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शीतल षष्ठी 2025 : इस दिन पूजा करने से मिलता है विशेष लाभ, जानिए पूजा की विधि और महत्व

शीतल षष्ठी एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है और ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ता है।

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Mukesh Pandit
Shital Ashthami 2025
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शीतल षष्ठी एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है और ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ता है। वर्ष 2025 में यह पर्व 31 मई, शनिवार को मनाया जाएगा। यह उत्सव न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी बढ़ावा देता है। 

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शीतल षष्ठी की पूजा विधि

शीतल षष्ठी की पूजा विधि भक्ति और श्रद्धा के साथ संपन्न की जाती है। यह पर्व शिव-पार्वती के विवाह के उत्सव के रूप में मनाया जाता है, इसलिए पूजा में दोनों देवताओं की विशेष आराधना की जाती है।

प्रातःकाल स्नान और तैयारी:

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सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ठंडे जल से स्नान करें। यह शीतलता का प्रतीक है, क्योंकि यह पर्व ग्रीष्म ऋतु में मनाया जाता है।
स्वच्छ वस्त्र धारण करें, अधिमानतः सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनें।
पूजा स्थल को साफ करें और वहां एक चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाएं।

पूजा सामग्री:

भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पूजा के लिए रोली, चंदन, अक्षत (चावल), पुष्प, बिल्व पत्र, धूप, दीप, नैवेद्य (ठंडा भोजन जैसे फल, मिठाई, दही, रबड़ी), जल का कलश, और मौली तैयार करें। कुछ क्षेत्रों में बासी भोजन (जैसे मीठे चावल, पूरी, हलवा) का भोग लगाने की परंपरा भी है।

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पूजा प्रक्रिया:

चौकी पर शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करें और उन्हें जल से स्नान कराएं।
रोली, चंदन और हल्दी से तिलक करें। पुष्प, बिल्व पत्र, और मौली अर्पित करें।
धूप और दीप जलाकर आरती करें। शिव मंत्र "ॐ नमः शिवाय" और पार्वती मंत्र "ॐ ह्रीं पार्वत्यै नमः" का 108 बार जप करें।
नैवेद्य के रूप में ठंडा भोजन या फल अर्पित करें। कुछ क्षेत्रों में एक दिन पहले तैयार किया गया भोजन चढ़ाया जाता है।
शीतल षष्ठी की कथा सुनें या पढ़ें, जो शिव-पार्वती के विवाह से संबंधित होती है।
अंत में आरती करें और प्रसाद सभी भक्तों में वितरित करें।

व्रत और नियम:

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इस दिन व्रत रखने वाले भक्त ठंडा और बासी भोजन ग्रहण करते हैं। ताजा भोजन पकाने या आग जलाने से परहेज किया जाता है।
पूजा के दौरान स्वच्छता और शीतलता का विशेष ध्यान रखें।

शीतल षष्ठी मनाने का तरीका

सामुदायिक आयोजन: ओडिशा में दो परिवार भगवान शिव और देवी पार्वती को अपनाते हैं और उनके विवाह का अनुष्ठान करते हैं। यह सामुदायिक उत्सव का हिस्सा है, जिसमें नाच-गान और नाट्य प्रदर्शन होते हैं।

ठंडा भोजन: इस पर्व में ठंडा और बासी भोजन खाने की परंपरा है, जो गर्मी के मौसम में शरीर को शीतलता प्रदान करता है।
सांस्कृतिक प्रदर्शन: कई स्थानों पर शिव-पार्वती विवाह से संबंधित नाटक, भजन, और कीर्तन आयोजित किए जाते हैं।

पर्यावरण संरक्षण: यह पर्व पर्यावरण के प्रति जागरूकता को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि यह गर्मी और बारिश के संतुलन का प्रतीक है।

शीतल षष्ठी का महत्व

शीतल षष्ठी का धार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय महत्व है:
धार्मिक महत्व: यह पर्व भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह का उत्सव है। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
स्वास्थ्य लाभ: ठंडा भोजन खाने की परंपरा गर्मी के मौसम में शरीर को ठंडक प्रदान करती है और मौसमी बीमारियों से बचाव करती है।
सामाजिक एकता: यह पर्व समुदाय को एक साथ लाता है, क्योंकि लोग सामूहिक रूप से उत्सव मनाते हैं।
पर्यावरण संरक्षण: यह पर्व प्रकृति के साथ सामंजस्य का संदेश देता है, क्योंकि यह गर्मी और बारिश के संतुलन का प्रतीक है।
शीतल षष्ठी एक ऐसा पर्व है जो धार्मिकता, स्वास्थ्य, और सामाजिक एकता को जोड़ता है। 31 मई 2025 को इस पर्व को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाकर भक्त माता पार्वती और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

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