मां बगलामुखी की पूजा हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है, क्योंकि वे दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या हैं। मां बगलामुखी को पीताम्बरा, बगला, या ब्रह्मास्त्र विद्या के नाम से भी जाना जाता है। उनकी पूजा शत्रुओं पर विजय, कोर्ट-कचहरी में सफलता, वाणी को प्रभावशाली बनाने, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा के लिए की जाती है। मां बगलामुखी की पूजा विधि, पूजा का उचित समय जानेंगे।
मां बगलामुखी की पूजा विधि
मां बगलामुखी की पूजा तांत्रिक और वैदिक दोनों विधियों से की जा सकती है, लेकिन इसे गुरु के मार्गदर्शन में करना सर्वोत्तम माना जाता है। पूजा में पीले रंग का विशेष महत्व है, क्योंकि मां को पीला रंग अति प्रिय है। यहाँ सामान्य पूजा विधि दी जा रही है:
मंगलवार और रविवार की रात: ये दिन मां की पूजा और तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।
शुभ मुहूर्त: पूजा का समय शुभ मुहूर्त में, विशेषकर मध्य रात्रि में, तय करना चाहिए। सुबह या शाम को भी पूजा की जा सकती है।
विशेष परिस्थितियाँ: शत्रु बाधा, कोर्ट-कचहरी के मामले, या ग्रह दोष निवारण के लिए किसी भी समय गुरु के निर्देशानुसार पूजा की जा सकती है।
अपरा एकादशी पर मां बगलामुखी की पूजा
अपरा एकादशी, जो ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, भगवान विष्णु को समर्पित होती है। वर्ष 2025 में यह 24 मई को पड़ेगी। इस दिन मां बगलामुखी की पूजा का विशेष महत्व नहीं है, जैसा कि वैशाख शुक्ल अष्टमी या गुप्त नवरात्रि के लिए उल्लेखित है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में भक्त अपरा एकादशी पर मां बगलामुखी की पूजा करते हैं, क्योंकि यह दिन आध्यात्मिक शक्ति और सिद्धि प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है।
शत्रु नाश और रक्षा
अपरा एकादशी का व्रत सभी कष्टों से मुक्ति और सुख-समृद्धि प्रदान करता है। माँ बगलामुखी की पूजा शत्रुओं पर विजय और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा के लिए की जाती है, जो इस दिन की शुभता के साथ संयुक्त होकर प्रभावी हो सकती है।
ग्रह दोष निवारण: माँ बगलामुखी की पूजा कुंडली के ग्रह दोषों को शांत करने में सहायक है। अपरा एकादशी का पुण्य प्रभाव इस पूजा के फल को बढ़ा सकता है।
आध्यात्मिक सिद्धि: अपरा एकादशी के दिन की गई साधना से भक्तों को आध्यात्मिक और भौतिक इच्छाओं की पूर्ति होती है, और माँ बगलामुखी की साधना इसे और प्रभावी बनाती है।
हालांकि, अपरा एकादशी पर माँ बगलामुखी की पूजा का कोई स्पष्ट शास्त्रीय उल्लेख नहीं है। यह प्रथा स्थानीय मान्यताओं या गुरु के निर्देश पर आधारित हो सकती है। यदि आप इस दिन पूजा करना चाहते हैं, तो गुरु से परामर्श लें और विधि-विधान का पालन करें।
मां बगलामुखी की पूजा शक्ति, सिद्धि, और सुरक्षा का प्रतीक है। उनकी पूजा में पीले रंग की सामग्री, श्रद्धा, और नियमों का पालन अनिवार्य है। बगलामुखी जयंती, गुप्त नवरात्रि, और मंगलवार-रविवार की रात पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ समय हैं। पूजा से पहले गुरु का मार्गदर्शन और शुभ मुहूर्त का चयन आवश्यक है, ताकि साधक को मनवांछित फल प्राप्त हो।
पूजा विधि के लिए सामग्री
- माँ बगलामुखी की मूर्ति या चित्र
- पीला वस्त्र (चौकी और साधक के लिए
- पीले फूल (जैसे गेंदा)
- हल्दी की माला
- गाय का घी और पीली हल्दी में रंगी बाती
- पीले फल (जैसे केला)
- पीला भोग (हल्दी से बनी मिठाई या खिचड़ी)
- चने की दाल (यंत्र निर्माण के लिए
- धूप, दीप, अगरबत्ती, कपूर
- पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर का मिश्रण)
पूजा के चरण:
स्थान की शुद्धि: पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। एक लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएँ।
मूर्ति या चित्र स्थापना: चौकी पर माँ बगलामुखी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति पर पीली चुन्नी अर्पित करें
साधक की तैयारी: साधक को पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा से पहले स्नान करके शुद्ध हो जाएँ और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
दीप प्रज्वलन: गाय के घी का दीपक जलाएँ, जिसमें बाती को हल्दी में रंगकर सुखाया गया हो
हरिद्रा गणपति पूजा: माँ बगलामुखी की पूजा से पहले गणेश जी की पूजा करें, क्योंकि उनकी पूजा के बिना साधना पूर्ण नहीं होती।
मंत्र जाप: माँ बगलामुखी के मंत्र "ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा" का 108 बार जाप करें। हल्दी की माला का उपयोग करें।
यंत्र पूजा: चने की दाल से माँ का यंत्र बनाएँ और उसकी पूजा करें।
हवन: पूजा के अंत में हवन करें। हवन में आम की लकड़ी और हल्दी का उपयोग करें। मंत्र के साथ आहुति दें।
भोग: माँ को पीला भोग (जैसे हल्दी की खिचड़ी या मिठाई) अर्पित करें।
आरती और विसर्जन: माँ की आरती करें और पूजा सामग्री को बहते जल में विसर्जित करें।