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भगवान सूर्य देव देव वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं, तो उस दिन को मिथुन संक्रांति कहा जाता है। यह संक्रांति हिंदू धर्म में एक पवित्र अवसर माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर के दान करते हैं। मान्यता है कि इस दिन स्नान और दान से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में चल रहे ग्रह दोष भी शांत होते हैं। विशेषकर सूर्य और अन्य ग्रहों की स्थिति से जुड़े दोषों के निवारण के लिए यह दिन शुभ माना जाता है। यह सूर्य के राशि परिवर्तन का प्रतीक है और वैदिक ज्योतिष में इसका विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, मिथुन संक्रांति ज्येष्ठ मास की समाप्ति और आषाढ़ मास की शुरुआत को चिह्नित करता है। यह पर्व न केवल धार्मिक, बल्कि ज्योतिषीय और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं मिथुन संक्रांति 2025 की तिथि, स्नान मुहूर्त, पुण्यकाल और इसके महत्व के बारे में।
मिथुन संक्रांति 2025 एक ऐसा पर्व है जो धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। 15 जून को सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश के साथ, यह दिन स्नान, दान, और सूर्य पूजा के लिए अत्यंत शुभ है। पुण्यकाल और महापुण्यकाल में किए गए कार्य जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। विशेष रूप से इंद्र और शिववास योग इस दिन को और भी शुभ बनाते हैं। इस अवसर पर सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने और अपने जीवन को समृद्ध करने के लिए विधि-विधान से पूजा और दान करें। hindu god | Hindu festivals | hindus
मिथुन संक्रांति 2025: तिथि और समय
मिथुन संक्रांति 2025 में 15 जून को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। वैदिक पंचांग के अनुसार, सूर्य का यह गोचर सुबह 6:53 बजे होगा। यह क्षण संक्रांति का सटीक समय माना जाता है, जिसे "संक्रांति क्षण" कहा जाता है। मिथुन संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से पापों का नाश होता है और सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है। स्नान मुहूर्त निम्नलिखित है:
पुण्यकाल स्नान मुहूर्त: सुबह 6:53 बजे से दोपहर 2:19 बजे तक (कुल अवधि: 7 घंटे 26 मिनट)
महापुण्यकाल स्नान मुहूर्त: सुबह 6:53 बजे से सुबह 9:12 बजे तक (कुल अवधि: 2 घंटे 19 मिनट)
यदि पवित्र नदी में स्नान संभव न हो, तो घर पर स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करने की सलाह दी जाती है। यह शरीर और मन को शुद्ध करता है।
पुण्यकाल समय
पुण्यकाल वह समय होता है जब सूर्य दो राशियों के बीच में होता है, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दौरान स्नान, दान, और पूजा-पाठ करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मिथुन संक्रांति 2025 के लिए पुण्यकाल निम्नलिखित है: पुण्यकाल: सुबह 6:53 बजे से दोपहर 2:19 बजे तक। महापुण्यकाल: सुबह 6:53 बजे से सुबह 9:12 बजे तक। पुण्यकाल में किए गए दान-पुण्य, विशेष रूप से कपड़े, अनाज, और धन का दान, सूर्य की स्थिति को कुंडली में मजबूत करता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।
मिथुन संक्रांति 2025 के दिन विशेष योग बन रहे हैं, जो इसे और भी शुभ बनाते हैं:
- इंद्र योग: दोपहर 12:20 बजे तक
- शिववास योग: दिन भर, विशेष रूप से दोपहर 3:51 बजे तक शिवजी कैलाश पर वास करेंगे, इसके बाद नंदी की सवारी करेंगे।
- अभिजीत मुहूर्त: दोपहर में, जिसमें सूर्य देव की पूजा विशेष फलदायी होगी।ये योग सूर्य पूजा और दान-पुण्य के लिए अतिरिक्त शुभता प्रदान करते हैं।
मिथुन संक्रांति का महत्व
मिथुन संक्रांति का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व अत्यंत विशेष है। सूर्य को सौरमंडल का राजा माना जाता है, जो जीवन, ऊर्जा, और आत्मविश्वास का प्रतीक है। इस दिन सूर्य की पूजा करने से करियर में सफलता, स्वास्थ्य, और यश की प्राप्ति होती है। मिथुन संक्रांति को पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने और सिलबट्टे (भूदेवी के प्रतीक) की पूजा का भी विधान है।इस दिन विशेष रूप से ओडिशा में "राजा पर्व" के रूप में उत्सव मनाया जाता है, जो चार दिनों तक चलता है। इस दौरान अविवाहित लड़कियाँ सज-संवरकर झूले पर झूलती हैं और विवाहित महिलाएँ घरेलू कार्यों से विश्राम लेकर उत्सव में भाग लेती हैं। यह पर्व वर्षा के स्वागत और पृथ्वी माता की पूजा का प्रतीक है।
पूजा विधि
मिथुन संक्रांति के दिन निम्नलिखित पूजा विधि का पालन करें:
स्नान: पुण्यकाल में गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें। घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
सूर्य पूजा: सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य दें। तांबे के लोटे में जल, लाल चंदन, और लाल फूल डालकर "ॐ सूर्याय नमः" मंत्र का जाप करें।
दान: कपड़े, अनाज, जूते, और धन का दान करें। यह शनि और सूर्य के दोषों को शांत करता है।
व्रत और प्रार्थना: सूर्य देव के नामों का जाप करें और चालीसा का पाठ करें। इससे सारे बिगड़े काम बन सकते हैं।
उपाय
सूर्य मंत्र जाप: "ॐ घृणि सूर्याय नमः" का 108 बार जाप करें।
दान: जरूरतमंदों को कपड़े और अनाज दान करें।
पशु-पक्षी सेवा: पक्षियों और गायों को भोजन दें, इससे पुण्य बढ़ता है।
सिलबट्टे की पूजा: भूदेवी के प्रतीक के रूप में सिलबट्टे की पूजा करें।
इस दिन चावल खाने से बचें, क्योंकि यह राजा पर्व की परंपरा के अनुसार वर्जित है
दान करते समय शुभ मुहूर्त का ध्यान रखें
पूजा के दौरान शुद्धता और श्रद्धा बनाए रखें।