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गंगा दशहरा 2025: जानिए कब है गंगा दशहरा, यहां जानें तिथि, पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

गंगा दशहरा पर पवित्र गंगा में स्नान, पूजा, और दान से भक्तों को मां गंगा और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा, गंगा स्तोत्र का पाठ, और शुभ योगों में दान करने से जीवन में शांति और कल्याण आता है।

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Mukesh Pandit
Ganga Dashahra
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सनातन धर्म में गंगा दशहरा एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है, जो माँ गंगा के धरती पर अवतरण की स्मृति में मनाया जाता है। यह पर्व हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन मां गंगा की पूजा-अर्चना, गंगा स्नान, और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। 5 जून 2025 को मनाया जाने वाला यह पर्व दस प्रकार के पापों से मुक्ति, सुख, समृद्धि, और मोक्ष का अवसर प्रदान करता है।
गंगा स्नान, पूजा, और दान से भक्तों को माँ गंगा और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा, गंगा स्तोत्र का पाठ, और शुभ योगों में दान करने से जीवन में शांति और कल्याण आता है। यदि गंगा नदी तक पहुँचना संभव न हो, तो घर पर गंगाजल से स्नान और पूजा करें। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का माध्यम है, बल्कि पितरों को प्रसन्न करने और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है, क्योंकि गंगा जीवनदायिनी और पवित्र नदी है। आइए जानते हैं कि 2025 में गंगा दशहरा कब है, इस पर्व का महत्व क्या है?

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तिथि और शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, गंगा दशहरा ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में गंगा दशहरा 5 जून, गुरुवार को पड़ रहा है। पंचांग के अनुसार, दशमी तिथि 4 जून 2025 को रात 11:54 बजे शुरू होगी और 6 जून 2025 को रात 2:15 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर, यह पर्व 5 जून 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जो इस अवसर को और विशेष बनाते हैं:  hindu | hindu festival | hindufestival | Bengal Hindu Attacks 

हस्त नक्षत्र: 5 जून 2025 को सुबह 3:35 बजे से 6 जून 2025 को सुबह 6:34 बजे तक।
सिद्धि योग: 5 जून 2025 को सुबह 9:14 बजे तक।
रवि योग: पूरे दिन मौजूद, जो स्नान, ध्यान, और पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता ह
व्यतीपात योग: 5 जून 2025 को सुबह 9:14 बजे से शुरू, जो दान-पुण्य को अक्षय फल देने वाला है।
इन शुभ योगों में गंगा स्नान, दान, और पूजा करने से दस प्रकार के पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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गंगा दशहरा का महत्व

गंगा दशहरा का पर्व मां गंगा के धरती पर अवतरण की कथा से जुड़ा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर माँ गंगा स्वर्ग से धरती पर आईं। चूंकि गंगा का वेग बहुत तीव्र था, भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में रोककर धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतारा। इसीलिए माँ गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है। स्कंद पुराण और वराह पुराण के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में गंगा का अवतरण हुआ, जिसे गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।

‘दशहरा’ शब्द ‘दश’ (दस) और ‘हरा’ (नष्ट करना) से मिलकर बना है, जो दस प्रकार के पापों—तीन कायिक (शारीरिक: हिंसा, चोरी, व्यभिचार), चार वाचिक (वाणी: झूठ, कठोर शब्द, चुगली, व्यर्थ बात), और तीन मानसिक (मन: लोभ, दूसरों का अहित सोचना, नास्तिकता)—के नाश का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान, पूजा, और दान से ये पाप धुल जाते हैं, और व्यक्ति को सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पर्व पितरों को प्रसन्न करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का भी अवसर है। गंगा को हिंदू धर्म में मोक्षदायिनी और पवित्रतम नदी माना जाता है, जिसके जल से स्नान, आचमन, और अभिषेक से जीवन में शुद्धता और शांति आती है।

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गंगा दशहरा पर वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश, और प्रयागराज जैसे स्थानों पर लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए एकत्र होते हैं। इस दिन मेले लगते हैं, शरबत की प्याऊ लगाई जाती है, और संध्या में गंगा आरती का आयोजन होता है, जो भक्ति और आस्था का प्रतीक है।

गंगा दशहरा पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:03 से 4:45 बजे तक, 5 जून 2025) में उठें। गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि यह संभव न हो, तो घर पर नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्नान के दौरान माँ गंगा का ध्यान करें और “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ गंगे नमः” मंत्र का जाप करें।

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सूर्य को अर्घ्य:

स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें
पीतल के लोटे में जल भरकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें, और प्रणाम करें

पूजा की तैयारी:

पूजा सामग्री एकत्र करें: गंगाजल, पान का पत्ता, आम का पत्ता, अक्षत, कुमकुम, दूर्वा, कुश, सुपारी, फल, फूल, नारियल, अनाज, सूत, कलश, मिठाई, और 10 दीपक। घर के मंदिर में माँ गंगा और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

पूजा-अर्चना:

मंदिर में 10 घी के दीपक प्रज्वलित करें (दीपदान)।
माँ गंगा और भगवान शिव को पुष्प, दूध, मिठाई, फल, और नारियल अर्पित करें।

गंगा स्तोत्र का पाठ करें, जैसे:

“भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यात:। नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम।।”
“हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे। दूरीकुरू मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम।।”

अन्य मंत्र: “गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।”
पूजा के दौरान 10 बार मंत्र जाप करें, क्योंकि 10 अंक का इस दिन विशेष महत्व है।

गंगा आरती:

संध्या समय (लगभग 7:21 से 8:21 बजे तक) माँ गंगा की आरती करें।
आरती में गीत गाएं: “ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता। जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।।”

दान-पुण्य: 10 मौसमी फल (तरबूज, खरबूजा आदि)
10 जूते, चप्पल, छाता, या पंखा
10 गरीबों को भोजन, वस्त्र, या सत्तू
जल से जुड़ी वस्तुएँ (घड़ा, शरबत)

पितरों के नाम पर तिल, अनाज, और जल का दान करें, इससे उनका आशीर्वाद मिलता है।

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