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Pradosh Vrat 2025: कुछ पत्ते और दूध बना देंगे बिगड़ी, मिट जाएगी हर पीड़ा, जानें दिन और मुहूर्त

प्रदोष का व्रत भगवान शंकर और माता पार्वती को समर्पित होता है। इस दिन विधि विधान पूर्वक भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा-आराधना करने से सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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Mukesh Pandit
Pradosh vrat

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत बेहद गुणकारी माना गया है। हर महीने पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। एक वर्ष में 24 प्रदोष का व्रत रखा जाते हैं, जिसमें प्रत्येक महीने दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है। प्रदोष का व्रत भगवान शंकर और माता पार्वती को समर्पित होता है। इस दिन विधि विधान पूर्वक भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा-आराधना करने से सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइये जानते हैं कि जून महीने में प्रदोष व्रत कब है, इसके शुभ मुहूर्त क्या हैं और इस दिन किन चीजों का दान करने का विधान है।

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रवि प्रदोष व्रत का महत्व 

जब यह व्रत रविवार को पड़ता है, तो इसे "रवि प्रदोष व्रत" कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष काल वह समय है जब भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं, और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। रवि प्रदोष व्रत का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि रविवार सूर्य देव को समर्पित दिन है, और इस दिन शिव और सूर्य की संयुक्त पूजा से स्वास्थ्य, समृद्धि, और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर है, वे करें व्रत

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मान्यता है कि रवि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के दोष, जैसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, मानसिक अशांति, और आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो लगातार बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं या जिनकी कुंडली में सूर्य ग्रह कमजोर है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि इस व्रत के प्रभाव से दो गायों के दान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा, रवि प्रदोष व्रत से खोया हुआ मान-सम्मान वापस पाया जा सकता है, और भविष्य में उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।

सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सहायक

रवि प्रदोष व्रत का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सहायक है। जो लोग लंबे समय से स्वास्थ्य, धन, या संतान सुख की कामना कर रहे हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है। कलियुग में यह व्रत अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस व्रत के प्रभाव से न केवल व्यक्तिगत जीवन में सुख-शांति आती है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक जीवन में भी उन्नति होती है। hindu festival | Pradosh Vrat | Vrat & parve | hindu 

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रवि प्रदोष व्रत, कब करें पूजा

प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है, जो शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में आती है। इस प्रकार, एक महीने में दो प्रदोष व्रत होते हैं। रवि प्रदोष व्रत तब मनाया जाता है जब त्रयोदशी तिथि रविवार के दिन पड़ती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि का समय सूर्यास्त से पहले और बाद के समय को प्रभावित करता है, और प्रदोष काल सूर्यास्त के समय से शुरू होकर लगभग 48 मिनट (दो घड़ी) तक रहता है। कुछ विद्वानों के मतानुसार, यह सूर्यास्त से 45 मिनट पहले से सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय भी माना जाता है।

रवि प्रदोष व्रत की तिथियां 

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2025 में रवि प्रदोष व्रत की तिथियां पंचांग के आधार पर निर्धारित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, यदि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 8 या 9 जून 2025 को रविवार के दिन पड़ती है, तो यह रवि प्रदोष व्रत होगा। पूजा का शुभ मुहूर्त आमतौर पर सायंकाल में होता है, जो सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरू होकर सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक रहता है। उदाहरण के लिए, यदि सूर्यास्त शाम 6:30 बजे है, तो पूजा का समय लगभग 6:00 बजे से 7:15 बजे तक हो सकता है। सटीक मुहूर्त के लिए स्थानीय पंचांग की जांच करना उचित है, क्योंकि यह स्थान और समय के अनुसार भिन्न हो सकता है।

रवि प्रदोष व्रत की पूजा विधि सरल लेकिन श्रद्धा और नियमों के साथ की जानी चाहिए।

पूजा की तैयारी

व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में या सूर्योदय से पहले उठें। स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ और हल्के रंग के वस्त्र (विशेष रूप से सफेद या पीले) धारण करें। हाथ में जल, अक्षत, और फूल लेकर रवि प्रदोष व्रत का संकल्प करें। संकल्प में भगवान शिव और सूर्य देव से स्वास्थ्य, सुख, और समृद्धि की प्रार्थना करें। एक जल से भरा कलश, बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद फूल, सफेद चंदन, धूप, दीप, घी, सफेद मिठाई, अक्षत, गंगाजल, दूध, दही, शहद, आम की लकड़ी, और हवन सामग्री तैयार करें।

पूजा विधि

सुबह स्नान के बाद पूजा घर की सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें। भगवान शिव, माता पार्वती, और सूर्य देव का स्मरण करें। शिवलिंग को एक पात्र में स्थापित करें और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल) से अभिषेक करें। शिवलिंग पर चंदन लगाएं, बेलपत्र, फूल, और धतूरा अर्पित करें।
मन ही मन "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।

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