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अंतरराष्ट्रीय परी दिवस : जादू और कल्पना संग बचपन को संजोने वाली परियों का दिन

परियां, जो बचपन की साथी रही हैं और उनकी आकर्षक कहानियां हर बचपन और नन्हे-मुन्नों के आकर्षण का केंद्र रहा है। शायद ही कोई बच्चा हो, जिसे उसकी दादी-नानी ने परी की कहानी न सुनाई हो। दुनिया को और भी खूबसूरत बनाने में अपना योगदान देती हैं।

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Mukesh Pandit
Fairy Day
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अंतरराष्ट्रीय परी दिवस केवल परियों की काल्पनिक दुनिया तक ही सीमित नहीं है, अपित यह रचनात्मकता, सांस्कृतिक विरासत, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि कहानियों और कल्पनाओं में वह जादू है, जो जीवन को और सुंदर बना सकता है। इस दिन को मनाकर हम न केवल अपनी कल्पनाओं को पंख देते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी याद रखते हैं।

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बचपन में आपने भी सुनी होंगी परियों की कहानी

परियां, जो बचपन की साथी रही हैं और उनकी आकर्षक कहानियां हर बचपन और नन्हे-मुन्नों के आकर्षण का केंद्र रहा है। शायद ही कोई बच्चा हो, जिसे उसकी दादी-नानी ने परी की कहानी न सुनाई हो। मैजिक और कल्पना के साथ इन्होंने बचपन को संजोने का काम किया। हर साल 24 जून को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय परी दिवस मनाया जाता है। यह दिन परियों, इनकी पौराणिक जादुई कहानियों और उनकी कल्पनाशील दुनिया को समर्पित है।

संस्कृतियों, साहित्य और फिल्मों का भी हिस्सा हैं

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परियां न केवल बच्चों की कहानियों का हिस्सा हैं, बल्कि वह कई संस्कृतियों, साहित्य और फिल्मों का भी हिस्सा रही हैं। यह दिन हमें बचपन की उन कल्पनाओं को फिर से जीने का मौका देता है, जहां जादू और आश्चर्य हर कोने में बिखरे हैं।

जेसिका गाल्ब्रेथ की थी इस दिवस की शुरुआत

जानकारी के अनुसार अंतरराष्ट्रीय परी दिवस की शुरुआत का श्रेय फैंटेसी कलाकार जेसिका गाल्ब्रेथ को दिया जाता है। उन्होंने परियों और अन्य पौराणिक प्राणियों की कला के माध्यम से इस दिन को लोकप्रिय बनाया। लोककथाओं में माना जाता है कि परियां मानव दुनिया में सक्रिय होती हैं और दुनिया को और भी खूबसूरत बनाने में अपना योगदान देती हैं।

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 यूरोपीय लोककथाओं में परियां प्रकृति से जुड़ी

परियों की अवधारणा प्राचीन काल से चली आ रही है। यूरोपीय लोककथाओं में परियां प्रकृति के साथ जुड़ी रहती थीं और कभी मददगार, तो कभी शरारती मानी जाती थीं। प्राचीन भारत में गंधर्व और अप्सराएं जैसी पौराणिक हस्तियां परियों से मिलती-जुलती थीं, जो जादुई शक्तियों और सुंदरता के लिए जानी जाती थीं। ग्रीक, रोमन और सेल्टिक संस्कृतियों में भी परियों का उल्लेख मिलता है। समय के साथ, परियां बच्चों की कहानियों और आधुनिक सिनेमा का न केवल हिस्सा बन गईं बल्कि उनकी पसंद भी बन गईं।

भारत में ‘परी’ शब्द यूरोपीय प्रभाव से आया

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परियां विश्व की कई संस्कृतियों में अलग-अलग रूपों में मौजूद हैं। भारत में ‘परी’ शब्द यूरोपीय प्रभाव से आया, लेकिन हिंदू पौराणिक कथाओं में अप्सराएं, यक्षिणियां और देवियां परियों जैसी भूमिका निभाती थीं। उदाहरण के लिए, उर्वशी और मेनका जैसी अप्सराएं अपनी सुंदरता और जादुई शक्तियों के लिए प्रसिद्ध थीं। साहित्य के पन्नों को पलटें तो विलियम शेक्सपियर की ‘ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम’ और जे.एम. बैरी की ‘पीटर पैन’ ने परियों को आधुनिक रूप दिया। डिज्नी की ‘टिंकर बेल’ आज की पीढ़ी के लिए परियों का प्रतीक बन चुकी है।

