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वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, जिसे अक्षय तृतीया या आखा तीज के नाम से जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ मानी जाती है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार अप्रैल या मई माह में आता है। इस दिन किए गए कार्यों का फल अक्षय, अर्थात् कभी नष्ट न होने वाला माना जाता है। यह तिथि धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखती है। माना जाता है कि इस दिन किए गए कार्यों का फल कभी क्षय नहीं होता, बल्कि अक्षय रहता है। इस दिन जो भी शुभ कार्य, पूजा-पाठ या दान-पुण्य आदि किया जाता है, उसका फल हमेशा मिलता रहता है।
अक्षय तृतीया 2025 का महत्व
अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा अर्चना करने का विधान है। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है और व्यक्ति का भंडार सदैव धन-धान्य से भरा रहता है। इस साल अक्षय तृतीया पर बेहद ही शुभ संयोग बनने जा रहा है, जो इस दिन के महत्व को और भी बढ़ा देगा।
"अक्षय" का अर्थात "जो कभी नष्ट न हो"
अक्षय तृतीया का महत्व पौराणिक, धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अत्यंत व्यापक है। संस्कृत में "अक्षय" का अर्थ है "जो कभी नष्ट न हो" और "तृतीया" का अर्थ है तीसरी तिथि। इस दिन किए गए पुण्य कार्य, दान, जप, तप और पूजा का फल अनंत और स्थायी माना जाता है। स्कंद पुराण और भविष्य पुराण के अनुसार, इस तिथि को भगवान विष्णु ने अपने परशुराम अवतार में जन्म लिया था। इसलिए, इसे परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, विशेषकर दक्षिण भारत और कोंकण क्षेत्र में। मान्यता है कि इस दिन सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था, जिसके कारण इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है। जैन धर्म में भी इस तिथि का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने अपनी 400 दिनों की तपस्या पूरी की थी और गन्ने के रस का पारणा किया था। इस तपस्या को वर्षीतप के नाम से जाना जाता है, और जैन अनुयायी इस दिन विशेष पूजा और उपवास करते हैं।
अक्षय तृतीया पर स्वयंसिद्ध मुहूर्त
अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है। इस दिन बिना पंचांग देखे विवाह, गृह प्रवेश, आभूषण खरीदारी, नई संस्था की स्थापना जैसे शुभ कार्य किए जा सकते हैं। यह तिथि सूर्य और चंद्रमा की उच्च राशियों में स्थिति के कारण विशेष शुभ फलदायी होती है। साथ ही, इस दिन दान-पुण्य, गंगा स्नान और पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है, क्योंकि यह पुण्य और समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
कब मनाई जाती है अक्षय तृतीया 2025?
अक्षय तृतीया प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह तिथि सामान्यतः अप्रैल या मई माह में पड़ती है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2025 में अक्षय तृतीया 29 अप्रैल को शाम 5:31 बजे से शुरू होगी और 30 अप्रैल को दोपहर 2:12 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के आधार पर यह पर्व 30 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा। यह तिथि चंद्रमा की गति पर आधारित होती है, और इसकी अवधि 19 से 26 घंटों तक हो सकती है।
पूजन की विधि
अक्षय तृतीया की पूजा विधि सरल और प्रभावशाली है। इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, भगवान परशुराम और कुबेर जी की पूजा की जाती है। निम्नलिखित चरणों में पूजा की विधि को समझा जा सकता है:
प्रातः स्नान और तैयारी: सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी, सरोवर या घर पर गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को साफ करें। पूजा स्थल की सजावट: पूजा स्थल पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं। भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और परशुराम जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। कुबेर जी की पूजा के लिए एक छोटा कलश भी रख सकते हैं। पूजा शुरू करने से पहले संकल्प लें। अपने हाथ में जल, फूल और चावल लेकर पूजा का उद्देश्य (सुख, समृद्धि, पुण्य) बोलें और जल छोड़ दें।
पूजा सामग्री:
धूप, दीप, फूल, चंदन, कुमकुम, अक्षत, तुलसी पत्र, मिठाई, फल और पंचामृत तैयार करें।
अर्घ्य और मंत्र जप:
भगवान विष्णु को तुलसी पत्र और सफेद फूल अर्पित करें। मंत्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" या "ॐ माधवाय नमः" का 108 बार जप करें। माता लक्ष्मी के लिए "ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः" मंत्र का जप करें। परशुराम जी को अर्घ्य देते समय "ॐ परशुरामाय नमः" मंत्र का उच्चारण करें।
कुबेर पूजा:
धन के देवता कुबेर की पूजा के लिए कलश में जल, सिक्के और फूल डालें। "ॐ कुबेराय नमः" मंत्र का जप करें।
दान और पुण्य कार्य:
पूजा के बाद गरीबों को भोजन, वस्त्र, जल या धन का दान करें। जल दान का विशेष महत्व है, जैसे प्याऊ लगाना या राहगीरों को जल पिलाना।
आरती और प्रसाद वितरण:
विष्णु जी, लक्ष्मी जी और परशुराम जी की आरती करें। प्रसाद में मिठाई, फल और भीगे चने शामिल करें, जिसे परिवार और जरूरतमंदों में बांटें।
व्रत और उपवास:
कुछ लोग इस दिन उपवास रखते हैं, जिसमें केवल सात्विक भोजन या फलाहार ग्रहण किया जाता है। जैन अनुयायी वर्षीतप के अंत में विशेष उपवास करते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण कार्य
अक्षय तृतीया के दिन सोना, चांदी, वस्त्र, जमीन या वाहन खरीदना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह समृद्धि का प्रतीक है। गौरी- पार्वती की पूजा भी सौभाग्यवती स्त्रियों और कन्याओं द्वारा की जाती है, जिसमें मिट्टी या धातु के कलश में जल, फूल और अन्न दान किया जाता है। इस दिन तुलसी और पीपल के वृक्ष की पूजा भी की जाती है, जो पुण्यदायी मानी जाती है। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, अर्थात् अक्षय तृतीया, हिंदू और जैन धर्म में एक ऐसा पर्व है जो सुख, समृद्धि और पुण्य की प्राप्ति का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु, परशुराम, माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा, दान-पुण्य और शुभ कार्यों से जीवन में स्थायी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पूजा की सरल विधि और इस तिथि की पवित्रता इसे सभी के लिए विशेष बनाती है। यह पर्व हमें धार्मिकता, उदारता और समृद्धि के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।