नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में स्थित विंध्याचल पर्वत पर स्थित मां विंध्यवासिनी का मंदिर हिंदू धर्म में एक प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहां की देवी की महिमा अद्भुत मानी जाती है और यह स्थान श्रद्धालुओं के बीच आस्था और भक्ति का प्रतीक हैं। मां विंध्यवासिनी की पूजा से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि भक्तों के जीवन में खुशहाली, समृद्धि और समग्र सफलता का आशीर्वाद भी मिलता है।
विंध्याचल पर्वत और मां विंध्यवासिनी की महिमा
मां विंध्यवासिनी का नाम विंध्याचल पर्वत से जुड़ा हुआ है, जहां उनका निवास माना जाता है। इस पर्वत को जाग्रत शक्तिपीठ माना जाता है और यहां की देवी विंध्यवासिनी को शक्तिपीठ की मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है। "विंध्य" का शाब्दिक अर्थ है 'विंध्य पर्वत' और "अचल" का अर्थ है 'अचल पर्वत', जिससे विंध्याचल पर्वत का नाम बना। वहीं, 'विंध्यवासिनी' का अर्थ है 'विंध्य पर्वत में निवास करने वाली देवी'। यही कारण है कि यहां की देवी की पूजा से विशेष फल प्राप्त होता है।
मां विंध्यवासिनी का ऐतिहासिक महत्व
मां विंध्यवासिनी का मंदिर भारतीय इतिहास और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर हजारों साल पुराना है और इसका उल्लेख प्राचीन हिंदू ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। इसे विशेष रूप से मां दुर्गा के अवतार के रूप में पूजा जाता है। यह स्थान त्रिकोणीय शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां मां विंध्यवासिनी, मां काली और मां अष्टभुजा की पूजा की जाती है।माना जाता है कि यह शक्तिपीठ सृष्टि के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में समृद्धि, सुख और शांति आती है।
नवरात्रि पर लगता है मेला
नवरात्रि के शुभ अवसर पर मां विंध्यवासिनी मंदिर में खास पूजा-अर्चना और भव्य कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इस दौरान नवरात्रि मेला भी लगता है, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। मंदिर के प्रांगण को सजाया जाता है और भक्तजन दिन-रात मां विंध्यवासिनी की पूजा में मग्न रहते हैं। नौ दिनों तक चलने वाला यह महोत्सव मंदिर की पवित्रता और भव्यता को ऊंचे शिखर पर पहुंचा देता है। हर साल नवरात्रि के समय लगभग 10 से 12 लाख श्रद्धालु यहां मां के दर्शन के लिए आते हैं।
पौराणिक मान्यता और देवी सती की कथा
मां विंध्यवासिनी मंदिर के बारे में एक प्रमुख पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसमें देवी सती की मृत्यु और शक्तिपीठों के जन्म का वर्णन है। कहा जाता है कि राजा प्रजापति दक्ष के यज्ञ में जब भगवान शिव को नहीं बुलाया गया, तो देवी सती ने नाराज होकर यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। इसके बाद भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया और भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। हालांकि यहां पर देवी सती के शरीर का कोई अंग नहीं गिरा, लेकिन यह माना जाता है कि देवी मां यहां सशरीर निवास करती हैं।
ऐसे पहुंचे मंदिर
मां विंध्यवासिनी मंदिर तक पहुंचना बेहद आसान है। मिर्ज़ापुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी केवल 8 किलोमीटर है, और यहां तक पहुंचने के लिए ऑटो और टैक्सी की सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा, निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी है, जो करीब 60 किलोमीटर दूर है। वहां से भी मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।