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शिकंजी पीते लोग
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
गाजियाबाद शहर में इन दिनों एक गंभीर स्वास्थ्य संकट धीरे-धीरे पाँव पसार रहा है। शहर की गलियों, चौराहों और बाज़ारों में खुलेआम बिक रहे शिकंजी, जूस और अन्य खाद्य पदार्थ लोगों की जान के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। गर्मियों के मौसम में यह पेय पदार्थ राहत देने का काम करते हैं, लेकिन जब इन्हें गंदे पानी, बर्फ और बिना साफ-सफाई के तैयार किया जाए, तो यह सीधा जहर बन जाते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि यह सारा खेल खाद्य विभाग की आँखों के सामने हो रहा है, और विभाग गहरी नींद में सोया हुआ प्रतीत होता है।
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बीमारी फैलने का खतरा
शहर में अनुमानतः डेढ़ लाख से अधिक ठेली-पटरी वाले बिना किसी लाइसेंस या स्वास्थ्य जांच के खाद्य और पेय पदार्थ बेच रहे हैं। इनमें से अधिकांश विक्रेता न तो किसी स्वच्छता मानक का पालन करते हैं और न ही उनके पास खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत कोई रजिस्ट्रेशन है। इनसे मिलने वाला जूस या शिकंजी न केवल अशुद्ध पानी से बनाया जाता है, बल्कि उसमें प्रयोग होने वाली बर्फ और नींबू जैसी सामग्री भी कई बार सड़ी-गली होती है। इससे दस्त, उल्टी, टायफॉइड, हैजा, और यहां तक कि हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बना रहता है।
संक्रामक रोगों का जोखिम
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि गंदे हाथों, बर्तनों और खुले में रखे जाने वाले खाद्य पदार्थों के ज़रिए संक्रामक रोगों का फैलाव सबसे तेज़ होता है। ऐसे में बिना नियंत्रण और निगरानी के चल रहे इस कारोबार पर तत्काल सख्ती की ज़रूरत है। परंतु खाद्य सुरक्षा विभाग की निष्क्रियता चौंकाने वाली है। नियमों के अनुसार, हर खाद्य विक्रेता को FSSAI (Food Safety and Standards Authority of India) से लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है, लेकिन गाजियाबाद की सड़कों पर इसका पालन कहीं देखने को नहीं मिलता। इस स्थिति के लिए केवल विक्रेताओं को जिम्मेदार ठहराना भी उचित नहीं होगा। प्रशासनिक लापरवाही, निगरानी की कमी और जनता में जागरूकता की बेहद कमी इस पूरे तंत्र को पंगु बना देती है। आम जनता भी सस्ते और जल्दी मिलने वाले पेय पदार्थों की ओर आकर्षित होती है, लेकिन वह इसके पीछे छिपे खतरे को नजरअंदाज कर देती है।
ठोस कार्यवाही जरूरी
समाधान के लिए एक ठोस और समन्वित प्रयास की आवश्यकता है। खाद्य विभाग को सक्रिय भूमिका निभाते हुए नियमित निरीक्षण, सैंपलिंग और लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को सख्ती से लागू करना होगा। साथ ही, नगर निगम को भी इन अस्थायी दुकानों को चिन्हित कर स्वच्छता के मानक निर्धारित करने चाहिए। जनजागरूकता अभियान चलाकर लोगों को यह बताना आवश्यक है कि सस्ती चीज़ें कभी-कभी बहुत महँगी पड़ सकती हैं — स्वास्थ्य के रूप में। यदि समय रहते प्रशासन जागा नहीं, तो गाजियाबाद के नागरिकों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। यह सिर्फ एक खाद्य सुरक्षा की नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की आपात स्थिति है।