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अनोखी है यहां की Holi की परंपरा, गुलाल नहीं जलती च‍ितांओं की राख से खेली जाती है होली

काशी के मणि‍कर्णिका घाट पर होली खेलने की परंपरा ब‍िल्‍कुल अलग और अनोखी है। यहां रंग और गुलाल की जगह जलती च‍िताओं की राख से होली खेली जाती है। इसके ल‍िए साधु संत होली से पहले ही यहां जुटने लगते हैं।

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Ranjana Sharma
काशी
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Holi Festival : होली की खुमारी देश भर में छाने लगी है। बाजर भी अब इसके रंग में नजर आने लगे हैं। पूरे भारत में जहां रंग और गुलाल से होली खेली जाती हैं वहीं काशी के मणि‍कर्णिका घाट पर होली खेलने की परंपरा ब‍िल्‍कुल अलग और अनोखी है। यहां रंग और गुलाल की जगह जलती च‍िताओं की राख से होली खेली जाती है। इसके ल‍िए साधु संत होली से पहले ही यहां जुटने लगते हैं।

 होली की खुमारी देश भर में 

मणि‍कर्णिका घाट पर मसाने की होली एक अजीब और अनोखी परंपरा है जो वाराणसी में आयोजित होती है। इस परंपरा में घाट पर उड़ती हुई चिता की राख से होली खेली जाती है। इस मौके पर शिव तांडव और नरमुंड माला जैसी तांत्रिक और भूत-प्रेत से जुड़ी अनूठी दृश्यावलियों का आयोजन होता है। इसे देखने के लिए दुनियाभर से भारी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। इस साल 20 देशों से लगभग 5 लाख लोगों के वाराणसी पहुंचने की संभावना है। 

श‍िव का दिखता है रौद्र रूप

मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली के इस आयोजन में श‍िव और मां काली का रौद्र रूप दिखाई देता है। गले में नरमुंड की माला और मुंह से आग के गोले उगलते तांत्रिकों का दृश्य भयाभव होता है। इस दौरान शिव तांडव के साथ-साथ यहां के अघोरी अपनी पारंपरिक विदाओं का प्रदर्शन करते हैं। चिता की राख की धुंआ और रौशनी के बीच यह होली अनोखे तरीके से खेली जाती है जो न केवल इस शहर की धार्मिक विविधता को दर्शाता है बल्कि पूरे विश्व में एक अद्भुत सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी पहचान बना चुका है।

5 लाख पर्यटक देखें के मसाने की होली

मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली को देखने के लिए इस साल 20 देशों से करीब 5 लाख पर्यटक वाराणसी पहुंचने की संभावना है। यहां के तांत्रिक खेल, सांस्कृतिक प्रस्तुति और शवदाह घाट का माहौल एक ऐतिहासिक और धार्मिक अनुभव प्रदान करते हैं जो अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। खासकर वे लोग जो भारत की पारंपरिक और प्राचीन धर्म-परंपराओं में  रुचि रखते हैं इस आयोजन में भाग लेने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

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