नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ के आयोजन की तैयारियां जोरों पर हैं। महाकुंभ दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है। हिंदू धर्म में इसे बेहद पवित्र माना जाता है। प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम पर इसका आयोजन होता है। महाकुंभ के बारे में अक्सर यह सवाल उठता है कि यह 12 साल बाद ही क्यों लगता है। इसकी वजह काफी रोचक और चौंकाने वाली है।
समुद्र मंथन से है संबंध
महाकुंभ मेला 12 साल बाद क्यों लगता है, इसका जवाब पौराणिक कथाओं में देखा जा सकता है। दरअसल, माना जाता है कि महाकुंभ का संबंध समुद्र मंथन से है। समुद्र मंथन से अमृत निकला था, जिसे लेकर देवताओं और असुरों के बीच लड़ाई छिड़ गई थी। माना जाता है कि अमृत कलश से कुछ बूंदें निकलकर धरती के चार स्थानों पर गिरीं - हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज। इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। माना जाता है कि देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला था जो मनुष्य के 12 साल के बराबर होते हैं। यही वजह है कि 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन होता है।
तीर्थराज है प्रयागराज
इस साल 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक प्रयागराज महाकुंभ मेले का आयोजन होगा। देश दुनिया से करोड़ों लोग महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज पहुंचेंगे। महाकुंभ के समय प्रयागराज में संगम तट पर नहाने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि यहां स्नान करने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल सकती है। प्रयागराज को शास्त्रों में तीर्थराज यानी तीर्थ स्थलों का राजा कहा गया है। ऐसा भी माना जाता है ब्रह्मा जी ने पहला यज्ञ प्रयागराज में ही किया था। मान्यता है कि कुंभ मेले में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है और इससे जन्म-मृत्यु के चक्र से भी मुक्ति मिल जाती है।
महाकुंभ के लिए खास इंतजाम
प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। 2013 की तुलना में 2025 में प्रयागराज में आयोजित होने वाले कुंभ मेले का क्षेत्रफल दोगुने से अधिक है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने महाकुंभ 2025 के आयोजन के लिए 2600 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया था। महाकुंभ के समय बेहतर प्रशासन के लिए यूपी सरकार ने महाकुंभ क्षेत्र को एक नया जिला घोषित किया है।