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करीब दो दशक पहले का दौर था जब शंभु दयाल डिग्री कॉलेज में ग्रेजुएशन कर रहे लोनी के एक गांव का छात्र कॉलेज की राजनीति में एंटर हुआ। कौन जानता था कि उतार-चढ़ाव भरी दशक बिताने के बाद 2014 में बीजेपी से टिकट लेकर वो मदन भैया, रूप चौधरी और मनोज धामा जैसे गूर्जर समाज में खासी पैंठ रखने वाले नेताओं को पीछे छोड़कर बीजेपी का एक नहीं बल्कि दो बार विधायक बन जाएगा? नंदकिशोर को इस मुकाम तक पहुंचाने के साथ-साथ बीजेपी के फायर ब्रांड नेता संगीत सोम की तरह पहचान दिलाने का काम किया है उनकी शुरू से रही जिद्दीपन की एक आदत ने। छात्र राजनीति की शुरुआत से लेकर आज तक जिद्दीपने की वही आदत नंदकिशोर को छात्र नेता से केंद्र-प्रदेश की सत्ता तक लाने की सीढ़ी बनी है। नंदकिशोर की जिद्द औरों से इतर गलत को गलत कहने की। यही उनके यहां तक पहुंचने की वजह बनी है। उसी जिद्द के चलते नंदकिशोर ने 27 दिन फटे कुर्ते के साथ बिताए वो भी नंगे पांव। लेकिन उस जिद्द के पूरा होते ही 28वें दिन नंदकिशोर ने 36 बिरादरियों की पगड़ी पहनी और पैरों में जूते भी पहने।
छात्रों की लड़ाई में कोतवाली में हुई पिटाई
बात करीब दो दशक से ज्यादा पुरानी है। गाजियाबाद की कोतवाली नगर में सीपी सिंह नाम के इंस्पेक्टर थे। ईमानदार अधििकारी मगर, वो भी जिद्दी गलत पर तुरंत भड़कने वाले। शंभुदयाल कॉलेज में छात्र राजनीति कर रहे नंदकिशोर गूर्जर और उनके अभिन्य मित्र एमएमएच कॉलेज के छात्र नेता यतेंद्र नागर एक छात्रों से जुड़े मामले को लेकर कोतवाली पहुंचे। वहां घेराव कर हंगामा किया। कुछ छात्रों ने कोतवाली परिसर में तोड़फोड़ कर दी। कोतवाल सीपी सिंह ने नंदकिशोर और यतेंद्र नागर की न सिर्फ जमकर पिटाई की, बल्कि कई संगीन धाराओं के तहत गिरफ्तारी करके दोनों को जेल भेज दिया। यहीं से नंदकिशोर की राजनीति की शुरुआत हुई।
डीपी यादव के संग भी रहे नंदकिशोर
कांग्रेस को छोड़ लगभग पुराने दौर की लगभग सभी पार्टियों में रहे बाहुबली डीपी यादव का परिवार जब सीनियर आईएएस अफसर निशीथ कटारा के बेटे नितीश कटारा की हत्या के मामले में फंसा तो तमाम राजनैतिक पार्टियों ने डीपी यादव से किनारा कर लिया। उस वक्त डीपी यादव ने अपनी खुद की पार्टी बनाई। नंदकिशोर गूर्जर ने उस पार्टी को यतेंद्र के साथ ज्वाइन किया और कई साल डीपी यादव के संपर्क में रहे। मगर, वहां डीपी यादव की रंजिश के फेर में कई अपराधिक मामलों में नामजद कराए गए।
उमा भारती का दामन पकड़ा
सनातन प्रवृति की तरफ अपने झुकाव के चलते उसी दौरान नंदकिशोर की मुलाकात पूर्व केंद्रीय मंत्री और फायर ब्रांड बीजेपी नेता उमा भारती से हुई। काफी वक्त नंदकिशोर ने उनके मार्गदर्शन में बिताया और बीजेपी में एंट्री कर ली। इसके बाद ही 2014 में मोदी लहर में नंदकिशोर पहली बार गूर्जर बाहुल्य इलाके में कमल खिलाने और अपने नाम के आगे विधायक लगवाने में कामयाब हुए।
धुरंधर गुर्जर नेताओं के बीच राह नहीं थी आसान
कुछ वक्त पहले तक बागपत की खेकड़ा विधानसभा में आने वाले लोनी को जैसे ही अलग विधानसभा का दर्जा मिला उसके बाद कई गुर्जर समाज के नेताओं ने यहां से विधायक बनने के सपने संजोए मगर किसी को सफलता नहीं मिली। मगर, 2014 में बीजेपी के टिकट से नंदकिशोर ने जीत दर्ज करके सबको हैरत में तो डाला ही बल्कि मदन भैया, पूर्व बीजेपी विधायक रूप चौधरी, मनोज धामा जैसे गूर्जर समाज के बडे़ चेहरों को भी सकते में डाल दिया। उसके बाद से गूर्जर समाज में लगातार अपनी पैंठ बनाने वाले नंदकिशोर आज भी छात्र राजनीति वाली अपनी जिद्दी प्रवृति पर कायम हैं। ये उनकी पुरानी आदत कब तक उनके लिए फायदेमंद रहेगी और कब नुकसान पहुंचाएंगी ये आने वाला वक्त ही तय करेगा।