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हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चंद्र ग्रहण श्राद्ध पक्ष के दौरान पड़ रहा है, जो पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस वर्ष 7 सितंबर को भारत समेत विश्व के कई हिस्सों में चंद्र ग्रहण होने वाला है। यह ग्रहण पितृ पक्ष की शुरुआत से मेल खा रहा है, जिससे इसका धार्मिक महत्व और बढ़ जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से चंद्र ग्रहण चंद्रमा पर सूर्य और पृथ्वी के बीच आने से होता है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं में इसे पापों के नाश और पुण्य अर्जन का अवसर माना जाता है। इस ग्रहण के दौरान स्नान-दान का सटीक समय क्या है, पूजा-पाठ कब तक किया जा सकता है और इनसे जुड़ी परंपराएं क्या हैं।
चंद्र ग्रहण का समय और प्रभाव
इस वर्ष का यह चंद्र ग्रहण 7 सितंबर को रात 8:05 बजे से शुरू होकर 8 सितंबर को सुबह 1:20 बजे तक चलेगा। पूर्ण ग्रहण का चरम काल रात 11:42 बजे पर होगा, जब चंद्रमा पूरी तरह लाल रंग का दिखाई देगा, जिसे 'रक्त चंद्र ग्रहण' भी कहा जाता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में यह ग्रहण पूर्ण रूप से दृश्यमान होगा, खासकर उत्तर भारत, पूर्वी क्षेत्रों और दक्षिणी राज्यों में। हालांकि, मौसम की स्थिति के कारण कुछ जगहों पर बादल छिपा सकते हैं। वैज्ञानिक रूप से, यह ग्रहण चंद्रमा के वायुमंडल में प्रवेश करने से होने वाली किरणों के अपवर्तन के कारण होता है, लेकिन धार्मिक रूप से इसे ग्रहों की स्थिति से जोड़ा जाता है। इस दौरान सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद होने के कारण, सूतक का प्रभाव विशेष रूप से रात्रि पूजा पर पड़ता है।
स्नान-दान का समय
चंद्र ग्रहण के दौरान स्नान-दान को अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है, क्योंकि यह ग्रहण पितृ पक्ष के ठीक पहले आ रहा है। शास्त्रों के अनुसार, ग्रहण काल में किया गया स्नान पितरों को तृप्त करता है और वंश वृद्धि का वरदान देता है। लेकिन स्नान-दान का समय ग्रहण के सूतक से जुड़ा होता है। ग्रहण से ठीक पहले यानी 7 सितंबर को शाम 5:30 बजे से रात 8:05 बजे तक स्नान किया जा सकता है। यदि आप नदी, तालाब या पवित्र जलाशय के पास रहते हैं, तो गंगा स्नान या तीर्थ स्नान का विशेष फल मिलेगा।
स्नान के दौरान तिल, काले तिल या गोमूत्र मिलाकर स्नान करने से ग्रह दोष नष्ट होते हैं। ग्रहण के बाद, यानी 8 सितंबर को सुबह 1:20 बजे के बाद स्नान का समय समाप्त हो जाता है, लेकिन यदि ग्रहण रात्रि में समाप्त होता है, तो अगली सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर लेना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्नान से चंद्रमा की कमजोरी दूर होती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
दान का उचित समय
दान ग्रहण के स्पर्श काल यानी रात 8:05 बजे से मध्य काल- रात 11:42 बजे तक सबसे उत्तम है। इस दौरान दान करने से पितृ ऋण चुकता होता है। इस दौरान काले तिल, जौ, चावल, दूध, फल, वस्त्र या गौ दान विशेष फलदायी है। पितृ पक्ष को ध्यान में रखते हुए, ब्राह्मणों को भोजन दान या पिंड दान करना चाहिए। यदि संभव हो तो ग्रहण के दौरान ही दान करें, लेकिन सूतक के कारण घर से बाहर दान बेहतर है। दान का समय ग्रहण समाप्ति- सुबह 1:20 बजे तक विस्तारित है, लेकिन रात्रि के बाद सुबह 6 बजे तक पूरा कर लें। ध्यान दें, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को ग्रहण काल में स्नान-दान से बचना चाहिए, क्योंकि सूतक प्रभाव पड़ता है।
पूजा-पाठ कब तक और कैसे करें
चंद्र ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ ग्रह निवारण और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। हालांकि, सूतक के कारण रात्रि पूजा पर प्रतिबंध है, लेकिन ग्रहण से पहले और बाद में पूजा संभव है। शास्त्रों में कहा गया है कि ग्रहण काल में जप, ध्यान और मंत्रोच्चार से पाप नष्ट होते हैं।
ग्रहण प्रारंभ से पहले यानी 7 सितंबर को शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक तैयारी करें। मुख्य पूजा ग्रहण के मध्य काल- रात 11:42 बजे के आसपास में की जा सकती है, लेकिन केवल यदि आप सूतक का पालन कर रहे हों। ग्रहण समाप्ति के बाद 8 सितंबर को सुबह 1:30 बजे से सुबह 7 बजे तक पूजा का समय है। इस दौरान चंद्रमा को अर्घ्य दें और महामृत्युंजय मंत्र या चंद्र स्तोत्र का पाठ करें। सुबह 7 बजे के बाद सामान्य पूजा जारी रखें, लेकिन ग्रहण से जुड़ी विशेष पूजा सुबह 9 बजे तक ही सीमित रखें। : hindu | hindu god | hindu guru | hinduism | Chandra Grahan news