Advertisment

Allegation : नगर निगम गाजियाबाद में भ्रष्टाचार और भेदभाव की बह रही है गंगा - ज़ाकिर सैफी

नगर निगम गाजियाबाद में भ्रष्टाचार और भेदभाव को लेकर फिर से विवाद गहराता दिख रहा है। कई पार्षदों ने निगम अधिकारियों पर मनमानी, भेदभाव और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि निगम में गांधी जी के तीन बंदरों वाली नीति अपनाई जा रही है — न देखो,

author-image
Syed Ali Mehndi
about-us-gnn

Nagar Nigam Mukhyalay Ghaziabad

गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता 

नगर निगम गाजियाबाद में भ्रष्टाचार और भेदभाव को लेकर फिर से विवाद गहराता दिख रहा है। कई पार्षदों ने निगम अधिकारियों पर मनमानी, भेदभाव और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि निगम में गांधी जी के तीन बंदरों वाली नीति अपनाई जा रही है — न देखो, न सुनो, न बोलो। जो कुछ भी गलत हो रहा है, उसे नजरअंदाज किया जा रहा है।

विरोध के चलते भेदभाव 

पूर्व पार्षद जाकिर सैफी ने खुलकर आरोप लगाया कि निगम अधिकारियों ने पार्षदों के वार्डों में विकास कार्यों की सूची में जानबूझकर भेदभाव किया है। उन्होंने कहा कि जो पार्षद भ्रष्टाचार और डीएम सर्किल रेट के आधार पर संपत्ति कर वसूली जैसे मुद्दों पर आवाज उठा रहे थे, उनके वार्डों में विकास कार्यों के प्रस्तावों पर कैंची चला दी गई है। उनका कहना है कि पारदर्शिता के नाम पर अधिकारियों ने अखबारों में जो सूची जारी की, वही असली उदाहरण है कि किस तरह विरोधी पार्षदों को निशाना बनाया जा रहा है। ज़ाकिर सैफी का कहना है कि यह लड़ाई किसी व्यक्तिगत स्वार्थ की नहीं बल्कि आम जनता के हितों की है। जब नगर निगम के सदन ने डीएम सर्किल रेट पर संपत्ति कर वसूली का विरोध किया था, तब अधिकारियों ने उस निर्णय को दरकिनार कर अपनी मनमानी शुरू कर दी। जो पार्षद जनता के पक्ष में बोल रहे हैं, उन्हें विकास कार्यों से वंचित किया जा रहा है।

अपनों चल रहा है बुलडोजर

कौशांबी के पूर्व पार्षद मनोज गोयल ने भी अपनी पीड़ा जताई। उन्होंने कहा कि उनके प्रतिष्ठान पर तो अधिकारियों ने बुलडोजर तक भेज दिया था। यह साफ इशारा है कि जो आवाज उठाएगा, उसे प्रशासनिक दबाव में लाने की कोशिश की जाएगी।शहर के जानकार लोगों का कहना है कि यदि ऐसे हालात रहे तो पार्षदों और अधिकारियों के बीच टकराव बढ़ेगा, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा। गाजियाबाद जैसे विकसित होते शहर में पारदर्शी प्रशासन और समान विकास की अपेक्षा की जाती है, लेकिन जब राजनीति और बदले की भावना हावी हो जाती है, तो विकास की गति थम जाती है।नगर निगम प्रशासन पर अब निगाहें टिकी हैं कि वह इन आरोपों पर क्या कार्रवाई करता है — या फिर एक बार फिर ‘गांधी के बंदरों’ की तरह आंख, कान और मुंह बंद रखेगा।

Advertisment
Advertisment