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Crime : दलित परिवार पर हमला,तीन मुख्य आरोपी फ़रार, पुलिस पर उठे सवाल

गाजियाबाद। व्यस्त घंटाघर कोतवाली क्षेत्र में रविवार, देर रात घटी हिंसक घटना ने शहर की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। दबंगों ने एक दलित परिवार को निशाना बनाते हुए घर में घुसकर जानलेवा हमला किया। घटना सीसीटीवी कैमरे में दर्ज है, जिसमें

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Syed Ali Mehndi
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फाइल फोटो

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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता 

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गाजियाबाद। व्यस्त घंटाघर कोतवाली क्षेत्र में रविवार, देर रात घटी हिंसक घटना ने शहर की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। दबंगों ने एक दलित परिवार को निशाना बनाते हुए घर में घुसकर जानलेवा हमला किया। घटना सीसीटीवी कैमरे में दर्ज है, जिसमें दिखाई पड़ता है कि लगभग आधा दर्जन बदमाश धारदार हथियार और लोहे की रॉड से लैस होकर गाड़ियों में तोड़फोड़ करते हुए परिसर में घुसते हैं। अराजक तत्वों ने दो सदस्यों—बनारसी (65) और मजीद (28)—पर बर्बरता से वार किया; दोनों को चाकू से घायल अवस्था में जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ मजीद की हालत अभी भी नाज़ुक है।

 दो बदमाश गिरफ्तार 

पुलिस ने त्वरित कार्रवाई का दावा करते हुए दो आरोपियों, सचिन और नेहाल , को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है, परन्तु तीन मुख्य आरोपी—चीनू, अमन और गोलू—अब भी फ़रार हैं। स्थानीय सूत्रों के अनुसार यह दिल्ली पहाड़गंज इलाके के कुख्यात हिस्ट्रीशीटर हैं और उनके विरुद्ध पूर्व में भी संगठित अपराध के कई मुकदमे दर्ज हैं। सीसीटीवी फुटेज में उनकी पहचान स्पष्ट होने के बावजूद गिरफ्तारी न हो पाना पुलिस की कार्यक्षमता पर प्रश्न उठाता है।

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लेट लतीफ पुलिस

एसएचओ कोतवाली ने मीडिया को बताया, “तीन टीमें दबिश दे रही हैं; जल्द ही मुख्य आरोपी सलाखों के पीछे होंगे।” किंतु पीड़ित परिवार का आरोप है कि दबंगों के स्थानीय रसूख के कारण दबाव में धीमी कार्रवाही हो रही है। पड़ोसी साक्षी चंचल गौतम ने कहा, “हमने 112 पर कई बार फोन किया, सहायता देर से पहुँची, तब तक हमला हो चुका था।” घटना-स्थल से पुलिस को टूटी हुई गाड़ियों, खून से सने कपड़े और चाकू बरामद हुए हैं, जिन्हें फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है। दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने घटना की निंदा करते हुए मांग की कि अपराधिक धाराओं में एससी/एसटी एक्ट जोड़ा गया है और आरोपी पर गैंगस्टर एक्ट लगाया जाए। यह घटना न केवल कानून व्यवस्था की चुनौती को उजागर करती है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने में छुपे जातीय विद्वेष की भी कड़वी सच्चाई सामने लाती है। जब तक दोषी गिरफ्तार नहीं होते और पीड़ितों को न्याय नहीं मिलता, तब तक गाजियाबाद पुलिस पर लगे ‘ढीली धरपकड़’ के आरोपों को शांत करना मुश्किल होगा।

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