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हिंदू संस्कृति में प्रत्येक पूजा का विधान गहराई और प्रतीकात्मकता से भरा होता है। जिस प्रकार भगवान शिव को बेलपत्र, विष्णु को तुलसी और देवी दुर्गा को लाल पुष्प अर्पित किए जाते हैं, उसी प्रकार गणेश जी को दूर्वा (हरी घास) अर्पित करना अनिवार्य माना गया है। विशेष रूप से 21 दूर्वा-दल चढ़ाने का विधान है। यह परंपरा केवल आस्था नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा पौराणिक, आध्यात्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है।
गणेश जी और दूर्वा का पौराणिक संबंध
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय अनलासुर नामक असुर ने देवताओं और ऋषियों का जीना मुश्किल कर दिया। उसका विषैला तेज और अग्नि जैसी शक्ति सबको जलाने लगी। जब देवताओं ने भगवान गणेश से प्रार्थना की, तब उन्होंने अनलासुर का वध करने के लिए उसे निगल लिया। लेकिन अनलासुर का विष इतना प्रचंड था कि गणेश जी का पेट असहनीय रूप से जलने लगा। देवताओं और ऋषियों ने उनके कष्ट को शांत करने के लिए अनेक उपाय किए, किंतु कोई सफल नहीं हुआ। अंत में जब गणेश जी को दूर्वा अर्पित की गई, तब उनका पेट ठंडा हो गया और वे शांत हो गए। तभी से गणेश जी के पूजन में दूर्वा अनिवार्य हो गई।
दूर्वा का प्रतीकात्मक महत्व
दूर्वा सदैव हरी-भरी और जीवनदायिनी रहती है। चाहे इसे कितनी भी बार काट दिया जाए, यह पुनः अंकुरित हो जाती है। यह गुण जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव और कठिनाइयों के बावजूद फिर से उठ खड़े होने की प्रेरणा देता है। दूर्वा की सरलता और विनम्रता गणेश जी की विनयशीलता का प्रतीक है। इस प्रकार दूर्वा गणेश जी की तरह ही सहनशीलता, पुनर्जनन और स्थायित्व का द्योतक है।
21 दूर्वा चढ़ाने का महत्व
गणपति पूजन में प्रायः 21 दूर्वा, 21 लड्डू और 21 दीपक अर्पित करने का विधान है। इसके पीछे गहरा अंकशास्त्रीय और आध्यात्मिक महत्व है। त्रिगुण (सत्त्व, रज, तम) और सप्तधातु (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र) को मिलाकर 3 × 7 = 21 होता है। यह अंक मानव जीवन की संपूर्णता और संतुलन का प्रतीक है। 21 दूर्वा अर्पित करने से जीवन के सभी पक्षों (शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक) में संतुलन स्थापित होता है। यह अंक पूर्णता और शुभता का द्योतक है, इसलिए गणपति पूजन में इसे अत्यधिक शुभ माना गया है।
दूर्वा का वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक महत्व
भारतीय परंपराएँ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक आधार पर भी टिकी हैं। दूर्वा में प्राकृतिक ग्लूकोज़ और औषधीय तत्व पाए जाते हैं। यह शरीर की अत्यधिक गर्मी, जलन और विष प्रभाव को शांत करती है। आयुर्वेद में दूर्वा को शीतल, रक्तस्राव रोकने वाली और रोग नाशक बताया गया है। दूर्वा का रस रक्तचाप को नियंत्रित करने, रक्तस्राव रोकने और विषैले प्रभाव को दूर करने में उपयोगी है। यही कारण है कि अनलासुर का विष गणेश जी को जलाने लगा था और दूर्वा के औषधीय गुणों ने उन्हें तुरंत राहत दी।
पूजा में दूर्वा अर्पण की विधि
गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने की विधि भी निश्चित है। दूर्वा को तीन-तीन तंतु में गूंथकर अर्पित करना चाहिए। गणेश जी की सूंड, मस्तक और कानों पर दूर्वा विशेष रूप से चढ़ाई जाती है। पूजा करते समय दूर्वा अर्पण करते हुए मन में संकल्प और श्रद्धा होना आवश्यक है। दूर्वा अर्पित करने के बाद लड्डू या मोदक का भोग लगाना चाहिए।
21 दूर्वा अर्पित करने से भक्त को अनेक प्रकार के लाभ मिलते हैं। जीवन के सभी विघ्नों का नाश होता है। धन-धान्य, वैभव और समृद्धि की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है। दीर्घायु और आरोग्य का वरदान मिलता है। विद्यार्थी और बुद्धिजीवियों के लिए यह स्मरण शक्ति और बुद्धि का वर्धन करता है। गृहस्थ जीवन में सुख-शांति और संतुलन बना रहता है। hindu religion | Indian religious events | India religious controversy | Hindu Religious Practices | religion