जादू और कल्पना हमारे जीवन का हिस्सा

अंतरराष्ट्रीय परी दिवस हमें याद दिलाता है कि जादू और कल्पना हमारे जीवन का हिस्सा हैं। भारत में, भले ही परियां पश्चिमी अवधारणा से आई हों, लेकिन हमारी लोककथाओं और सिनेमा में जादुई प्राणियों की कमी नहीं है। परियों को पर्दे पर उतारने में भातीय सिनेमा भी पीछे नहीं है। परियां सीधे तौर पर कम दिखाई देती हैं, लेकिन जादुई और अलौकिक किरदारों के रूप में उनकी मौजूदगी स्पष्ट है। भारतीय फिल्में अक्सर पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और फैंटेसी से प्रेरित होती हैं, जहां परियों जैसे किरदार कहानियों को जादुई बनाते हैं।

फिल्मों में परियां

‘फेयरी फोक’ साल 2024 में रिलीज हुई थी, जिसमें रसिका दुग्गल और मुकुल चड्ढा मुख्य भूमिका में हैं। यह एक आधुनिक फैंटेसी ड्रामा है, जो मानवीय रिश्तों की मुश्किलों को जादुई यथार्थवाद के साथ प्रस्तुत करती है। इसे सिडनी फिल्म फेस्टिवल, शिकागो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सराहा गया। समीक्षकों ने इसे “पहले कभी न देखा गया” अनुभव बताया था।

‘परी’ साल 2018 में रिलीज हुई थी। अनुष्का शर्मा स्टारर हॉरर-ड्रामा एक ऐसी महिला की कहानी है, जो एक रहस्यमयी प्राणी से जुड़ जाती है। हालांकि, यह पारंपरिक परियों की कहानी नहीं है, लेकिन ‘परी’ नाम और जादुई तत्व इसे अंतर्राष्ट्रीय परी दिवस के संदर्भ में प्रासंगिक बनाते हैं। 1991 में ‘लाल परी’ फिल्म आई थी। हनीफ चिप्पा के निर्देशन में बनी फैंटेसी रोमांटिक फिल्म की कहानी एक जलपरी पर आधारित है, जिससे फिल्म के नायक को प्यार हो जाता है।। इस फिल्म में आदित्य पंचोली, जावेद जाफरी और गुलशन ग्रोवर प्रमुख किरदारों में थे।

अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी भी जलपरी बन चुकी हैं। 1996 में रिलीज तेलुगू फिल्म साहासा वीरुदू सागर कन्या में शिल्पा ने जल परी का किरदार निभाया था। फिल्म में शिल्पा शेट्टी के साथ अभिनेता वेंकटेश लीड रोल में थे। 1990 में आई जीतेंद्र स्टारर ‘हातिमताई’ की कहानी भी परियों के फैंटेसी दुनिया में ले जाती है। अरेबियन बैकग्राउंड पर बनी फिल्म में जीतेंद्र मुख्य भूमिका में थे। जबकि, अभिनेत्री संगीता बिजलानी ने परी ‘गुलनार’ का किरदार निभाया था। फिल्म में जीतेंद्र और संगीता बिजलानी के साथ अमरीश पुरी भी मुख्य भूमिका में थे। फिल्म में उन्होंने जादूगर ‘कमलाक’ का किरदार निभाया था।

भारत में परियां यूरोपीय कॉन्सेप्ट से अलग हैं

यहां की लोककथाओं में जादुई प्राणी अक्सर देवी-देवताओं या प्रकृति की शक्तियों के रूप में दिखते हैं। उदाहरण के लिए, दक्षिण भारत की लोककथाओं में ‘वनों की देवियां’ और बंगाल की ‘दैत्यानी’ कहानियां परियों से मिलती-जुलती हैं। भारतीय सिनेमा में परियां कम दिखती हैं, क्योंकि हमारी कहानियां अक्सर पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों पर आधारित होती हैं। फिर भी, आधुनिक फिल्में जैसे ‘फेयरी फोक’ जैसी फिल्मों में वो दिखती हैं।International Fairy Day | Childhood imagination 

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