Bjp Leader Dispute: इस पुलिसिया सम्मान को क्या नाम दें?, सपा-बसपा राज में क्यों अनुशासित रहती है खाकी?
बीजेपी महानगर मंत्री की पुलिस ने जो अपने अंदाज में खातिरदारी की, हालाकि लंबी फजीहत के बाद आरोपी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया। मगर, सवाल बड़ा है कि सपा-बसपा सरकार में नेता-कार्यकर्ताओं से बचने वाली खाकी में इस बदलाव की वजह क्या है?
पुलिस कमिश्नर बदलने से बहुत सारे लोगों खासकर भाजपाईयों को उम्मीद थी कि अब उन्हें भी खाकी से वही सम्मान मिलेगा, जो सपा-बसपा के राज में उनके नेता-कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधियों को मिलता था। लेकिन उनकी ये उम्मीद चंद रोज में ही तब धड़ाम हो गई जब महानगर मंत्री धीरज के साथ बीते शनिवार की रात नंदग्राम थाने में कथित बदसलूकी और मारपीट के साथ-साथ हवालात में डाल देने की घटना हुई।
महानगर मंत्री के साथ ये हुआ
BJP के महानगर मंत्री धीरज शर्मा के साथ हुई घटना के बाद देर रात थाने में मौजूद नाराज बीजेपी विधायक संजीव शर्मा व महानगर अध्यक्ष मयंक गोयल व अन्य।
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बीजेपी के महानगर मंत्री धीरज शर्मा एक निजी सोसायटी के विवाद को लेकर नंदग्राम थाने गए थे। वहां नोंक-झोंक के दौरान आरोप है कि न सिर्फ पुलिसकर्मियों ने उनके साथ मारपीट की, बल्कि हवालात में भी बंद रखा। शहर विधायक और दो बार के महानगर अध्यक्ष रहे संजीव शर्मा और वर्तमान महानगर अध्यक्ष मयंक गोयल के साथ देर रात तक हाई बोल्टेज ड्रामें के बावजूद प्रकरण में आरोपी पुलिसकर्मियों पर रविवार सुबह तक कोई एक्शन नहीं हुआ।
प्रदेश अध्यक्ष से शिकायत पर हुआ सस्पेंशन
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रविवार को साहिबाबाद में कार्यकर्ताओं संग पीएम मोदी के मन की बात सुनने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी से रविवार को मामले की शिकायत पीड़ित महानगर मंत्री ने की। तब कहीं जाकर पुलिसकर्मियों के खिलाफ सस्पेंशन और विभागीय जांच के आदेश हुए। हालाकि धीरज प्रकरण के आरोपी पुलिसकर्मियों पर केस दर्ज कर उन्हें जेल भेजे जाने की मांग पर अड़े हैं।
चंद रोज में ही टूट गया भ्रम
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हालाकि सब नहीं मगर बहुत सारे भाजपाई पुलिस कमिश्नर अजय मिश्रा के तबादले के बाद से उत्साहित थे। उन्हें उम्मीद थी कि अब उनको भी खाकी से वही सम्मान मिलेगा, जो सपा-बसपा के राज में उनके कार्यकर्ता-नेता या जनप्रतिनिधियों को मिलता है। लेकिन नये कमिश्नर के आने के चंद रोज बाद ही उनका ये भ्रम ख्याली पुलाव साबित हो गया। भाजपाईयों को एहसास हो गया कि सिर्फ कमिश्नर बदले हैं। बीजेपी कार्यकर्ताओं-नेताओं और जनप्रतिनिधियों के प्रति पुलिस का रवैया नहीं।
कब-कब हुआ भाजपाईयों का 'कथित' अपमान?
-पुराने पुलिस कमिश्नर अजय मिश्रा ने कई माननीयों सहित लोनी के विधायक नंदकिशोर की सुरक्षा में कटौती की थी। जिसे प्रतिष्ठा और सुरक्षा में लापरवाही करार देते हुए नंदकिशोर गूर्जर ने मामले को उठाया। मगर, अजय मिश्र के कार्यकाल में वो सुरक्षा में बढ़ोतरी नहीं करा पाए।
-बीजेपी की महिला नेत्री के साथ बदसलूकी के मामले में पुलिस कमिश्नर के खिलाफ मोर्चा खोला गया। मगर, वो प्रयास भी बेनतीजा रहा। उल्टा प्रकरण में खाकी ही बीजेपी पर भारी रही और बीजेपी के आरोपों को पुलिस ने सिरे से खारिज कर दिया।
-कलश यात्रा के दौरान बीजेपी विधायक नंदकिशोर गूर्जर के साथ हुई कथित बदसलूकी का मामला फटे कुर्ते के साथ नंगे पांव घूमकर बीजेपी विधायक ने लखनऊ से दिल्ली तक उठाया। मगर, न किसी पुलिसकर्मी के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई हुई और ना ही किसी अफसर पर कोई एक्शन। हालाकि पुलिस कमिश्नर के रूटीन ट्रांसफर को ही भाजपाईयों ने कार्रवाई मानकर सब्र का घूंट पी लिया।
-साहिबाबाद में बीजेपी के पार्षद को गिरफ्तार करने को लेकर बीजेपी के पार्षद और खुद महापौर ने प्रदर्शन किया। महापौर ने मामले को लेकर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर से मिलने को कहा। मगर देखिए कि प्रथम महिला नागरिक को भी तत्कालीन पुलिस कमिश्नर ने मिलने का समय नहीं दिया।
-खोड़ा कालोनी के बीजेपी मंडल अध्यक्ष व उनके भाई के खिलाफ गिरफ्तारी की कार्रवाई के मामले मे भी भाजपाईयों के सम्मान को खाकी की कार्रवाई ने खासी ठेस पहुंचाई। बीजेपी नेताओं के इंदिरापुरम थाने पर धरना देने के बावजूद वही हुआ जो खाकी ने चाहा।
-शनिवार को हुए मामले में भी जहां कथित तौर पर मारपीट और बदसलूकी की घटना के शिकार धीरज शर्मा जहां मुकदमा दर्ज करने और दोषी पुलिसकर्मियों को जेल भेजने की मांग कर रहे हैं, वहीं प्रदेश अध्यक्ष के हस्तक्षेप के बावजूद सिर्फ सस्पेंशन और विभागीय जांच के आदेश ही हो सके हैं।
सपा-बसपा सरकारों मे बोलती थी तूती?
पुराने गाजियाबादियों ने देखा होगा कि सपा और बसपा की सरकारों में सिर्फ जनप्रतिनिधि ही नहीं बल्कि बड़े-छोटे नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं की खूब तूती बोलती थी। यहां तक कि खाकी वाले आम कार्यकर्ता की बात को भी तवज्जो देते थे। मगर, अनुशासन के मामले में पहचानी जाने वाली बीजेपी में कार्यकर्ता तो छोड़िए नेता और जनप्रतिनिधियों के साथ भी पुलिस का बदला-बदला बर्ताव जहां कई सवाल खड़े करने वाला है, वहीं सोचने को मजबूर करता है कि सपा-बसपा के राज में सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोगों की जी-हुजुरी करने वाली खाकी में ये बदलाव सही माना जाए या गलत?
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