नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
जनरल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा या फिर ये कहें कि जनरल के. एम. करिअप्पा आज़ाद भारतीय सेना बल की कमान संभालने वाले सबसे पहले कमांडर-इन-चीफ बने। साथ ही सन् 1947 को जनरल के. एम. करिअप्पा ने भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेना का नेतृत्व भी किया था।
कौन थे के. एम. करिअप्पा
करिअप्पा का जन्म और पालन-पोषण कर्नाटक राज्य के दक्षिण-पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्र कुर्ग में हुआ था। उन्होने अपनी स्कूली शिक्षा कर्नाटक के मडेकेरी और फिर मद्रास (अब चेन्नई) के प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई थी। करिअप्पा अपने छात्र जीवन में टेनिस और फील्ड हॉकी जैसे खेलों में काफी रुचि रखते थे।
सैम मानेकशॉ और के. एम. करिअप्पा
सैम मानेकशॉ के बाद के. एम. करिअप्पा भारतीय सेना का सर्वोच्च पद ‘फील्ड मार्शल’ हासिल करने वाले दूसरे भारतीय सेना अधिकारि है। लगभग 3 दशक तक के. एम. करिअप्पा भारतीय सेना में कार्यरत रहे। स्वतंत्रता के बाद सन् 1949 में जनरल के. एम. करियप्पा स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय कमांडर-इन-चीफ बने थे। प्रथम विश्व युद्ध (1914–18) के दौरान करियप्पा ने अपनी मिलिटरी ट्रेनिंग पूरी करी थी। करिअप्पा उन चुनिंदा लोगों में से एक थे जिन्हें इंदौर के डेली कैडेट कॉलेज में के.सी.आई.ओ.एस. यानी King’s Commissioned Indian Officers के पहले बैच के लिए चुना गया था जिसके बाद उन्हें कारनेटिक इन्फैंट्री बाम्बे (अब मुम्बई) में कमीशन दिया गया था।
के. एम. करिअप्पा का भारतीय फौज का सफ़र
अगर के. एम. करिअप्पा के फौजी सफर पर नज़र डाले तो सन् 1919 में वो कारनेटिक इन्फैंट्री बाम्बे में कमीशन के बाद 1/7 राजपूत के अफसर बने। सन् 1923 में करिअप्पा अस्थायी प्रथम लेफ्टिनेंट के पद से बढ़कर लेफ्टिनेंट बने। समय के चक्का घूमता गया करिअप्पा का पद बढ़ता चला गया और फिर सन् 1942 में लेफ्टिनेंट करनल बने। ये वही दौर था जब दुनिया में विश्व युद्ध चल रहा था। सन् 1941 से लेकर 1944 तक करिअप्पा मिडल ईस्ट और बर्मा में भी कार्यरत रहे हैं।
28 अप्रैल, 1986 को करिअप्पा को देश के लिए उनके द्वारा दी गई उत्कृष्ट सेवा के लिए भारत सरकार से फील्ड मार्शल का पद प्राप्त हुआ। 15 मई, 1993 को उनका निधन हो गया और मदिकेरी में उनका अंतिम संस्कार किया गया, जिसमें तीनों सेनाओं के प्रमुखों और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ सहित गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।