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Crime : लापरवाह नगर निगम,दो पेड़ों की मौत, चार पेड़ों पर मौत का साया

केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार जहां एक ओर पर्यावरण संरक्षण और "पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ" जैसे अभियानों को बढ़ावा देने में करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं, वहीं गाजियाबाद नगर निगम की लापरवाही सरकार की मंशा पर पानी फेर रही है। शहर में हरियाली को बढ़ावा देने की

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Syed Ali Mehndi
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गिर गए पेड़

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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता

केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार जहां एक ओर पर्यावरण संरक्षण और "पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ" जैसे अभियानों को बढ़ावा देने में करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं, वहीं गाजियाबाद नगर निगम की लापरवाही सरकार की मंशा पर पानी फेर रही है। शहर में हरियाली को बढ़ावा देने की बजाय नगर निगम की लापरवाही के चलते पेड़ों की हत्याएं हो रही हैं। इसका ताज़ा उदाहरण संजय नगर सेक्टर-23 में यशोदा अस्पताल के सामने देखा गया, जहां नाले के निर्माण के नाम पर दो बड़े वृक्ष जड़ से उखाड़ दिए गए और चार अन्य पेड़ गंभीर रूप से प्रभावित हो गए हैं।

ठेकेदार है जिम्मेदार 

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, नगर निगम के ठेकेदार द्वारा बिना किसी पूर्व योजना और जिम्मेदारी के नाला निर्माण कार्य शुरू किया गया। इस दौरान मशीनों से पेड़ों की जड़ों को पूरी तरह काट दिया गया, जिससे दो पेड़ मौके पर ही गिर गए। शेष चार पेड़ किसी तरह से खड़े हैं लेकिन उनकी जड़ें भी काफी हद तक उजड़ चुकी हैं, जिससे आने वाले समय में उनका बच पाना मुश्किल प्रतीत हो रहा है।स्थानीय लोगों का कहना है कि पेड़ न केवल पर्यावरण की रक्षा करते हैं बल्कि इनकी छाया और ऑक्सीजन से जनजीवन लाभान्वित होता है। उन्होंने नगर निगम पर आरोप लगाते हुए कहा कि एक ओर सरकार वृक्षारोपण को बढ़ावा दे रही है, वहीं दूसरी ओर निगम का रवैया पेड़ काटने और उन्हें मरने पर मजबूर करने वाला है। यह दोहरा रवैया न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है बल्कि नागरिकों के जीवन को भी खतरे में डालता है, क्योंकि गर्मी में पेड़ों की छाया बहुत राहत देती है और वायु की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है।

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मानसून का मौसम

परेशानी की बात यह भी है कि यह सब उस समय हो रहा है जब मानसून का मौसम चल रहा है और पेड़ों के विकास का सर्वश्रेष्ठ समय माना जाता है। ऐसे समय में यदि पुराने पेड़ों को यूं ही उखाड़ दिया जाए, तो यह शहर की हरियाली को बड़ा झटका है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं और समाजसेवियों ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और प्रशासन से मांग की है कि दोषी ठेकेदार और नगर निगम के संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।सवाल यह भी उठता है कि क्या नगर निगम ने इस निर्माण कार्य से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन कराया था? क्या इस मामले में वन विभाग की अनुमति ली गई थी? अगर नहीं, तो यह स्पष्ट रूप से पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन है।

हरियाली बचाना अत्यंत आवश्यक

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गाजियाबाद जैसे औद्योगिक और तेजी से विकसित हो रहे शहर में हरियाली को बचाना नितांत आवश्यक है। यदि अब भी नगर निगम नहीं चेता, तो आने वाले वर्षों में यह शहर प्रदूषण और गर्मी के गंभीर संकट का सामना करेगा।स्थानीय निवासियों और पर्यावरण प्रेमियों ने मुख्यमंत्री और नगर आयुक्त से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है ताकि शेष बचे पेड़ों को बचाया जा सके और भविष्य में इस प्रकार की लापरवाही न दोहराई जाए। दो पेड़ों की यह "हत्या" केवल हरियाली की क्षति नहीं, बल्कि जीवन के आधारभूत स्तंभों पर हमला है। यह केवल अपराध नहीं, बल्कि एक चेतावनी है – यदि अब भी नहीं चेते, तो कल शायद सांस लेने के लिए हवा भी मयस्सर न हो।

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