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बुधाष्टमी व्रत एक पवित्र और शक्तिशाली व्रत है, जो हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। यह व्रत भगवान गणेश और भगवान बुध की आराधना और पूजा के लिए मनाया जाता है, जो हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता का प्रतीक हैं। बुधाष्टमी व्रत एक ऐसा व्रत है जो हमें अपने जीवन में आध्यात्मिक और धार्मिक ज्ञान को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
अपने जीवन में शुभता और समृद्धि को बढ़ाएं
यह व्रत हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने जीवन में शुभता और समृद्धि को बढ़ा सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। तो आइए, बुधाष्टमी व्रत के बारे में विस्तार से जानते हैं और इसके महत्व को समझते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बुधाष्टमी व्रत क्या है? बुधाष्टमी व्रत कब है?, बुधाष्टमी व्रत का महत्व क्या है?, बुधाष्टमी की पूजा विधि क्या है?, बुधाष्टमी व्रत कथा क्या है? और इस व्रत को कैसे मनाया जाता है? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए, इस लेख में हम इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे
बुध अष्टमी व्रत क्या है?
बुध अष्टमी व्रत का पालन प्रत्येक उस अष्टमी तिथि पर किया जाता है, जो बुधवार के दिन पड़ती है। इस पावन अवसर पर भगवान गणेश और बुध ग्रह की आराधना की जाती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, धन-धान्य और संतान सुख की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत साधकों को शुभ फल प्रदान करता है और उनके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
बुध अष्टमी व्रत कब है?
साल 2025 में जुलाई माह में बुद्धअष्टमी व्रत 2(Budh Ashtami Vrat) जुलाई, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन मासिक दुर्गाष्टमी और भीष्म अष्टमी भी पड़ रही है। बुध अष्टमी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और व्रत एवं पूजा का संकल्प लें। मन में भगवान गणेश और बुध ग्रह का ध्यान करें और शुभ फल प्राप्ति की प्रार्थना करें।
व्रत और उपवास
इस दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है। भक्त निर्जला या फलाहार उपवास रख सकते हैं। पूरे दिन सात्त्विकता का पालन करें और संयमित जीवनशैली अपनाएं। संध्या के समय पूजा-अर्चना के बाद व्रत का पारण किया जाता है। पूजा में भगवान गणेश और बुध ग्रह का ध्यान करें। गणेश जी को दूर्वा, मोदक और पीले फूल अर्पित करें। बुध ग्रह को प्रसन्न करने के लिए हरे रंग के वस्त्र, हरी मूंग और तुलसी चढ़ाएं और उनकी कृपा प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।
विशेष मंत्रों का जाप
इस दिन “ॐ बुं बुधाय नमः” और “ॐ गण गणपतये नमः” मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। कम से कम 108 बार मंत्रों का जाप करें, जिससे बुध ग्रह की कृपा बनी रहे और जीवन में सुख-समृद्धि आए। बुध अष्टमी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करना शुभ माना जाता है। इसके बाद हवन किया जाता है, जिसमें गाय के घी, काले तिल और हवन सामग्री अर्पित कर विशेष आहुति दी जाती है, जिससे ग्रह दोषों का निवारण होता है। व्रत के समापन पर हरी वस्तुएं जैसे हरी मूंग, हरे वस्त्र और धन का दान करें। ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराएं और आशीर्वाद प्राप्त करें। इससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
बुध अष्टमी व्रत का महत्व क्या है?
बुधाष्टमी व्रत बुध ग्रह के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए किया जाता है। यह व्रत बुध के शुभ प्रभाव को बढ़ाता है और व्यक्ति की समृद्धि व सुख में वृद्धि करता है। इस व्रत से व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती है और उसका मन शांत रहता है। यह व्रत मानसिक तनाव को कम करता है और जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। बुध ग्रह व्यापार, संचार, और नौकरी से संबंधित होता है। बुधाष्टमी व्रत करने से व्यापारी और नौकरी पेशा लोग अपने क्षेत्र में सफलता और समृद्धि प्राप्त करते हैं।
ज्ञान व बुद्धिमत्ता में वृद्धि: बुध ग्रह बुद्धि, ज्ञान और शिक्षा का कारक है। इस व्रत से विद्यार्थी और शोधकर्ता अपनी बुद्धिमत्ता में वृद्धि पाते हैं और अध्ययन में सफलता प्राप्त करते हैं। संतान सुख और संतान के लिए कल्याण: यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विशेष रूप से उन दंपत्तियों के लिए लाभकारी है, जो संतान प्राप्ति की कामना करते हैं।