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त्रयोदशी श्राद्ध : इस दिन तर्पण, पिंडदान और दान करने से अल्पायु में दिवगंत पितरों को मिलती है शांति

श्राद्ध, श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्मकांडों का एक अनुष्ठान है, इसमें पिंड, तर्पण और दान शामिल होते हैं, जो पूर्वजों को तृप्त करते हैं और पितृ ऋण से मुक्ति दिलाते हैं। जो पूर्वजों को तृप्त करते हैं और पितृ ऋण से मुक्ति दिलाते हैं

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Mukesh Pandit
Triyodash Shrad

अपने पितरों के लिए श्रद्धा पर्व में किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। श्राद्ध पक्ष का महात्म्य उत्तर व उत्तर-पूर्व भारत में अधिक है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु में आदि अमावसाई, केरल में करिकडा वावुबली और महाराष्ट्र में इसे पितृ पंधरवडा नाम से पुकारा जाता हैं। श्राद्ध पर्व का महत्व मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति, मोक्ष प्राप्ति और वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिलाने में है। यह श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्मकांडों का एक अनुष्ठान है, इसमें पिंड, तर्पण और दान शामिल होते हैं, जो पूर्वजों को तृप्त करते हैं और पितृ ऋण से मुक्ति दिलाते हैं। 

।ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।...ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय

अर्थात: पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें। ऐसा भाव करके मंत्र जाप करें।

त्रयोदशी का श्राद्ध का महत्व

त्रयोदशी श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान आने वाली एक महत्वपूर्ण तिथि है। पितृ पक्ष हिंदू धर्म में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने का एक विशेष समय होता है। इस दौरान, लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए विभिन्न प्रकार के श्राद्ध कर्म करते हैं। त्रयोदशी तिथि पर भी श्राद्ध किया जाता है। त्रयोदशी श्राद्ध पितृपक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से अल्पायु में दिवंगत हुए पितरों तथा संतान की मृत्यु से दुखी हुए लोगों के श्राद्ध का महत्व है। तर्पण, पिंडदान और दान करना शुभ माना जाता है। 

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त्रयोदशी श्राद्ध कब है?

पितृ पक्ष की तिथियां हर साल बदलती रहती हैं। इस साल पितृ पक्ष में त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध सितंबर 19, 2025 (शुक्रवार) को किया जाएगा। इस दिन पितरों का तर्पण किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हें दान दिया जाता है।

क्या है त्रयोदशी श्राद्ध ?

त्रयोदशी श्राद्ध, दिवंगत पूर्वजों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक पवित्र अवसर है। यह श्राद्ध, पितृ पक्ष में आश्विन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। त्रयोदशी श्राद्ध, मृत बच्चों के लिए भी शुभ माना जाता है। अगर बच्चे की मृत्यु तिथि का पता न हो, तो त्रयोदशी को ही श्राद्ध किया जा सकता है। त्रयोदशी श्राद्ध, शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किया जा सकता है। त्रयोदशी श्राद्ध के लिए, पंचांग में अभिजीत मुहूर्त देखकर श्राद्ध करना चाहिए।

त्रयोदशी श्राद्ध मुहूर्त

तारीखः सितंबर 19, 2025 (शुक्रवार), कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:50 से दोपहर 12:39 बजे तक, रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:39 से 01:28 बजे तक, अपराह्न काल - दोपहर 01:28 से 03:55 बजे तक।

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त्रयोदशी श्राद्ध कैसे करें?

त्रयोदशी श्राद्ध के लिए, पितृ पक्ष में आने वाली त्रयोदशी को चुना जाता है। अगर किसी बच्चे की मृत्यु त्रयोदशी को हुई थी, तो उसका श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है। अगर बच्चे की मृत्यु की तारीख पता न हो, तो त्रयोदशी को ही पूर्ण विधि-विधान से श्राद्ध किया जा सकता है। त्रयोदशी श्राद्ध के दिन, पितरों को अन्न-जल का भोग लगाया जाता है। त्रयोदशी श्राद्ध के दिन, पूर्वजों के लिए मोक्ष की कामना की जाती है और मंत्रों का जाप किया जाता है।  श्राद्ध करने वाले जातक पहले स्वयं स्नान करके शुद्ध हो जाएं, उसके बाद श्राद्ध कर्म करने वाले स्थान को भी शुद्ध कर लें। कुश, जल, तिल, गंगाजल, दूध, घी, शहद की जलांजलि देने के बाद दीपक, अगरबत्ती, धूप जलाएं। श्राद्ध से पहले पितरों का स्मरण करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें। तिल के पिंड बनाकर पितरों को अर्पित किए जाते हैं।

त्रयोदशी श्राद्ध का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, त्रयोदशी तिथि का विशेष महत्व होता है। यह तिथि चंद्रमा की स्थिति से जुड़ी होती है और माना जाता है कि चंद्रमा का प्रभाव पितृ लोक पर होता है। इसलिए, इस दिन पितृ देवों को समर्पित करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। अलग-अलग स्थानों पर त्रयोदशी श्राद्ध तिथि को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। गुजरात की तरह इसे काकबली और बलभोलनी तेरस के नाम से भी जाना जाता है। कई स्थानों पर इसे तेरस श्राद्ध भी कहा जाता है।

मृत बच्चों का श्राद्ध करने के लिए त्रयोदशी तिथि शुभ मानी जाती है। हालांकि, पितृ पक्ष में केवल शिशु की मृत्यु तिथि पर ही श्राद्ध किया जाता है, लेकिन यदि तिथि ज्ञात न हो तो त्रयोदशी के दिन पूरे विधि-विधान से श्राद्ध किया जा सकता है। इस तिथि पर किए गए श्राद्ध से बच्चों की मृत आत्माओं को शांति मिलती है। hindu | Hindu festivals | hindu festival | Hindu Dharm Guru | hindu god | hindu guru | Trayodashi Shradh 2025 

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