बुद्धिमत्ता, संगीत कला और भक्ति भावना उन्हें विशेष स्थान दिलाती है। इस दिन विधिवत पूजा, मंत्र जाप और दान-पुण्य करने से भक्तों को नारद मुनि और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। यह पर्व हमें नारद मुनि के आदर्शों को अपनाने और जीवन में सत्य, दया और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। नारद जयंती 2025 में 13 मई को मनाई जाएगी। इस पावन अवसर पर भक्ति और श्रद्धा के साथ पूजा करें और अपने जीवन को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाएं।
नारद मुनि का परिचय
नारद मुनि को हिंदू शास्त्रों में ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में से छठा पुत्र माना जाता है। उन्होंने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त बने। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी के श्राप के कारण उन्हें एक स्थान पर स्थिर न रहकर सतत भ्रमण करने का आदेश मिला। इसीलिए वे नारायण-नारायण का जाप करते हुए तीनों लोकों—स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल—में विचरण करते हैं। नारद मुनि ने भक्ति सूत्र की रचना की, जो भक्ति मार्ग के लिए मार्गदर्शक ग्रंथ है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है, देवर्षीणाम् च नारद:, अर्थात् देवताओं में मैं नारद हूं, जो उनकी महत्ता को दर्शाता है। hindu festival | hindu bhagwa | bhagwa Hindutva | Bengal Hindu Attacks | hindu
नारद जयंती का महत्व
नारद जयंती का महत्व कई स्तरों पर है। यह पर्व ज्ञान, संगीत, संवाद और भक्ति का प्रतीक है। नारद मुनि को देवताओं और राक्षसों के बीच संवाद का सेतु स्थापित करने वाला माना जाता है। वे सूचनाओं को एक लोक से दूसरे लोक तक पहुंचाते थे, जिसके कारण उन्हें प्रथम पत्रकार की उपाधि दी गई। यह पर्व पत्रकारिता, संगीत और शिक्षा से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि इस दिन नारद मुनि की पूजा करने से बुद्धि, विवेक और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। नारद जयंती पर दान-पुण्य और समाजसेवा का विशेष महत्व है, जो सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है। यह दिन भक्तों को नारद मुनि के आदर्शों—ईमानदारी, दया और ज्ञान की खोज—का अनुसरण करने की प्रेरणा देता है।
नारद जयंती की पूजा विधि
नारद जयंती की पूजा विधि सरल और भक्ति से परिपूर्ण होती है। निम्नलिखित चरणों का पालन कर इस पर्व को विधिवत मनाया जा सकता है:
प्रात:काल स्नान: प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें।
पूजा स्थल की तैयारी: एक स्वच्छ चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। उस पर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और देवर्षि नारद की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
दीप प्रज्वलन: घी का दीपक जलाएं और धूपबत्ती प्रज्वलित करें। पूजा स्थल को फूलों और रंगोली से सजाएं।
आह्वान और संकल्प: भगवान विष्णु और नारद मुनि का ध्यान करें। हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर पूजा का संकल्प लें।
अर्पण: भगवान विष्णु को तुलसी पत्र, फूल, फल, मिठाई और पंचामृत अर्पित करें। नारद मुनि को सुगंधित जल और फूल चढ़ाएं।
मंत्र जाप और पाठ
विष्णु मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” (108 बार)
नारद मंत्र: “ॐ नारदाय नम:” (108 बार)
विष्णु सहस्रनाम या श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करें।
आरती: भगवान विष्णु और नारद मुनि की आरती करें। इसके बाद प्रसाद वितरण करें।
दान-पुण्य: पूजा के अंत में ब्राह्मणों, साधुओं या जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या दक्षिणा दान करें। शंख दान का विशेष महत्व है।
विशेष मंत्र जाप
नारद जयंती पर मंत्र जाप का विशेष महत्व है। निम्नलिखित मंत्रों का जाप करने से भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है:
नारायण मंत्र: “नारायण नारायण” – नारद मुनि के प्रिय मंत्र का जाप करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
विष्णु मंत्र: “ॐ नमो नारायणाय” – इस मंत्र का 108 बार जाप करने से सभी दुख दूर होते हैं।
भक्ति सूत्र मंत्र: नारद मुनि के भक्ति सूत्र से प्रेरित होकर “ॐ भक्तियोगाय नम:” का जाप करें।
संगीत मंत्र: संगीत से जुड़े लोग “ॐ वीणाधराय नम:” का जाप करें, क्योंकि नारद मुनि वीणा वादन में निपुण थे।
नारद जयंती के विशेष उपाय
नारद कुंड स्नान: मान्यता है कि ब्रज मंडल के नारद कुंड में स्नान करने से बुद्धि और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
बांसुरी अर्पण: भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर में बांसुरी चढ़ाने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।
संगीत उपकरण पूजा: संगीत से जुड़े लोग इस दिन अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करें, इससे कला में प्रगति होती है।
समाजसेवा: जरूरतमंदों को भोजन और कपड़े दान करें, इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
नारद जयंती का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
नारद जयंती हमें संवाद की कला, भक्ति और ज्ञान के महत्व को सिखाती है। नारद मुनि का जीवन हमें प्रेरणा देता है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलकर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। यह पर्व पत्रकारों, संगीतकारों और शिक्षकों के लिए विशेष रूप से प्रेरणादायक है, क्योंकि नारद मुनि इन क्षेत्रों के प्रतीक हैं। सामाजिक दृष्टिकोण से, यह पर्व दान और सेवा के माध्यम से समाज में सकारात्मकता फैलाने का अवसर प्रदान करता है।