UNESCO South Asia chief गंगा में डुबकी के बाद बोले, कुंभ मेले में निहित मूल्य विश्व के लिए आवश्यक
कुंभ मेले को 2017 में यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया था। नई दिल्ली में दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय कार्यालय ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर एक पोस्ट में कर्टिस की महाकुंभ यात्रा की तस्वीरें साझा कीं।
दक्षिण एशिया के लिए यूनेस्को के क्षेत्रीय निदेशक टिम कर्टिस ने कहा कि भारत में आयोजित कुंभ मेले में निहित 'समावेशिता और सामाजिक संवाद' के मूल्य समकालीन दुनिया के लिए आवश्यक हैं। कुंभ मेले को 2017 में यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया था। नई दिल्ली में दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय कार्यालय ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर एक पोस्ट में कर्टिस की महाकुंभ यात्रा की तस्वीरें साझा कीं।
Photograph: (X)
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कुंभ से प्रभावित नजर आए यूनस्को चीफ
पोस्ट के मुताबिक, “प्रयागराज में महाकुंभ मेले में यूनेस्को दक्षिण एशिया के निदेशक टिम कर्टिस ने इस बात पर जोर दिया : कुंभ मेले में निहित मूल्य-जैसे समावेशिता और सामाजिक संवाद-हमारी समकालीन दुनिया में आवश्यक हैं।” ‘एक्स’ पर ‘महाकुंभ’ के आधिकारिक हैंडल से भी कर्टिस की यात्रा की तस्वीरें साझा की गईं और लिखा गया, “यूनेस्को के नयी दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय के निदेशक और भूटान, भारत, मालदीव और श्रीलंका में प्रतिनिधि टिम कर्टिस ने प्रयागराज में कला कुंभ का दौरा किया।”
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गंगा में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं
यूनेस्को के क्षेत्रीय कार्यालय ने एक अन्य पोस्ट में कहा, “यूनेस्को की ओर से अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता प्राप्त कुंभ मेला भारत की जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाता है।” यूनेस्को की वेबसाइट पर कुंभ मेले के बारे में दिए गए विवरण के मुताबिक, “कुंभ मेला धरती पर तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है। इस दौरान, श्रद्धालु पवित्र नदी में स्नान करते हैं। उनका मानना है कि गंगा में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।”
कुंभ संस्कृति की विराट विरासत
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विवरण के अनुसार, “इस आयोजन में तपस्वी, संत, साधु, कल्पवासी और आगंतुक शामिल होते हैं। यह उत्सव इलाहाबाद (अब प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में हर चार साल में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है और इसमें जाति, पंथ या लिंग से परे लाखों लोग शामिल होते हैं। हालांकि, इसके मुख्य आयोजक अखाड़ों और आश्रमों, धार्मिक संगठनों से जुड़े होते हैं या फिर वे व्यक्ति होते हैं, जो दान पर जीवन यापन करते हैं।”