नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क: दुनिया के ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का सोमवार सुबह निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे और बीते कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। सुबह करीब पौने दस बजे अपोस्टोलिक चैंबर के कैमरलेंगो कार्डिनल केविन फैरेल ने उनके निधन की औपचारिक घोषणा की। यह दुखद समाचार मिलते ही पूरी दुनिया के ईसाई समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई है। पोप फ्रांसिस मूल रूप से अर्जेंटीना के रहने वाले थे और उनका जन्म नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था। वे अपने दयालु स्वभाव, मानव सेवा, और धर्मों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए दुनियाभर में सम्मानित थे।
संत नारायण गुरु की विचारधारा के प्रशंसक थे पोप फ्रांसिस
पोप फ्रांसिस ने दिसंबर 2024 में केरल के महान समाज सुधारक और दार्शनिक संत नारायण गुरु की प्रशंसा करते हुए कहा था कि उनका सार्वभौमिक मानव एकता का संदेश आज की दुनिया में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। उन्होंने यह बात उस समय कही थी जब एर्नाकुलम जिले के अलुवा में संत नारायण गुरु द्वारा आयोजित सर्व-धर्म सम्मेलन की शताब्दी मनाई जा रही थी। आज दुनिया अशांति और नफरत से घिरी हुई है। इसकी जड़ में धर्म की मूल शिक्षाओं से विमुख होना है। ऐसे समय में संत नारायण गुरु का यह संदेश कि सभी मनुष्य एक ही मानव परिवार के सदस्य हैं अत्यंत जरूरी हो जाता है।
जाति के बंधनों से ऊपर उठने के लिए प्रेरित किया
संत नारायण गुरु भारत के प्रख्यात समाजसुधारक, चिंतक और दार्शनिक थे। उन्होंने विशेष रूप से केरल में व्याप्त जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानता के विरुद्ध एक सशक्त आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने समानता, एकता और समरसता की शिक्षा दी और लोगों को धर्म और जाति के बंधनों से ऊपर उठने के लिए प्रेरित किया। पोप ने अपने संबोधन में यह भी कहा था कि गुरु ने सिखाया कि कोई भी व्यक्ति उसकी जाति, धर्म या संस्कृति के आधार पर हीन या श्रेष्ठ नहीं है। आज दुर्भाग्य यह है कि हर स्तर पर भेदभाव मौजूद है जबकि गुरु का संदेश ठीक इसके विपरीत है।
धर्मों के बीच संवाद की विरासत
पोप फ्रांसिस के जीवन का एक बड़ा हिस्सा धर्मों के बीच समरसता को बढ़ावा देने में बीता। उन्होंने बार-बार यह संदेश दिया कि विभिन्न धार्मिक परंपराएं मानवता की सेवा में साथ आ सकती हैं, और इस दिशा में संत नारायण गुरु जैसे संतों के योगदान को उन्होंने विशेष रूप से सराहा।