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श्रावण मास के सोमवार को भगवान शिव की आराधना से होती हैं मनोकामनाएं पूरी, जानें पूजा विधि

श्रावण का महीना हिंदू पंचांग का पांचवां महीना होता है, जुलाई-अगस्त के महीनों के साथ मेल खाता है। यह वर्षा ऋतु का प्रतीक माना जाता है, जब प्रकृति अपने हरे-भरे, मनमोहक रूप में नज़र आती है। इसे शिव की पूजा का मास कहा जाता है।

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Mukesh Pandit
Savan Month
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सावन का महीना हिंदू धर्म में विशेष आस्था और महत्व रखता है। भगवान शिव  की आराधना के लिए समर्पित इस पवित्र माह में कई व्रत, त्योहार और पर्व मनाए जाते हैं। श्रावण मास की शुरुआत सावन सोमवार व्रत से होती है, जो इस माह के सभी सोमवारों को रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने और व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके अलावा इस माह में कई अन्य महत्वपूर्ण पर्व भी आते हैं, जैसे हरियाली तीज, नागपंचमी, रक्षाबंधन और जन्माष्टमी। भगवान शिव की पूजा और ध्यान के माध्यम से हम अपने मन को शांत करते हैं, अपने कर्मों पर मनन करते हैं और जीवन के गहन अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं।

कब से है प्रारंभ

सावन 2025 में वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष सावन का महीना 11 जुलाई 2025 से शुरू होगा। इससे पहले 10 जुलाई को आषाढ़ पूर्णिमा है, जो 10 जुलाई की रात 1:36 बजे से शुरू होकर 11 जुलाई की रात 2:06 बजे तक रहेगी।  सनातन परंपरा में उदया तिथि को मान्यता दी जाती है, इसी कारण श्रावण मास की प्रतिपदा तिथि 11 जुलाई की रात 11:07 मिनट से आरम्भ होकर 12 जुलाई की रात 2:08 मिनट तक रहेगी। और इसीलिए 11 जुलाई से सावन माह की शुरुआत मानी जाएगी।

क्या है श्रावण मास ?

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श्रावण मास में विशेष तौर पर सोमवार को जल चढ़ाकर या व्रत रखकर भोलेनाथ की पूजा की जाती है। इसके अलावा, यह मास विभिन्न त्यौहारों, व्रतों और महत्वपूर्ण तिथियों के लिए भी जाना जाता है, जिसमें कांवड़ यात्रा, कालाष्टमी, कामिका एकादशी, हरियाली तीज, नाग पंचमी, दुर्गाष्टमी व्रत, वर्ल्ड फोटोग्राफी दिवस, रक्षा बंधन, और नराली पूर्णिमा शामिल हैं। श्रावण मास में विभिन्न राशियों के लिए विशेष अनुष्ठान और विधान भी होते हैं।

क्यों मनाया जाता है सावन 

सावन हिंदू कैलेंडर का एक पवित्र महीना है, जिसे भगवान शिव की आराधना के लिए मनाया जाता है।  हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव अन्य महीनों में कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं, लेकिन सावन के महीने में वे धरती पर अवतरित होते हैं। इसलिए भक्त इस महीने भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। सावन में शिवलिंग पर जल, दूध, भांग और धतूरा चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। इस महीने तांत्रिक भोजन का सेवन वर्जित होता है और सात्विक भोजन का महत्व बढ़ जाता है।

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सावन में सूर्य उपासना का विशेष महत्व है

सावन के महीने में सूर्य उपासना का भी विशेष महत्व है। प्रतिदिन सूर्य देव को जल का अर्घ्य देने और ॐ नमः शिवाय मंत्र जाप करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। सावन के हर रविवार को पूरे मन से सूर्य उपासना करना शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। सूर्य को लाल चंदन, कनेर के पुष्प और गुड़ का भोग लगाकर मंत्र जाप करने से जीवन में चारों तरफ यश, सिद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।

श्रावण मास व्रत कथा 

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पौराणिक कथा में सजीव रूप से वर्णित सावन मास का वह विशेष समय आता है, जब समुद्र मंथन की अद्भुत घटना घटित हुई थी। देवता और दानवों के सहयोग से इस मंथन से अनेक रत्न और अमृत की प्राप्ति हुई, लेकिन उनके साथ ही निकला महाविनाशक हलाहल विष।  इस विष की भयावहता ने पूरे संसार में कोहराम मचा दिया। यह विष इतना प्रचंड था कि उसके प्रभाव से सृष्टि का नाश निश्चित था। इस गंभीर संकट का समाधान ढूंढने के लिए सभी देवी-देवता भगवान शिव की शरण में पहुंचे।

 भगवान शिव ने अपने अपार धैर्य और त्याग का परिचय देते हुए संसार की रक्षा का बीड़ा उठाया और उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष की तीव्रता ने उनके कंठ को नीला कर दिया, जिससे वे ‘नीलकंठ’ कहलाने लगे। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित करना शुरू किया, जिससे उन्हें राहत मिली।

यह कृतज्ञता और सेवा का भाव उन्हें प्रसन्न कर गया। तब से हर साल सावन मास में भगवान शिव को जल अर्पित करने और उनका जलाभिषेक करने की परंपरा का प्रारंभ हुआ। इस अनुष्ठान में भक्ति और श्रद्धा की अद्भुत झलक मिलती है, जो हमें भगवान शिव के त्याग और परोपकार की याद दिलाती है। सावन का यह मास उनकी महिमा और कृपा का प्रतीक बन गया है।

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