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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा बनाया चित्र
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
मसूरी के आकाश नगर कॉलोनी निवासी आफताब को रिहाई के आदेश के बावजूद 28 दिनों तक जेल में रखने पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार पर पाँच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। अदालत ने इस लापरवाही के लिए गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए जिला न्यायालय के प्रधान जज को आदेश दिया है कि वे इस देरी की पूरी जांच करें और दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करें।
धर्मांतरण का आरोपी
इस मामले में जिला जेल अधीक्षक सीताराम शर्मा ने बताया कि जनवरी 2024 के पहले सप्ताह में थाना डेट सिटी क्षेत्र की एक महिला ने आफताब पर उसकी नाबालिग भांजी को बहला-फुसलाकर ले जाने और धर्मांतरण कराने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। जांच में आफताब और उसके पिता रमेश का नाम सामने आया। पुलिस ने छात्रा को बरामद कर दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, जहाँ आफताब के पिता को जमानत मिल गई थी।जेल प्रशासन के अनुसार, अदालत के आदेश में अभियुक्त आफताब के विरुद्ध दर्ज धाराओं में गंभीरता नहीं पाई गई थी, जिस आधार पर उसकी रिहाई का आदेश दिया गया। बावजूद इसके, उसे 28 दिन तक रिहा नहीं किया गया। यह न्यायिक प्रक्रिया में बड़ी लापरवाही मानी गई है।
अदालत का सख्त रवैया
थाना प्रभारी धर्मपाल सिंह ने बताया कि छात्रा की मौसी की शिकायत पर गुमशुदगी दर्ज की गई थी और 3 जनवरी 2024 को आफताब के खिलाफ मामला दर्ज कर चालान कोर्ट में पेश किया गया था। उसके बाद कोर्ट से रिहाई का आदेश आया लेकिन उसे समय से लागू नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर अनदेखी को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए इसे लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए खतरा करार दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी नागरिक को कानून के दायरे से बाहर रखकर इस तरह अवैध हिरासत में नहीं रखा जा सकता। इस फैसले ने एक बार फिर न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित किया है।