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Bakrid Festival: बलिदान, विश्वास और अल्लाह के प्रति समर्पण का प्रतीक ईद-उल-अजहा

ईद-उल-अज़हा, जिसे आमतौर पर बकरीद के नाम से जाना जाता है, इस्लाम धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसे 'बलिदान का पर्व' भी कहा जाता है, जो पैगंबर इब्राहिम (अब्राहम) की भक्ति और बलिदान की भावना को याद करता है।

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Mukesh Pandit
Bakrid
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बकरीद (Bakrid), जिसे ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्याग और समर्पण का प्रतीक है और हजरत इब्राहिम की अल्लाह के प्रति अटूट आस्था की याद में मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान अल्लाह की खुशी के लिए  कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है –एक हिस्सा परिवार के लिए, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, और तीसरा जरूरतमंदों के लिए। यह पर्व इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार ज़िल-हिज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है। बकरीद पर सुबह विशेष नमाज अदा की जाती है और सभी लोग आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज में समानता और दान के महत्व को भी उजागर करता है। इस अवसर पर लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। 

ईद-उल-अज़हा या बकरीद का महत्व 

ईद-उल-अज़हा, जिसे आमतौर पर बकरीद के नाम से जाना जाता है, इस्लाम धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसे 'बलिदान का पर्व' भी कहा जाता है, जो पैगंबर इब्राहिम (अब्राहम) की भक्ति और बलिदान की भावना को याद करता है। यह त्योहार विश्व भर के मुसलमानों द्वारा उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। बकरीद न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है, जो समुदाय, दान और एकता को बढ़ावा देता है। 

ईद-उल-अज़हा पैगंबर इब्राहिम की उस कहानी को स्मरण करता है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के प्रति अपनी अटूट भक्ति दिखाई। इस्लामी मान्यता के अनुसार, अल्लाह ने इब्राहिम से अपनी सबसे प्रिय चीज का बलिदान मांगकर उनकी आज्ञाकारिता की परीक्षा ली। इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल को बलिदान करने का फैसला किया, लेकिन अंतिम क्षण में अल्लाह ने उनकी भक्ति को स्वीकार करते हुए एक जानवर (दुम्बा) भेजा, जिसे बेटे की जगह बलिदान किया गया। यह घटना बलिदान, विश्वास और अल्लाह के प्रति समर्पण का प्रतीक है। बकरीद मुसलमानों को सिखाती है कि जीवन में त्याग, धैर्य और ईश्वर पर भरोसा कितना महत्वपूर्ण है।

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कब मनाया जाता है बकरीद

ईद-उल-अज़हा इस्लामी चंद्र कैलेंडर (हिजरी) के बारहवें महीने, धू-अल-हिज्जा, की 10वीं तारीख को मनाया जाता है। यह तारीख ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर साल बदलती है क्योंकि चंद्र कैलेंडर सौर कैलेंडर से लगभग 10-12 दिन छोटा होता है। 2025 में, बकरीद संभवतः 6 जून के आसपास मनाई जाएगी, हालांकि सटीक तारीख चांद के दिखाई देने पर निर्भर करती है। यह त्योहार हज यात्रा के समापन के साथ भी जुड़ा है, जो मक्का में होता है और इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। हज के दौरान, तीर्थयात्री मिना में बलिदान की रस्म निभाते हैं, और उसी समय दुनिया भर के मुसलमान बकरीद मनाते हैं। त्योहार आमतौर पर 3-4 दिनों तक चलता है, जिसे ईद-उल-अज़हा की अवधि कहा जाता है। इस दौरान, लोग नमाज़ अदा करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, और परिवार व दोस्तों के साथ उत्सव मनाते हैं।

क्यों मनाया जाता है बकरीद

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बकरीद का मुख्य उद्देश्य अल्लाह के प्रति आज्ञाकारिता और बलिदान की भावना को सम्मान देना है। यह त्योहार मुसलमानों को याद दिलाता है कि जीवन में कठिन परिस्थितियों में भी ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। पैगंबर इब्राहिम की कहानी विश्वास की शक्ति और अल्लाह की दया को दर्शाती है। यह त्योहार यह भी सिखाता है कि सच्चा बलिदान केवल भौतिक चीजों का त्याग नहीं, बल्कि स्वार्थ, अहंकार और नकारात्मकता को छोड़ना भी है।

सामाजिक दृष्टिकोण से, बकरीद गरीबों और जरूरतमंदों की मदद पर जोर देता है। मांस का वितरण सुनिश्चित करता है कि समाज का हर वर्ग इस उत्सव का हिस्सा बने। यह त्योहार परिवार और समुदाय को एकजुट करता है, जहां लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं, उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं, और स्वादिष्ट व्यंजन जैसे बिरयानी, कबाब, और शीर खुरमा का आनंद लेते हैं।

दिन की शुरुआत मस्जिद में ईद की विशेष नमाज़ से होती है, जहां लोग अल्लाह से दुआएं मांगते हैं। नमाज़ के बाद, जो लोग सक्षम हैं, वे बकरे, भेड़, या अन्य हलाल जानवर का बलिदान करते हैं, जिसे 'कुर्बानी' कहा जाता है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, रिश्तेदारों से मिलते हैं, और स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेते हैं। बच्चे 'ईदी' के रूप में उपहार या पैसे पाते हैं।ED | Eid-ul-adha | bakrid qurbani | bakrid qurbani row | cm yogi on bakrid

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