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Kanwar Yatra
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सावन में ही कांवड़ यात्रा क्यों?
सावन मास को भगवान शिव का अत्यंत प्रिय समय माना जाता है, इसी महीने में शिवभक्त विशेष रूप से पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं।
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कांवड़ यात्रा की शुरुआत
कांवड़ यात्रा में भक्त गंगाजल लाने के लिए पैदल चलते हैं और उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यह परंपरा हजारों साल पुरानी मानी जाती है।
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धार्मिक उत्साह और अनुशासन
भगवा वस्त्र पहने, डमरू और त्रिशूल लिए कांवड़िये धार्मिक अनुशासन का पालन करते हैं और ‘बोल जय भोलेनाथ ’ के जयघोष से वातावरण गूंज उठता है।
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जलाभिषेक की परंपरा
सावन में शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने से पुण्य और मनोकामनाओं की पूर्ति मानी जाती है। यह कांवड़ यात्रा का मुख्य उद्देश्य होता है।
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सावन में जल का महत्व
सावन में मानसून के कारण नदियों में जल प्रचुर मात्रा में होता है। गंगा से जल लेना और उसे दूर-दराज तक पहुंचाना व्यावहारिक रूप से भी संभव होता है।
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पौराणिक कथाओं से जुड़ाव
मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान शिव ने हलाहल विष पिया था और सावन में देवता उन्हें शांत रखने हेतु जल अर्पित करते हैं यही परंपरा भक्त भी निभाते हैं।
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समूह में यात्रा – एकता और सहयोग
कांवड़ यात्रा सिर्फ एक यात्रा नहीं , सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। समूह में चलने से सेवा, सहयोग और अनुशासन का भाव उत्पन्न होता है।
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आस्था की हद
सावन में कांवड़ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, संकल्प और ईश्वर भक्ति का जीवंत उदाहरण है।