लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता
मुसलमानों का पाक और मुकद्दस महीना रमज़ान वैसे तो तीस दिन का होता है। यानी रमज़ान महीने का चांद दिखने के साथ ही इस माह की शुरुआत होती है और फिर चांद के साथ ही यह महीना संपन्न होता है। लेकिन इस तीस दिन को तीन हिस्सों में बाटा गया है। इस हर एक हिस्से को अशरा कहते है। पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा दोज़क की आग से निजात का है।
पहले के दस दिन बरसती है रहमत
रमज़ान का महीना महज़ भूखा और प्यासा रहना नहीं बल्कि अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी और उसकी रहमत हासिल करने का भी बेहतरीन मौका है। इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने बताया कि इस महीने हर एक नेक अमल का बदला 70 गुना मिलता है। नफ़ील नमाज़ का बदला फ़र्ज़ नमाज़ के बराबर मिलता है। उन्होंने कहा कि रमज़ान का अव्वल अशरा रहमत का है। इसमें अल्लाह की अपने नेक बंदों के लिए रहमत बरसती है और हर किसी को इस अशरे में ज़्यादा से ज़्यादा इबादत व नेक काम कर के अल्लाह को खुश करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को बुराई से दूर रहना चाहिए और इस अशरे का पूरा फायदा उठाना चाहिए।
दूसरा अशरा मगफिरत का है
रमज़ान महीने के 11वें रोज़े से दूसरा अशरा लग जाता है। यानी अगले दस दिन तक मगफिरत का अशरा कहलाता है। यह अशरा भी बेहद महत्वपूर्ण है। इन दिनों में अल्लाह अपने बंदों की मगफिरत फरमाता है। ऐसे में हर किसी को अपने लिए और अपने बुजुर्गों के लिए मगफिरत की दुआ करनी चाहिए जिससे अल्लाह इस दुआ को कुबूल फरमा कर उनकी मगफिरत फरमा दें। इस अशरे में हर मुसलमान को बुरी चीज़ से दूर रहकर लोगों के साथ भलाई करना चाहिए और सदका देकर उनकी आर्थिक मदद भी पहुंचानी चाहिए। मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि सदका बेहद अच्छा अमल है और इसे हर मुसलमान को गरीब या जरूरतमंद को देना चाहिए।
तीसरा अशरा दिलाता है दोज़क की आग से निजात
रमज़ान का आखिरी हिस्सा यानी पूरे महीने का अंतिम पड़ाव बेहद खास है। इस आखिरी अशरा को दोजख की आग से निजात के लिए जाना जाता है। हर मुसलमान को अपने गुनाहों से माफी और गलतियों से बचने के लिए इस अशरे में ज़्यादा इबादत और अल्लाह को राज़ी करना चाहिए। इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों को दोजख की आग से निजात देता है। ऐसे में हर मुसलमान को दूसरे में मोमिन के साथ नेक अमल करने चाहिए जिससे खुदा उससे राज़ी हो जाए और उसको दोजख की आग से निजात दें-दें।