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भारत त्योहारों की पावन भूमिहै और हर पर्व का अपना विशिष्ट महत्व है। दीपावली से पहले आने वाला धनतेरस भी ऐसा ही एक पर्व है, जिसका इंतजार पूरे देश में बड़ी उत्सुकता से किया जाता है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए धनतेरस को उनके प्रकट्योत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इसी दिन देवी लक्ष्मी, जो धन-संपत्ति और समृद्धि की देवी हैं, तथा कुबेर, जो धन के देवता माने जाते हैं, इनकी भी आराधना का विधान है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व लोगों के जीवन में समृद्धि, सुख और स्वास्थ्य का संदेश लेकर आता है।
पूजन संबंधी धार्मिक मान्यता
धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा आरोग्य और लंबी उम्र के लिए की जाती है, क्योंकि इन्हें आयुर्वेद और चिकित्सा का देवता माना जाता है। माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा करने से घर में धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इस दिन खरीदी गई वस्तुओं (सोना, चांदी, बर्तन आदि) में कई गुना वृद्धि होने की मान्यता भी है, जिससे शुभ वस्तुओं की खरीद विशेष रूप से शुभ मानी जाती है।
धनतेरस पूजा का शुभ समय
धनतेरस तिथि आरंभ: 18 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:18 बजे से 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 01:51 बजे तक, पूजन का शुभ मुहूर्त: शाम 07:16 बजे से रात 08:20 बजे तक (प्रदोष काल), प्रदोष काल: शाम 05:48 बजे से रात 08:19 बजे तक। वृषभ काल: शाम 07:15 बजे से रात 09:11 बजे तक. यम दीपदान का समय: शाम 05:48 बजे से रात 08:20 बजे तक (घर के बाहर दक्षिण दिशा में दीपक जलाएं)।
भगवान धन्वंतरि का पूजन
पौराणिक व धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब चौदह रत्न निकले, तो उनके साथ भगवान धन्वंतरि भी प्रकट हुए। वे अपने हाथ में अमृत कलश और दिव्य औषधियाँ लेकर समुद्र से निकले थे। भगवान विष्णु का अवतार माने जाने वाले धन्वंतरि को आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान का देवता माना जाता है। इसलिए धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा करने का विधान है। भक्त उनसे निरोगी काया और लंबी आयु की कामना करते हैं।
मां लक्ष्मी और धन के प्रतीक का महत्व
धनतेरस का संबंध माता लक्ष्मी से भी जोड़ा जाता है। इस दिन घर में नए बर्तन और आभूषण लाना शुभ माना जाता है। विश्वास है कि इससे घर में लक्ष्मी का वास होता है और परिवार में धन-धान्य की कमी नहीं रहती। धार्मिक परंपरा के अनुसार इस दिन खरीदी गई वस्तु कभी नष्ट नहीं होती बल्कि उसका फल दीर्घकाल तक मिलता है। यही वजह है कि लोग इस दिन धातु के बर्तन, आभूषण, सिक्के और कीमती सामान खरीदना शुभ मानते हैं।
यम की पूजा का भी विधान
धनतेरस पर केवल धन्वंतरि और लक्ष्मी जी की ही नहीं, बल्कि यमराज की पूजा का भी महत्व है। शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। लोग घर के मुख्य द्वार या आंगन में दीप जलाकर यमराज की आराधना करते हैं और अपने परिवार की सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं। एक कथा के अनुसार, धनतेरस के दिन दीप जलाने से एक राजा के पुत्र की आयु बढ़ गई थी और उसकी अकाल मृत्यु टल गई थी। तभी से यह परंपरा बन गई कि इस दिन घर के बाहर दीपक जलाना चाहिए।
धर्म और आस्था का संगम
धनतेरस केवल खरीदारी का दिन नहीं बल्कि एक गहन आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश देने वाला पर्व है। यह हमें बताता है कि धन का संबंध केवल भौतिक सुख से नहीं बल्कि स्वास्थ्य और सुरक्षा से भी है। भगवान धन्वंतरि की पूजा से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। वहीं मां लक्ष्मी की आराधना हमें परिश्रम और ईमानदारी से अर्जित किए गए धन का महत्व बताती है। यमराज की पूजा जीवन की अनिश्चितता और मृत्यु की वास्तविकता का बोध कराती है। इस प्रकार धनतेरस मानव जीवन को संपूर्ण दृष्टि से संतुलित करने वाला पर्व है।
जानें धार्मिक महत्व
धनतेरस का पर्व धार्मिक मान्यताओं और लोक परंपराओं से परिपूर्ण है। यह दिन हमें स्वास्थ्य, समृद्धि और सुरक्षा की एक साथ याद दिलाता है। भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और यमराज की पूजा करके लोग अपने जीवन को शुभ, निरोगी और सुरक्षित बनाने की कामना करते हैं। इसलिए जब भी धनतेरस आए, हमें केवल खरीदारी तक सीमित न रहकर इसके गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को भी समझना चाहिए। तभी यह पर्व अपने वास्तविक स्वरूप में हमें धन, स्वास्थ्य और जीवन की सार्थकता का संदेश दे सकेगा।: Hindu festivals India | Hindu festivals | hindu festival | Hindu festival vlog | Dhanteras 2025