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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर शुक्रवार को नवरात्रि का पांचवां दिन है। नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है, जो माता पार्वती का मातृत्वपूर्ण स्वरूप हैं। इनकी पूजा करने से संतान सुख, ज्ञान, शक्ति, और आध्यात्मिक विकास की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि आती है।पंचांग के अनुसार, इस दिन सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा दोपहर के 3 बजकर 23 मिनट तक तुला राशि में रहेंगे। इसके बाद वृश्चिक राशि में गोचर करेंगे। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह के 11 बजकर 48 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह के 10 बजकर 42 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक रहेगा।
इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है
नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। नवरात्रि के पांचवें दिन माता के पूजन के पश्चात उनकी पौराणिक कथा पढ़ी या सुनी जाती है।
अभय मुद्रा में मां स्कंदमाता
पुराणों के अनुसार, भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। कमल के आसन पर विराजमान होने से इन्हें पद्मासना देवी के नाम से भी जाना जाता है। चार भुजाओं वाली मां स्कंदमाता अभय मुद्रा में अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और गोद में छह मुख वाले बाल स्कंद को धारण करती हैं। कमल पुष्प लिए यह देवी शांति, पवित्रता और सकारात्मकता की प्रतीक हैं।
स्कंदमाता की पूजा के लाभ
मां स्कंदमाता की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है और शत्रुओं का नाश होता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री होने के कारण इनकी उपासना करने वाला भक्त तेजस्वी और कांतिमय बनता है। शास्त्रों में इनकी महिमा का वर्णन है कि इनकी भक्ति से भवसागर पार करना सरल हो जाता है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
महत्व और विधि
मां स्कंदमाता की पूजा करने से संतान सुख, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। देवी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर फल-फूल, धूप-दीप, पीले रंग के वस्त्र या चुनरी, और केले का भोग अर्पित किया जाता है। पूजा के समय "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कन्दमातायै नमः" या "या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥" का जाप करना चाहिए। मां स्कंदमाता की चार भुजाएँ होती हैं, इनके गोद में बालरूप में भगवान कार्तिकेय विराजमान रहते हैं।मां शेर पर विराजमान हैं, और इनके प्रिय भोग में केला या केसर युक्त खीर, हलवा आदि अर्पण किया जाता है.
स्कंदमाता की पूजा विधि
प्रातः स्नान करके पूजा स्थान को शुद्ध करें, वहां लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।देवी को कुमकुम, अक्षत, पीले फूल, पीले वस्त्र, फल (विशेषकर केला) व मिष्ठान अर्पित करें।माता को श्रृंगार का सामान, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं और दीप-धूप प्रज्वलित करें। धूप, दीप जलाकर देवी का ध्यान करें, इसके बाद भोग लगाएं।दुर्गासप्तशती, देवी कवच या स्कंदमाता कथा का पाठ करें और आरती करें तथा प्रसाद बांटें।
स्कंदमाता के मंत्र
बीज मंत्र:
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कन्दमातायै नमः॥"
ध्यान मंत्र:
"सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥"
स्तुति मंत्र:
"या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
एक सामान्य मंत्र जो 108 बार जप सकते हैं:
"ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥"
स्कंदमाता का ध्यान एवं बीज मंत्र 108 बार जाप करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सुख-समृद्धि व संतान सुख की प्राप्ति होती है। shardiya navratri 2025 | Navratri Panchami rituals | Hindu festivals | Hindu festivals India