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Shukra Pradosh Vrat: प्रदोष काल में करें शिव और माता पार्वती की पूजा, कष्ट होंगे दूर, जानें पूजा विधि

पुराणों के मुताबिक प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान भोलेनाथ, देवों के देव महादेव कहे जाते हैं।

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Mukesh Pandit
Shukra Pradosh Vrat
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सनातन परंपरा में प्रदोष व्रत अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है, जिसे बड़ी संख्या में भक्त मनाते हैं। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। हर महीने के त्रयोदशी तिथि (चंद्र माह के 13वें दिन) पर पड़ने वाले इस व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस दिन को विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, जब प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ता है, तब यह शुक्र प्रदोष व्रत कहलााता है। यह दिन प्रदोष व्रत में पूजा शाम के समय यानी प्रदोष काल में की जाती है।  मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं से मुक्ति भी मिलती है। साथ ही जो लोग संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उनको खासतौर पर शुक्र प्रदोष तिथि का व्रत करना चाहिए।

शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व

शुक्र प्रदोष तिथि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा- अर्चना की जाती है। पुराणों के मुताबिक प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान भोलेनाथ, देवों के देव महादेव कहे जाते हैं। भगवान शिव को समर्पित इस तिथि का व्रत करने से सभी कष्टों का अंत होता है और आरोग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही खुशियां, सौभाग्य, ऐशवर्य, सौंदर्य आदि की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत के दिन भक्तजन सुबह से ही उपवास रखते हैं। शाम को, वे पास के शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और उनके वाहन नंदी की विशेष पूजा करते हैं। इसमें शिवलिंग का पवित्र स्नान, बेलपत्र, धतूरा, और फूलों से पूजन किया जाता है। इसके बाद आरती करके वे अपना व्रत पूर्ण करते हैं। इस व्रत को करने से भक्तों को भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है, जिससे उनके सभी दुख, रोग और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

व्रत की पूजा विधि 

प्रदोष व्रत का आरंभ सूर्यास्त के बाद होता है। इसीलिए सभी भक्तों को सूर्यास्त के बाद ही पूजा की शुरुआत करनी चाहिए।
प्रदोष व्रत करने वाले जातकों को सूर्योदय से पहले बिस्तर छोड़ देना चाहिए
पूजा से पहले स्नान करें और नए कपड़े पहनें।
पूजा शुरू करने से पहले सभी पूजा सामग्री एकत्र कर लें।
एक कलश रखें और उसमें गंगाजल और फूल भरें
इस शुभ दिन पर भगवान शिव का अभिषेक गंगाजल, घी, दूध, दही और शहद से करें।
शिवलिंग पर अगरबत्ती, बेलपत्र और धतूरा (भगवान शिव का पसंदीदा फूल) चढ़ाएं।
प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें, महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करें, शिव चालीसा का जाप करें। आरती करके पूजा का समापन करें।

क्या है प्रदोष व्रत 

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हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को कलियुग में अत्यंत शुभ और भगवान शिव की कृपा का वाहक माना गया है। माह की त्रयोदशी तिथि को सायंकाल का समय प्रदोष काल कहलाता है। मान्यता है कि इस समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं, और देवगण उनकी स्तुति कर उनके दिव्य गुणों का गुणगान करते हैं।

प्रदोष क्या होता है 

प्रदोष (Pradosh), हिंदू कैलेंडर में हर पखवाड़े के तेरहवें दिन मनाया जाने वाला एक पावन अवसर है, जो भगवान शिव की पूजा से गहराई से जुड़ा है। सूर्यास्त से डेढ़ घंटे पहले और बाद के तीन घंटे की शुभ अवधि को इस दिन शिव आराधना के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है, जो इसकी आध्यात्मिक महिमा को बढ़ाती है।

प्रदोष व्रत की कथा 

प्रदोष व्रत की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है जैसा कि हम सभी जानते हैं इसी समुद्र मंथन के कारण भगवान शिव को हलाहल विष पीना पड़ा था । प्रदोष व्रत कथा समुद्रमंथन या समुद्र मंथन और भगवान शिव द्वारा हलाहल विष पीने से जुड़ी है। अमृत या जीवन का अमृत पाने के लिए, देवताओं और असुरों ने भगवान विष्णु की सलाह पर समुद्र मंथन शुरू किया। समुद्र मंथन से भयानक हलाहल विष उत्पन्न हुआ जो ब्रह्मांड को निगलने की क्षमता रखता था।भगवान शिव देवताओं और राक्षसों के बचाव में आए और उन्होंने हलाहल विष पी लिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवता और असुर दोनों ही अमृत की खोज में भगवान विष्णु के पास पहुंचे, भगवान विष्णु के सलाह पर समुद्र मंथन किया गया।

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इस समुद्र मंथन में कीमती रत्न, आभूषण इत्यादि देवताओं और असुरों के द्वारा प्राप्त किया गया, साथ ही अमृत और हलाहल विष प्राप्त हुए । यह हलाहल विष इतना ज्यादा जहरीला और खतरनाक था कि यह पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर सकता था, इसलिए ब्रह्मांड की रक्षा हेतु भगवान शिव ने इस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर लिया राक्षसों और देवताओं ने समुद्र मंथन जारी रखा और अंततः चंद्र पखवाड़े के बारहवें दिन उन्हें अमृत मिला।

तेरहवें दिन देवताओं और असुरों ने भगवान शिव को धन्यवाद दिया। माना जाता है कि भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने नंदी बैल के सींगों के बीच नृत्य किया था। जिस समय शिव अत्यंत प्रसन्न थे वह प्रदोष काल या गोधूलि समय था। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव इस अवधि के दौरान बेहद प्रसन्न होते हैं और सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल के दौरान उनकी इच्छाओं को पूरा करते हैं।  Shukra Pradosh Vrat 2025 | hindu | hindu god | hindu guru | Hindu festivals | hindu festival 

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