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श्रीकृष्ण को क्यों लगाते हैं 56 भोग? जानें जन्माष्टमी की वो कहानी जो आपको हैरान कर देगी

जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाने की अद्भुत कहानी। जब इंद्रदेव ने क्रोध कर ब्रज पर जमकर बारिश की तो श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक पर्वत को उठाए रखा। 7 दिन भूखे प्यासे रह गए। जानें इसी कहानी में छिपा है 56 भोग का रहस्य।

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Ajit Kumar Pandey
श्रीकृष्ण को क्यों लगाते हैं 56 भोग? जानें जन्माष्टमी की वो कहानी जो आपको हैरान कर देगी | यंग भारत न्यूज

श्रीकृष्ण को क्यों लगाते हैं 56 भोग? जानें जन्माष्टमी की वो कहानी जो आपको हैरान कर देगी | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । जन्माष्टमी का पर्व आते ही घरों में भगवान कृष्ण के लिए 56 तरह के पकवान बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है। यह एक ऐसी परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि यह संख्या 56 ही क्यों है? इस खास संख्या के पीछे एक दिल को छू लेने वाली कहानी छुपी है, जो भगवान कृष्ण के बचपन से जुड़ी हुई है। आइए जानते हैं, इस कहानी के बारे में जो आपको न सिर्फ हैरान करेगी, बल्कि भक्ति के रस में भी डुबो देगी।

गोवर्धन पर्वत और इंद्रदेव का अहंकार

यह बात उस समय की है जब बाल गोपाल श्रीकृष्ण ब्रज में रहते थे। ब्रज के लोग हर साल इंद्रदेव की पूजा करते थे, ताकि वे प्रसन्न होकर अच्छी बारिश दें और उनकी फसलें हरी-भरी रहें। श्रीकृष्ण ने अपने पिता नंद बाबा से पूछा, "पिताजी, हम इंद्रदेव की पूजा क्यों करते हैं? हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वही हमें फल-सब्जियां देता है और हमारे पशुओं के लिए चारा उगाता है।"

श्रीकृष्ण की बात सुनकर ब्रजवासियों को उनकी बात में सच्चाई नजर आई। उन्होंने इंद्रदेव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। यह देखकर इंद्रदेव को बहुत गुस्सा आया। उन्हें लगा कि ब्रज के लोगों ने उनका अपमान किया है।

जब श्रीकृष्ण ने उठा लिया गोवर्धन पर्वत

इंद्रदेव ने अपने अहंकार में आकर ब्रज पर भयंकर बारिश शुरू कर दी। मूसलाधार बारिश से गांव में बाढ़ जैसी स्थिति बन गई। ब्रज के लोग और पशु-पक्षी घबरा गए। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। उन्होंने गांव के सभी लोगों और उनके पशुओं को पर्वत के नीचे सुरक्षित स्थान दिया।

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श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक लगातार गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा, ताकि कोई भी बारिश से परेशान न हो। इन सात दिनों में उन्होंने कुछ भी नहीं खाया। जब इंद्रदेव का क्रोध शांत हुआ और बारिश रुकी, तब सभी ने देखा कि उनका प्यारा कान्हा सात दिनों से भूखा है।

मां यशोदा और ब्रजवासियों का प्यार भरा 56 भोग

माता यशोदा अपने कान्हा को दिन में आठ बार खाना खिलाती थीं। जब उन्हें पता चला कि उनका लाडला सात दिनों से भूखा है, तो उनका दिल पिघल गया। उनके प्रेम और दुख का कोई ठिकाना न रहा। उन्होंने और ब्रज के सभी लोगों ने मिलकर श्रीकृष्ण के लिए एक साथ 56 प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए, ताकि वे सात दिनों के भोजन की कमी पूरी कर सकें।

यह 56 पकवान, सात दिनों के लिए 8 पकवान के हिसाब से बने थे (7×8=56)। तभी से यह परंपरा बन गई कि जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग चढ़ाया जाता है।

56 भोग में क्या-क्या होता है?

56 भोग में हर तरह के पकवान शामिल होते हैं, जिनमें

अनाज: चावल, दाल, रोटी, पूड़ी, खिचड़ी

मिठाइयां: लड्डू, पेड़ा, रबड़ी, बर्फी, खीर

नमकीन: कचौरी, समोसा, पकौड़ी

डेयरी उत्पाद: माखन, दही, पनीर, घी

फल: केला, सेब, संतरा, अंगूर

पेय पदार्थ: लस्सी, शरबत, ठंडे पेय

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यह सभी पकवान भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्तों का प्रेम और सम्मान दर्शाते हैं। जन्माष्टमी पर 56 भोग सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि भक्तों के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है।

भक्तों के लिए 56 भोग का महत्व

आज भी, जब हम जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाते हैं, तो यह सिर्फ खाने का भोग नहीं होता। यह माता यशोदा और ब्रजवासियों के उस गहरे प्रेम और त्याग की याद दिलाता है। यह हमें सिखाता है कि भक्ति सिर्फ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि इसमें प्रेम, समर्पण और त्याग का भाव भी होना चाहिए।

Krishna Janmashtami 2025 | Janmashtami 2025 | 56 Bhog Story | Govardhan Leela 

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