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धर्म: पूजा का पर्व सूर्य देव और छठी माई की उपासना के लिए समर्पित है। यह बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में व्रतधारी 36 घंटे का कठिन उपवास रखते हैं और सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पूरा करते हैं। इस पूजा में हर वस्तु का अपना महत्व होता है, चाहे वह सूपा हो, फल हो या पूजा सामग्री। खास तौर पर सूपा (बांस या पीतल का) अर्घ्य देने के लिए अनिवार्य माना गया है। लेकिन कई बार भक्तों के मन में यह सवाल उठता है कि कौन सा सूपा ज्यादा शुभ होता है — बांस का या पीतल का?
बांस का सूपा– शुद्धता और दीर्घायु का प्रतीक
बांस को पवित्र और शुभ माना गया है। इसे आयु, स्थिरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि बांस के सूपा से सूर्य देव को अर्घ्य देने पर संतान की आयु लंबी होती है और घर में शुद्धता बनी रहती है। इसलिए पारंपरिक रूप से बांस का सूपा अधिक शुभ माना गया है।
पीतल का सूपा– श्रद्धा और समृद्धि का प्रतीक
पीतल का रंग सूर्य के तेज और ऊर्जा का प्रतीक है। इसलिए पीतल का सूपा भी पूजा में खास स्थान रखता है। कहा जाता है कि पीतल के सूपा से अर्घ्य देने पर सूर्य देव विशेष कृपा करते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है। पीतल के सूपा में रखे फल और मिठाइयों को अर्पित करने से व्रति को आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आस्था और परंपरा का संगम
दोनों ही सूपे बांस और पीतल शुभ माने जाते हैं। बांस शुद्धता और नैतिकता का प्रतीक है, जबकि पीतल समृद्धि और प्रकाश का। इसलिए, श्रद्धा के अनुसार कोई भी सूपा इस्तेमाल किया जा सकता है।
छठ का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
किवदंतियों के अनुसार, दानवीर कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे रोज़ नदी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते थे। माना जाता है कि छठ पूजा की परंपरा उन्हीं से प्रेरित है। इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने भी सूर्य देव की आराधना करते हुए छठ पूजा की थी। ‘सप्त ऋषियों’ और उनकी पत्नियों ने भी सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
सूर्य उपासना का संदेश
सूर्य को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना गया है। छठ पूजा के माध्यम से भक्त सूर्य से स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु की कामना करते हैं। इस दौरान रखा गया 36 घंटे का उपवास शरीर और मन की शुद्धता का प्रतीक माना जाता है — जो छठ पर्व की आत्मा
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