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भारत की सांस्कृतिक धरोहरोंमें कुछ त्योहार ऐसे हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सांस्कृतिक एकता और अंतरराष्ट्रीय पहचान के भी प्रतीक बन गए है। विजयादशमी यानी दशहरे के पर्व का हिंदू धर्म में एक खास स्थान है। दशहरे पर शस्त्र पूजा करना एक प्राचीन हिंदू परंपरा है, जिसका महत्व धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत गहरा है। इस दिन शस्त्रों की पूजा शक्ति, साहस, विजय और आत्मरक्षा का प्रतीक है। यह न केवल असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है, बल्कि इस दिन अस्त्र-शस्त्र की पूजा का भी विधान है। पंचांग के मुताबिक, इस वर्ष विजयादशमी का पर्व 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। जानते हैं कि इस दिन अस्त्र-शस्त्र की पूजा क्यों की जाती है और इसका क्या महत्व है साथ ही पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विजयादशमी के दिन भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले शस्त्रों की पूजा की थी। इसी दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, जिससे देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र देवी को अर्पित किए, जिनकी पूजा की गई। यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसी संदेश को दर्शाने के लिए शस्त्र पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा-महाराजा युद्ध में विजय की कामना से अपने शस्त्रों की पूजा करते थे, ताकि इन्हें शक्ति और सफलता मिले। भारतीय सेना आज भी दशहरे पर शस्त्र पूजा करती है, जो वीरता, मनोबल और देश की रक्षा के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
शस्त्र पूजा का विधान
आज के दौर में शस्त्र पूजा सिर्फ योद्धाओं तक सीमित नहीं, बल्कि आमजनों द्वारा भी औजारों, वाहनों आदि की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इससे परिवार, व्यवसाय और अन्य क्षेत्रों की रक्षा का भाव प्रबल होता है। इस प्रकार दशहरे पर शस्त्र पूजा करना शक्ति, विजय, साहस, आत्मरक्षा और धर्म की रक्षा का गहरा प्रतीक है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और विजय का भाव आता है।
विजय का प्रतीक
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान श्री राम ने इसी दिन रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल की थी। इसके साथ ही, मां दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के लिए जिन अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया था, वे भी पूजनीय हैं। विजयादशमी को विजय का प्रतीक माना जाता है, इस वजह से इस दिन को शत्रु पर जीत हासिल करने और आत्मरक्षा में सहायक अस्त्र-शस्त्र की पूजा की जाती है।
धार्मिक ग्रंथों में कहां-कहां है उल्लेख
रामायण में दशहरे के दिन भगवान राम द्वारा युद्ध से पहले अपने शस्त्रों और देवी अपराजिता की पूजा करने का वर्णन मिलता है।महाभारत में भी क्षत्रियों द्वारा युद्ध में जाने से पूर्व शस्त्र की पूजा का उल्लेख है, जो शक्ति और विजय का प्रतीक माना जाता है।
देवी पुराण तथा दुर्गा कथा
देवी पुराण और दुर्गा सप्तशती में जब देवताओं ने महिषासुर वध के लिए देवी को अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए और विजय के बाद उन अस्त्रों-शस्त्रों की पूजा का विधान किया गया। आयुध पूजा (शस्त्र पूजा) की परंपरा देवी दुर्गा के महिषासुर वध से भी जुड़ी हुई है, और यह नवरात्रि व विजयादशमी दोनों के धार्मिक विधान में शामिल है। आयुध पूजा का महत्व सिर्फ अस्त्र-शस्त्र तक ही सीमित नहीं है। बल्कि इसमें जीवन में हमें सफलता दिलाने वाले सभी कर्म के उपकरणों जैसे- छात्र अपनी पुस्तकों, व्यापारी अपने तराजू-बहीखातों, कलाकार अपने औजारों और सैनिक अपने हथियारों की पूजा करते हैं। यह पूजा इस बात को बताती है कि हमारे उपकरण ही हमारी आजीविका और सफलता का माध्यम हैं, और हमें उनका सम्मान और संरक्षण करना चाहिए।
शस्त्र पूजा शुभ मुहूर्त
विजयादशमी के दिन विजय मुहूर्त के दौरान पूजा करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह समय हर कार्य में सफलता दिलाने वाला होता है। पंचांग के मुताबिक, 2 अक्टूबर को आप दोपहर 2 बजकर 09 मिनट से 2 बजकर 56 मिनट के बीच अपनी शस्त्र और उपकरणों की पूजा कर सकते हैं। यानी पूजा की कुल अवधि 47 मिनट तक रहेगी।
किस तरह करें आयुध पूजा?
अस्त्र-शस्त्र पूजा के दिन विधि-विधान से पूजा करने पर मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है। सबसे पहले, जिन अस्त्र-शस्त्र या उपकरणों की पूजा करनी है, उन्हें अच्छी तरह साफ करें। तत्पश्चात पूजा स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर उन्हें रखें. फिर अस्त्र-शस्त्रों पर गंगाजल छिड़कें, रोली, कुमकुम और चंदन का तिलक लगाएं. इसके बाद उन्हें फूल (विशेषकर गेंदे के फूल), माला और वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद मिठाई या नैवेद्य का भोग लगाएं। आखिर में, धूप-दीप जलाकर उनकी आरती करें और प्रार्थना करें कि वे सदैव आपकी रक्षा करें और आपके कर्म में सफलता दें। Dussehra 2025 | Hindu festivals | hindu festival | Hindu festivals India | Hindu festival vlog