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क्या आपको पता है, अपने ही पुत्र के हाथों हुई थी अर्जुन की मृत्यु ?

महाभारत की कहानी में अर्जुन को नायक के तौर पर देखा जाता है, कहा जाता है कि अगर महाभारत युद्ध में अर्जुन अकेले नहीं होते तो पांडव युद्ध हार जाते। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक कथाओं के अनुसार अर्जुन की दो बार मृत्यु हुई है।

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Kamal K Singh
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अर्जुन

अर्जुन Photograph: (google )

दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क: महाभारत की कहानी में अर्जुन को नायक के तौर पर देखा जाता है, कहा जाता है कि अगर महाभारत युद्ध में अर्जुन अकेले नहीं होते तो पांडव युद्ध हार जाते। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक कथाओं के अनुसार अर्जुन की दो बार मृत्यु हुई थी।

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पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है, महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद महर्षि वेदव्यास और भगवान श्री कृष्ण की सलाह पर पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया था। यज्ञ के घोड़े की सुरक्षा की जिम्मेदारी अर्जुन को दी गई थी।

वह घोड़ा जहां-जहां जाता, अर्जुन उसकी सुरक्षा के लिए उसके पीछे-पीछे चलते। वह घोड़ा जहां से गुजात उन देशों ने युधिष्ठिर की प्रभुता स्वीकार कर ली। जिन्होंने प्रभुता स्वीकार नहीं की, अर्जुन ने उन्हें युद्ध में हरा दिया, जिसके कारण उन्हें प्रभुता स्वीकार करनी पड़ी।

ऐसा करते-करते वह घोड़ा मणिपुर पहुंच गया। मणिपुर की राजकुमारी का नाम चित्रांगदा था। वह अर्जुन की पत्नी थी और उन दोनों का एक पुत्र था जिसका नाम बभ्रुवाहन था। बभ्रुवाहन मणिपुर का राजा था। अपने पिता के आने की खबर पाकर वह उनसे मिलने पहुंचा लेकिन यज्ञ के नियमों के कारण अर्जुन ने उसे युद्ध करने के लिए कहा।

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अर्जुन और बभ्रुवाहन के बीच युद्ध

अर्जुन और बभ्रुवाहन के बीच हो रही बातचीत के बीच में ही अर्जुन की चौथी पत्नी और नागकन्या उलूपी वहां पहुंच गई। उलूपी ने बभ्रुवाहन को भी उसके पिता से युद्ध के लिए तैयार किया। पिता-पुत्र के बीच हो रहे भीषण युद्ध के दौरान बभ्रुवाहन के एक बाण ने अर्जुन को इतना घायल कर दिया कि उनकी मृत्यु हो गई। युद्ध में घायल बभ्रुवाहन भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। युद्ध समाप्त होने के बाद जब चित्रांगदा वहां पहुंची तो उसने पति और दोनों पुत्रों को मरा हुआ देखा और वह बहुत दुखी हुई और विलाप करने लगी। इसके बाद अर्जुन की चौथी पत्नी नागकन्या उलूपी ने संजवानी मणि से आर्जून को दोबारा जीवित किया । 

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