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अभियान
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
हर वर्ष 12 जून को "अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस" मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य बच्चों को श्रम से मुक्त कर उन्हें शिक्षा और सुरक्षित बचपन की ओर ले जाना होता है। गाजियाबाद में इस दिन उप श्रम आयुक्त कार्यालय द्वारा एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें औद्योगिक क्षेत्र के व्यापार संगठनों और श्रमिक संगठनों को बाल श्रम उन्मूलन के बारे में जागरूक किया गया। श्रम परिवर्तन अधिकारी की टीम ने खोड़ा कॉलोनी में अभियान चलाकर 15 किशोर श्रमिकों की पहचान की, जो कपड़े, परचून, बकरी और सैलून की दुकानों पर काम कर रहे थे। उनके विरुद्ध किशोर श्रम अधिनियम के तहत कार्यवाही की गई।
अभियान पर सवाल
हालांकि यह प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि यह प्रयास केवल वर्ष में एक बार, किसी विशेष दिवस पर ही क्यों होते हैं? गाजियाबाद जैसे बड़े शहर में हजारों बाल श्रमिक रोज़ाना चाय की दुकानों, ढाबों, होटलों और फैक्ट्रियों में काम करते हुए देखे जा सकते हैं। दुर्भाग्यवश, वर्ष भर सरकारी अधिकारी इन जगहों से होकर गुज़रते हैं लेकिन बाल श्रम उनके "सरकारी चश्मे" से ओझल ही रहता है।
साल में सिर्फ एक बार
यह विडंबना है कि जब तक किसी विशेष दिवस पर अभियान नहीं होता, तब तक ये बच्चे सरकारी आंकड़ों में दिखाई नहीं देते। इसका सीधा अर्थ है कि बाल श्रम को लेकर प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी है और अधिकांश कार्रवाई महज औपचारिकता बनकर रह जाती है। बाल श्रम न केवल बच्चों के अधिकारों का हनन है बल्कि उनके भविष्य को भी अंधकारमय बना देता है। इन्हें स्कूलों में होना चाहिए, खेल के मैदान में होना चाहिए, लेकिन ये मेहनत-मज़दूरी करने को मजबूर हैं।
ठोस जमीनी प्रयास आवश्यक
यदि सच में बाल श्रम को जड़ से खत्म करना है तो आवश्यकता है कि यह मुहिम एक दिन की न होकर निरंतर और ठोस प्रयासों का हिस्सा बने। हर अधिकारी, हर नागरिक को जागरूक होकर अपने आसपास के बच्चों पर ध्यान देना होगा और जहाँ भी बाल श्रम हो, वहां तत्काल सूचना देना और कार्रवाई की मांग करनी होगी। तभी हम उस समाज की कल्पना कर सकते हैं जहाँ हर बच्चा स्वतंत्र, सुरक्षित और शिक्षित हो।