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वृषभ संक्रांति हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय और धार्मिक घटना है, जो सूर्य के मेष राशि से वृषभ राशि में प्रवेश करने पर मनाई जाती है। यह संक्रांति वर्ष की 12 संक्रांतियों में से एक है, और इसे मकर संक्रांति के समान पवित्र माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक और जीवन का आधार माना गया है। वृषभ संक्रांति के दिन सूर्य की उपासना से मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ, और करियर में सफलता प्राप्त होती है। यह समय मौसम में परिवर्तन का भी प्रतीक है, क्योंकि उत्तरी गोलार्ध में गर्मी अपने चरम पर पहुंचती है।
वृषभ संक्रांति का महत्व
वृषभ राशि पृथ्वी तत्व की स्थिर राशि है, जिसका स्वामी शुक्र ग्रह है। संस्कृत में 'वृषभ' का अर्थ 'बैल' है, जो भगवान शिव के वाहन नंदी का प्रतीक है। इसलिए, इस दिन भगवान शिव, सूर्य, और विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन पूजा, जप, तप, और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, और व्यक्ति को सुख, समृद्धि, और मोक्ष की ओर अग्रसर होने का अवसर मिलता है। इसके अलावा, यह दिन पितरों के तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए भी शुभ माना जाता है, जिससे पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
वृषभ संक्रांति कब आती है?
वृषभ संक्रांति आमतौर पर ज्येष्ठ मास (मई-जून) में पड़ती है। सूर्य का वृषभ राशि में गोचर हर साल मई के मध्य में होता है। इस दिन पुण्यकाल का समय महत्वपूर्ण होता है, जो आमतौर पर सूर्योदय से लेकर सूर्य के राशि परिवर्तन तक रहता है। 2025 में पुण्यकाल सुबह 10:50 से शाम 6:04 तक रहेगा। इस दौरान स्नान, दान, और पूजा करना विशेष फलदायी होता है।
2023 में: वृषभ संक्रांति 15 मई को सुबह 11:32 बजे थी।
2024 में: यह 14 मई को शाम 6:04 बजे थी।
2025 में: वृषभ संक्रांति 15 मई 2025 को गुरुवार के दिन मनाई जाएगी।
वृषभ संक्रांति की पूजन विधि
वृषभ संक्रांति के दिन पूजा-पाठ और व्रत का विशेष विधान है।
प्रात:काल स्नान: सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी, सरोवर, या घर पर गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें। यह पुण्य प्राप्ति का पहला चरण है।
सूर्य को अर्घ्य: सूर्योदय के समय तांबे के पात्र में जल, लाल फूल, और गुड़ डालकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें। "ॐ सूर्याय नम:" मंत्र का जाप करें।
व्रत संकल्प: घर के मंदिर में घी का दीपक जलाकर भगवान सूर्य, विष्णु, और शिव के रुद्र रूप की पूजा का संकल्प लें।
पूजा सामग्री: पूजा में रोली, चंदन, फूल, धूप, और नैवेद्य (गुड़, सत्तू, या खीर) का उपयोग करें। सूर्य चालीसा या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
भगवान विष्णु और शिव की पूजा: भगवान विष्णु को तुलसी पत्र और शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करें। "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" और "ॐ नम: शिवाय" मंत्रों का जाप करें।
पितरों का तर्पण: पितरों की आत्मा की शांति के लिए तिल और जल से तर्पण करें।
आरती और प्रसाद वितरण:
पूजा के अंत में सूर्य, विष्णु, और शिव की आरती करें और प्रसाद वितरित करें। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें और जमीन पर सोना शुभ माना जाता है।
वृषभ संक्रांति पर दान
वृषभ संक्रांति पर दान का विशेष महत्व है, क्योंकि यह पुण्य फल को अक्षय बनाता है। निम्नलिखित वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है:
अन्न दान: गेहूं, चावल, सत्तू, चना, और दाल जरूरतमंदों को दें।
जल दान: गर्मी के मौसम को देखते हुए मटके, पानी की बोतल, या प्याऊ लगवाएं। प्यासे को पानी पिलाना यज्ञ के समान पुण्य देता है।
वस्त्र और धन: कपड़े, विशेष रूप से सफेद या हल्के रंग के वस्त्र, और अपनी सामर्थ्य अनुसार धन दान करें।
विशेष दान: गाय, भूमि, तिल, सोना, चांदी, गुड़, शहद, नमक, घी, खरबूजा, और मटकी का दान सर्वोत्तम माना जाता है।
गर्मी से राहत देने वाली वस्तुएं: छाता, जूते, और पंखे जैसे सामान दान करें।
दान करने से पहले सामग्री को भगवान को अर्पित करें और फिर जरूरतमंदों को श्रद्धापूर्वक दें। मान्यता है कि ऐसा करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और कुंडली में सूर्य से संबंधित दोष दूर होते हैं।
क्या है संक्रांति की पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, धरमदास नामक वैश्य ने अक्षय तृतीया और वृषभ संक्रांति पर विधिवत व्रत और दान किया। उसकी श्रद्धा के फलस्वरूप अगले जन्म में उसे राजा के रूप में जन्म और समृद्धि प्राप्त हुई। यह कथा दान और पूजा के महत्व को दर्शाती है।
वृषभ संक्रांति धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह दिन न केवल सूर्य की पूजा और दान के लिए शुभ है, बल्कि आत्मिक उन्नति और सामाजिक कल्याण का भी प्रतीक है। सही विधि से पूजा और दान करके व्यक्ति अपने जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि ला सकता है।