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Nirjala Ekadashi Vrat: इस दिन करें भगवान विष्णु का व्रत, जानिए महत्व और शुभ मुहूर्त

निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से सभी 24 एकादशियों के पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें पूरे दिन और रात जल का भी त्याग किया जाता है, जिससे इसे "निर्जला" नाम दिया गया है।

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Mukesh Pandit
NIRJLA EKADASHI 2025
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निर्जला एकादशी, जिसे पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से सभी 24 एकादशियों के पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें पूरे दिन और रात जल का भी त्याग किया जाता है, जिससे इसे "निर्जला" नाम दिया गया है।

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पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के भीम, जो अपनी भूख और प्यास के लिए प्रसिद्ध थे, अन्य एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते थे। तब वेदव्यास जी ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी, जिसके प्रभाव से उन्हें सभी एकादशियों का फल प्राप्त हुआ। यह व्रत पापों का नाश, मोक्ष की प्राप्ति, और भगवान विष्णु का आशीर्वाद दिलाता है। इसके अलावा, यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी माना जाता है, क्योंकि उपवास शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करता है।  hindu | hindu boy | hindu festival | hindufestival

शुभ मुहूर्त और तिथि (2025)

निर्जला एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त हर वर्ष पंचांग के अनुसार बदलते हैं। वर्ष 2025 के लिए निर्जला एकादशी की तिथि और मुहूर्त निम्नलिखित हैं:
तिथि: ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, एकादशी
दिनांक: 11 जून 2025 (बुधवार)
एकादशी तिथि प्रारंभ: 10 जून 2025, शाम 06:12 बजे 
एकादशी तिथि समाप्त: 11 जून 2025, शाम 07:45 बजे
पारण (व्रत तोड़ने) का समय: 12 जून 2025, सुबह 05:30 बजे से 08:15 बजे तक (IST)
शुभ मुहूर्त: सुबह 05:30 बजे से 10:45 बजे तक (ब्रह्म मुहूर्त और अभिजीत मुहूर्त पूजा के लिए उत्तम)

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निर्जला एकादशी व्रत और पूजा विधि

निर्जला एकादशी का व्रत और पूजा विधि निम्नलिखित चरणों में पूरी की जाती है:

1. तैयारी
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
सामग्री: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र, चौकी, पीला कपड़ा, फूल, तुलसी पत्र, धूप, दीप, चंदन, रोली, अक्षत, फल, मिठाई, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर का मिश्रण) और जल कलश।

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2. पूजा विधि

स्थापना: एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
स्नान: भगवान को पंचामृत और फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं।
शृंगार: मूर्ति को चंदन, रोली, और फूलों से सजाएं। तुलसी पत्र अर्पित करें, क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है।
दीप-धूप: धूप और दीप जलाएं, आरती करें।
मंत्र जाप: "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का 108 बार जाप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी शुभ माना जाता है।
भोग: फल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाएं।
प्रार्थना: भगवान विष्णु से सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्रार्थना करें।

3. व्रत के नियम

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पूरे दिन और रात जल, अन्न और अन्य भोजन का त्याग करें।
क्रोध, झूठ और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
ब्रह्मचर्य का पालन करें और शांति बनाए रखें।
गरीबों को दान करें, जैसे अन्न, वस्त्र, जल कलश या फल।

4. पारण (व्रत तोड़ना)
अगले दिन, यानी द्वादशी तिथि पर, सुबह शुभ मुहूर्त में स्नान और पूजा के बाद व्रत तोड़ें। सबसे पहले जल, फिर फल या हल्का भोजन ग्रहण करें। ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान देकर उनका आशीर्वाद लें।

निर्जला एकादशी का व्रत जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति लाता है। यह पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक है। हालांकि, कुछ सावधानियां जरूरी हैं:बीमार, गर्भवती या बुजुर्ग व्यक्तियों को जल त्यागने की सख्ती से बचना चाहिए।

पूजा में शुद्धता और श्रद्धा का विशेष ध्यान रखें।

व्रत के दौरान मन को शांत और पवित्र रखें।
इस प्रकार, निर्जला एकादशी का व्रत और पूजा भक्ति, संयम और दान के साथ करने से जीवन में सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

 

 

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