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फाइल फोटो
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
गाजियाबाद पुलिस का एक और “महान” कारनामा फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला किसी एनकाउंटर या मुठभेड़ का नहीं, बल्कि सीसीटीवी फुटेज का है — जो शायद अब पुलिस की नई “गुप्तचर शाखा” बन चुकी है। कोर्ट ने क्रॉसिंग रिपब्लिक थानाध्यक्ष से थाने की सीसीटीवी फुटेज तलब की थी, लेकिन जनाब ने ऐसी अनमोल वीडियो को सार्वजनिक करने से साफ इनकार कर दिया। वजह भी उतनी ही शानदार — “निजता भंग हो जाएगी और मुखबिरों की पहचान उजागर हो जाएगी।” वाह! गोपनीयता की ऐसी मिसाल तो गाजियाबाद पुलिस ही दे सकती है।
चार का एनकाउंटर
दरअसल, 26 अक्टूबर को पुलिस ने चार युवकों — इरफान गाजी, शादाब, अमन गर्ग और नाजिम — को “मुठभेड़” के बाद गिरफ्तार करने का दावा किया था। बताया गया कि ये चारों लूट-टप्पेबाजी गिरोह के सक्रिय सदस्य हैं। पर कोर्ट में जब युवकों ने प्रार्थना पत्र देकर कहा कि उन्हें तो सीधे थाने से ही उठा लिया गया था, तब न्यायालय ने थाने की सीसीटीवी फुटेज पेश करने का आदेश दिया। बस, यहीं से शुरू हुआ ‘फुटेज-गेट’ कांड!पहले पुलिस ने तकनीकी कारण बताकर समय मांगा। फिर बोला कि कैमरे तो चल रहे थे, मगर निजता और मुखबिरों की सुरक्षा दांव पर है। यानी थाने में कौन आता-जाता है, यह रहस्य उतना ही बड़ा है जितना किसी गुप्त मिशन की फाइल। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए थानाध्यक्ष के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दे डाला।
हो सकता है बड़ा खुलासा
अब मामला केवल एक फुटेज का नहीं रहा। खबर है कि विभागीय कार्रवाई के साथ-साथ कुछ पुराने “एनकाउंटर्स” की जांच भी खुल सकती है। यानी अगर कैमरे बोल पड़े, तो कई वीरता पदक की चमक फीकी पड़ सकती है।गाजियाबाद की जनता अब सोच रही है कि जब कानून की रखवाली करने वालों को कानून याद दिलाने के लिए कोर्ट को आदेश देने पड़ें, तो हालात कितने गंभीर हैं। थाने के कैमरे अब या तो “स्लीप मोड” में रहते हैं, या फिर “सिर्फ ड्यूटी ऑवर्स” में काम करते हैं।
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