/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/10/woCSEEQBk4Fu1VWJRq52.jpg)
वैशाख माह हिंदू पंचांग के अनुसार दूसरा महीना है, जो चैत्र मास के बाद और ज्येष्ठ मास से पहले आता है। यह माह विशेष रूप से भगवान विष्णु और उनके अवतार भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के लिए अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। वैशाख मास में श्रीकृष्ण की भक्ति करने से भक्तों को अनंत फल की प्राप्ति होती है, क्योंकि इस माह का संबंध प्रकृति के नवोदय और आध्यात्मिक शुद्धि से है। इस समय सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में होते हैं, जो ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक है, और यह ऊर्जा भक्ति के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण को और अधिक प्रभावशाली बनाती है।
14 अप्रैल से हो रही है शुरुआत
इस वर्ष वैशाख मास की शुरुआत 14 अप्रैल से हो रही है और यह 13 मई 2025 तक चलेगा। वैशाख माह का नाम विशाखा नक्षत्र से जुड़ा हुआ है, जिस कारण इसे 'वैशाख' कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथ स्कंद पुराण में इस मास को पुण्य अर्जित करने वाला बताया गया है और इसे ‘माधव मास’ की संज्ञा दी गई है, जो भगवान श्री कृष्ण के एक दिव्य नाम का प्रतीक है। यह महीना धर्म, दान और भक्ति के लिए अत्यंत उपयुक्त माना गया है और इसका आध्यात्मिक महत्व अपार है।
वैशाख मास में श्रीकृष्णा की आराधना का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण, जो भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं, अपनी लीलाओं और उपदेशों के लिए प्रसिद्ध हैं। वैशाख मास में उनकी आराधना का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि इस माह में प्रकृति का सौंदर्य और हरियाली श्रीकृष्ण की वृंदावन लीला से मेल खाती है। इस माह में भक्त व्रत, दान, स्नान और पूजा के माध्यम से श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि वैशाख माह में किया गया एक छोटा सा पुण्य कार्य भी अन्य माह की तुलना में कई गुना फल देता है। श्रीकृष्ण की कृपा से भक्तों को सुख, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रीकृष्ण की पूजा के लिए कई विधियां
वैशाख मास में श्रीकृष्ण की पूजा के लिए कई विधियां प्रचलित हैं। भक्त प्रातःकाल उठकर पवित्र नदियों या घर में स्नान करते हैं, फिर श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीप जलाकर उनकी पूजा करते हैं।
इस दौरान "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना विशेष फलदायी माना जाता है। इसके साथ ही, तुलसी पत्र, चंदन, फूल और माखन-मिश्री का भोग लगाना श्रीकृष्ण को अति प्रिय है। भागवत पुराण और गीता का पाठ भी इस माह में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि ये ग्रंथ श्रीकृष्ण के दिव्य उपदेशों का संग्रह हैं।
दान का भी विशेष महत्व
इस माह में दान का भी विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण के भक्त जल, छाता, फल, वस्त्र और अन्न का दान करते हैं, जिससे उनकी कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि वैशाख मास में श्रीकृष्ण की भक्ति करने वाला व्यक्ति पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त करता है। श्रीकृष्ण स्वयं गीता में कहते हैं कि जो भक्त पूर्ण समर्पण के साथ उनकी शरण में आता है, उसे सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। इस प्रकार, वैशाख मास में उनकी आराधना न केवल भौतिक सुख प्रदान करती है, बल्कि आत्मिक शांति और परम लक्ष्य की ओर भी ले जाती है।
श्रीकृष्ण की भक्ति का फल अनंत
वैशाख मास में श्रीकृष्ण की भक्ति का फल अनंत है। यह माह भक्तों को अपने जीवन को शुद्ध करने, सकारात्मकता अपनाने और ईश्वर के प्रति श्रद्धा बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। जो भक्त सच्चे मन से श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं, उन्हें न केवल इस लोक में सुख-शांति मिलती है, बल्कि परलोक में भी उनकी कृपा प्राप्त होती है। इसलिए, वैशाख मास को श्रीकृष्ण की भक्ति का स्वर्णिम समय मानकर इसका लाभ उठाना चाहिए।
वैशाख माह 2025 का यह नाम कैसे पड़ा?
वैशाख माह का नामकरण विशाखा नक्षत्र से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे वैशाख माह कहा जाता है। विशाखा नक्षत्र के स्वामी देवगुरु बृहस्पति माने जाते हैं, जबकि इसके अधिदेवता इंद्र देव हैं। इसी वजह से इस माह में स्नान, दान, व्रत और पूजा-पाठ का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वैशाख मास में किए गए पुण्य कार्य विशेषकर दान का फल अक्षय होता है, अर्थात यह पुण्य कभी समाप्त नहीं होता। यही कारण है कि यह महीना आध्यात्मिक साधना और धर्म-कर्म के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
वैशाख माह 2025 का क्या महत्व है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वैशाख माह की विशेषता यह है कि इसके अधिपति भगवान विष्णु माने गए हैं और इस पूरे महीने उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्तों का उपयोग अत्यंत आवश्यक और शुभ माना गया है। इस पावन माह में भगवान श्रीकृष्ण और भगवान परशुराम की आराधना का भी विशेष विधान है।
वैशाख माह 2025 के क्या नियम हैं?
वैशाख महीने में राहगीरों को शीतल जल पिलाना, प्याऊ लगवाना और रसीले फलों का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस पवित्र माह में जल का दान करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और दोष दूर हो जाते हैं, और उसके जीवन में सुख-शांति तथा खुशियों का आगमन होता है। वैशाख मास में किया गया दान इतना फलदायी होता है कि इसे पूरे वर्ष तक किए गए दान के बराबर माना गया है। इस कारण भक्तजन इस महीने में सेवा, परोपकार और दान-पुण्य के कार्यों में विशेष रूप से संलग्न रहते हैं।
संयमित जीवन शैली अपनाएं
वैशाख माह में संयमित जीवनशैली अपनाने की सलाह दी जाती है। इस पवित्र महीने में तला-भुना और मसालेदार भोजन त्यागना चाहिए, क्योंकि यह सेहत पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। स्वास्थ्य और आत्मशुद्धि के दृष्टिकोण से एक समय भोजन करना उत्तम माना गया है। साथ ही, शरीर पर नया तेल लगाने से भी परहेज करना चाहिए। धार्मिक अनुशासन के अनुसार, इस माह में जमीन पर सोना चाहिए, जिससे शरीर में विनम्रता और साधना के प्रति समर्पण की भावना उत्पन्न होती है। यह सब आचार-व्यवहार वैशाख के माह को और भी पुण्यकारी बनाते हैं।