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Sita Navami 2025: प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है सीता नवमी का व्रत, जानिए कब है और कैसे करें पूजा

सीता नवमी 2025 का पर्व न केवल माता सीता के जन्मदिवस का उत्सव है, बल्कि यह वैवाहिक जीवन में प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक भी है। इस दिन का व्रत और पूजा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक एकता को भी मजबूत करता है।

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Mukesh Pandit
Sita Navami 2025

सीता नवमी 2025 का पर्व न केवल माता सीता के जन्मदिवस का उत्सव है, बल्कि यह वैवाहिक जीवन में प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक भी है। इस दिन का व्रत और पूजा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक एकता को भी मजबूत करता है। माता सीता का जीवन हमें धैर्य, साहस और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इस पर्व को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से मनाकर भक्त अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त कर सकते हैं। hindu religion 

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जानकी नवमी के नाम से जाना जाता है

सीता नवमी, जिसे जानकी नवमी या सीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो माता सीता के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। माता सीता, भगवान श्रीराम की पत्नी और मिथिला नरेश जनक की पुत्री, शुद्धता, समर्पण, धैर्य और साहस की प्रतीक मानी जाती हैं। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अप्रैल या मई में पड़ता है। वर्ष 2025 में सीता नवमी 5 मई, सोमवार को मनाई जाएगी। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं और माता सीता व भगवान श्रीराम की पूजा करती हैं। 

सीता नवमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

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पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल नवमी तिथि 5 मई 2025 को सुबह 7:35 बजे शुरू होगी और 6 मई 2025 को सुबह 8:38 बजे समाप्त होगी। उदय तिथि के आधार पर, सीता नवमी का पर्व 5 मई को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा के लिए सबसे शुभ समय मध्याह्न मुहूर्त है, जो सुबह 11:14 बजे से दोपहर 1:52 बजे तक रहेगा। इस समय में पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

सीता नवमी का महत्व

सीता नवमी का धार्मिक और सामाजिक महत्व अत्यंत गहरा है। माता सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है, और उनकी जीवन गाथा रामायण में वर्णित है। मिथिला के राजा जनक ने यज्ञ के लिए खेत जोतते समय एक स्वर्ण पेटी में बालिका सीता को पाया था, जिसके कारण उन्हें "सीता" (जोता हुआ खेत) नाम दिया गया। वे जनक की दत्तक पुत्री बनीं और बाद में भगवान राम से उनका विवाह हुआ। सीता नवमी का व्रत और पूजा विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनके पति की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए की जाती है। 

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ऐसा माना जाता है कि माता सीता ने रावण के अपहरण के दौरान भगवान राम की रक्षा के लिए प्रार्थना की थी, और उसी तरह यह व्रत महिलाओं को अपने परिवार की रक्षा करने की शक्ति प्रदान करता है। इसके अलावा, सीता नवमी का पर्व धरती माता की पूजा से भी जुड़ा है, क्योंकि माता सीता धरती से प्रकट हुई थीं। इस दिन भू-पूजा करने से समृद्धि और खुशहाली प्राप्त होती है। यह पर्व मिथिला, अयोध्या और वाराणसी जैसे क्षेत्रों में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है।

सीता नवमी की पूजा विधि

प्रात:काल स्नान और संकल्प:

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सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। स्नान के दौरान पवित्र नदियों के मंत्र का जाप करें:
"गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदा सिंधु कावेरी जलमिन संनिधिं कुरु।"
इसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा का संकल्प लें। संकल्प में व्रत और पूजा का उद्देश्य (पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि) स्पष्ट करें।

पूजा स्थल की तैयारी:

घर के मंदिर या पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
एक लकड़ी की चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं।
भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की मूर्तियों या चित्रों को स्थापित करें।

पूजा सामग्री:

पूजा के लिए फूल, माला, चंदन, रोली, अक्षत, धूप, दीप, मिठाई, फल, मखाने की खीर, तुलसी पत्र, और सोलह श्रृंगार की सामग्री (बिंदी, सिंदूर, काजल, मेहंदी आदि) तैयार करें।

पूजा प्रक्रिया:

सबसे पहले भगवान गणेश और माता अंबिका की पूजा करें।
इसके बाद भगवान राम और माता सीता की मूर्तियों को गंगाजल से स्नान कराएं।
मूर्तियों को तिलक लगाएं, फूलों से सजाएं और माला अर्पित करें।
माता सीता को सोलह शृंगार की सामग्री अर्पित करें।
फल, मिठाई और मखाने की खीर का भोग लगाएं।
रामायण या सीता चरित्र कथा का पाठ करें। विशेष रूप से "सीता नवमी व्रत कथा" पढ़ना शुभ माना जाता है।

मंत्र जाप करें 

"ॐ सीतायै नमः"
"श्री जानकी रामाभ्यां नमः"
"ॐ श्री सीता रामाय नमः"
गायत्री मंत्र: "ॐ जनकाय विद्महे राम प्रियाय धीमहि। तन्नो सीता प्रचोदयात्॥"
इन मंत्रों का 108 बार जाप करें।
आरती और प्रसाद वितरण:
पूजा के अंत में माता सीता और भगवान राम की आरती करें।
भोग को प्रसाद के रूप में परिवार और मित्रों में वितरित करें।

व्रत का पालन: व्रत करने वाली महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास रख सकती हैं या सात्विक भोजन (दूध, फल, सूखे मेवे) ग्रहण कर सकती हैं।
अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

सीता नवमी व्रत के लाभ

वैवाहिक सुख: यह व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और सम्मान को बढ़ाता है। माता सीता के समर्पण से प्रेरित होकर, यह व्रत दांपत्य जीवन में सुख-शांति लाता है।
समृद्धि और खुशहाली: माता सीता और देवी लक्ष्मी की कृपा से धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
स्वास्थ्य और दीर्घायु: पति की लंबी आयु और परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी है।
आध्यात्मिक उन्नति: माता सीता की पूजा और रामायण पाठ से मन की शांति और आध्यात्मिक विकास होता है।

विशेष उपाय

हनुमान जी को सिंदूर: सीता नवमी के दिन हनुमान जी की मूर्ति का सिंदूर माता सीता के चरणों में अर्पित करें। यह उपाय जीवन की बाधाओं को दूर करता है।
केसरिया ध्वज: घर या मंदिर में केसरिया ध्वज लगाएं और भगवान राम व माता सीता को पीले वस्त्र अर्पित करें। इससे मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पारिजात का पौधा: इस दिन पारिजात का पौधा लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है।

 

 

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