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Kalashtami 2025 : जलेबी के भोग से प्रसन्न होने वाले देवता काल भैरव की ऐसे करें पूजा, होंगी मनोकामनाएं पूरी

कालाष्टमी भगवान काल भैरव की पूजा का दिन है, जो भय, नकारात्मक शक्तियों और शत्रुओं को नष्ट करने वाले माने जाते हैं। यह दिन तंत्र-मंत्र साधना, आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति और रक्षा के लिए विशेष माना जाता है।

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Mukesh Pandit
Kalashtmi Poja
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कालाष्टमी , भगवान शिव के उग्र रूप, भगवान काल भैरव के सम्मान में मनाया जाने वाला एक मासिक उत्सव है। प्रत्येक हिंदू पंचांग माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व, वर्ष में कुल बारह कालाष्टमी तिथियाँ होती हैं।  श्रावण मास की आगामी कालाष्टमी 17 जुलाई को मनाई जाएगी। कालाष्टमी के दिन सूर्योदय सुबह 5:55 बजे, सूर्यास्त शाम 7:10 बजे, चंद्रोदय सुबह 11:41 बजे और चंद्रास्त दोपहर 12:51 बजे होने की संभावना है। इसके अलावा, अष्टमी तिथि 17 तारीख को शाम 7:09 बजे शुरू होकर अगले दिन शाम 5:02 बजे तक रहेगी।

कालाष्टमी का महत्व

कालाष्टमी भगवान काल भैरव की पूजा का दिन है, जो भय, नकारात्मक शक्तियों और शत्रुओं को नष्ट करने वाले माने जाते हैं। यह दिन तंत्र-मंत्र साधना, आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति और रक्षा के लिए विशेष माना जाता है। भक्तों का मानना है कि काल भैरव की पूजा से भय, बाधाएं, और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, साथ ही जीवन में साहस और समृद्धि प्राप्त होती है। यह दिन विशेष रूप से तांत्रिकों और साधकों के लिए महत्वपूर्ण है।

कालाष्टमी की पूजा विधि

प्रातः स्नान: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। भगवान भैरव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। एक दीपक जलाएं (सरसों के तेल का दीपक विशेष रूप से शुभ माना जाता है)।
अर्पण: भैरव जी को फूल, चंदन, धूप, काले तिल, और मिठाई (विशेषकर इमरती या जलेबी) अर्पित करें। जलेबी अथवा इमरती का भोग इनके काफी प्रिय माना जाता है। 

इन मंत्रों का करें जाप :

ॐ भैरवाय नमः
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं
जाप कम से कम 108 बार करें।

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हवन (वैकल्पिक): यदि संभव हो, तांत्रिक विधि से हवन करें।  पूजा के बाद प्रसाद को परिवार और जरूरतमंदों में बांटें। कई भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। पूजा में शुद्धता और श्रद्धा का ध्यान रखें। कुछ परंपराओं में भैरव जी को मदिरा अर्पित की जाती है, लेकिन यह स्थानीय परंपरा और व्यक्तिगत श्रद्धा पर निर्भर करता है।
रात में पूजा करना अधिक प्रभावशाली माना जाता है।

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