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दर्श अमावस्या : परिवारवालों को आशीर्वाद देने के लिए खुद धरती पर आते हैं पूर्वज, जानिए पूजा विधि

आषाढ़ मास की अमावस्या को विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह वर्षा ऋतु के प्रारंभ का संकेत देती है और पितृ तर्पण, व्रत, साधना एवं दान के लिए शुभ मानी जाती है।

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Mukesh Pandit
Darsh Amavasya
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आषाढ़ मास की अमावस्या को विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह वर्षा ऋतु के प्रारंभ का संकेत देती है और पितृ तर्पण, व्रत, साधना एवं दान के लिए शुभ मानी जाती है। इस दिन गंगा स्नान, पीपल पूजन और श्राद्धकर्म करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।

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हर महीने अमावस्या आती है, जिस दिन देवी-देवताओं की पूजा करना शुभ माना जाता है। मई माह में दर्श अमावस्या मनाई जाएगी। वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ महीने में आने वाली कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दर्श अमावस्या मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन अपने परिवारवालों को आशीर्वाद देने के लिए पूर्वज खुद धरती पर आते हैं। इसलिए इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है। साथ ही भगवान शिव और चंद्र देव की आराधना की जाती है। 

 पुराणों में 'अन्वाधान व्रत' का उल्लेख 

पंचांग के अनुसार, दर्श अमावस्या का शुभ मुहूर्त 24 जून की शाम 06 बजकर 59 मिनट से आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 25 जून को दोपहर 04 बजे होगा। ऐसे में आषाढ़ दर्श अमावस्या का पर्व 25 जून को मनाया जाएगा। पुराणों में 'अन्वाधान व्रत' का उल्लेख है। यह व्रत मुख्य रूप से वैष्णव संप्रदाय में अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अन्वाधान का अर्थ है, हवन के बाद अग्नि को प्रज्वलित रखने के लिए उसमें ईंधन जोड़ना। यह व्रत भगवान विष्णु और अग्नि की पूजा से संबंधित है।

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धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण

आषाढ़ मास की अमावस्या को विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह वर्षा ऋतु के प्रारंभ का संकेत देती है और पितृ तर्पण, व्रत, साधना एवं दान के लिए शुभ मानी जाती है। इस दिन गंगा स्नान, पीपल पूजन और श्राद्धकर्म करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।उपाय के रूप में इस दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करना, पीपल के वृक्ष पर कच्चा दूध और काला तिल चढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही कौओं, गायों और कुत्तों को भोजन कराने का भी महत्व पता चलता है, जिससे पितृ दोष शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

यह दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित

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आषाढ़ अमावस्या का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत विशेष है। यह दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन पितृ तर्पण और श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। यह तिथि पितृ दोष निवारण के लिए भी प्रभावी मानी जाती है।इसके अतिरिक्त, आषाढ़ अमावस्या आध्यात्मिक साधना के लिए भी उपयुक्त है। इस दिन की गई पूजा, जप, और दान से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मकता का संचार होता है। यह दिन ग्रह दोषों को शांत करने और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। आषाढ़ अमावस्या का संबंध प्रकृति से भी है, क्योंकि यह मानसून के आगमन का समय होता है। इस दिन जल और प्रकृति की पूजा भी की जाती है, जो पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है। इस प्रकार, यह तिथि धार्मिक, सामाजिक, और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

पूजा की विधि

प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। इस दिन पितृ तर्पण का विशेष महत्व है। एक तांबे या पीतल के लोटे में जल, दूध, तिल, और कुशा मिलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का तर्पण करें। "ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः" मंत्र का जाप करें। भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। एक शिवलिंग स्थापित करें, दूध, दही, शहद, और गंगाजल से अभिषेक करें। बिल्वपत्र, धतूरा, और फूल अर्पित करें।  इस दिन गरीबों, ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को दान देना शुभ माना जाता है। अन्न, वस्त्र, या धन का दान करें। तिल, जौ, और काले कपड़े का दान पितृ दोष निवारण के लिए विशेष रूप से किया जाता है
व्रत और उपवास: कुछ लोग इस दिन उपवास रखते हैं। उपवास में फल, दूध, और सात्विक भोजन ग्रहण किया जा सकता है।
मंत्र जाप और ध्यान: "ॐ नमः शिवाय" या गायत्री मंत्र का जाप करें। ध्यान और प्राणायाम से मन को शांत रखें।

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