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काल्पनिक फोटो
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
गाजियाबाद से एक बेहद चौंकाने वाली खबर सामने आई है जिसने आम लोगों के साथ-साथ पुलिस प्रशासन को भी सकते में डाल दिया है। मामला पुलिस विभाग की उस छवि को गहरी चोट पहुंचाता है, जिस पर जनता अपनी सुरक्षा और विश्वास टिका कर बैठती है। दरअसल, गाजियाबाद में तैनात एक सिपाही ही वाहन चोरी करने वाले गैंग का सरगना निकला। यह खुलासा होने के बाद पूरे जिले में पुलिस महकमे की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
सिपाही ही सरगना
जानकारी के मुताबिक, आरोपी सिपाही का नाम मनीष सिंह है, जो लोनी थाना क्षेत्र में तैनात था। बताया जाता है कि मनीष सिंह ने अपने एक रिश्तेदार को कार उपलब्ध कराने के लिए चोरी की साजिश रची। उसने अपने गिरोह के माध्यम से एक वाहन चोरी करवाया और उसे ऑर्डिनेंस फैक्ट्री परिसर में खड़ा करा दिया। चोरी की इस वारदात की जांच के दौरान जब पुलिस टीम मौके पर पहुंची तो मनीष सिंह ने अपने ही साथी सिपाहियों के साथ चतुराई भरा खेल खेला। उसने उन्हें चाय पिलाने के बहाने वहां से दूर ले जाकर चोरी की कार को मौके से हटवा दिया। इस चालाकी से उसने जांच को गुमराह करने की कोशिश की।
सनसनीखेज़ खुलासा
लेकिन अपराध चाहे कितना भी चतुराई से क्यों न रचा जाए, सच सामने आ ही जाता है। 1 सितंबर को हुई एक मुठभेड़ के दौरान वाहन चोरी करने वाले गैंग के कई सदस्य गिरफ्तार हुए। पूछताछ में जब गैंग के राज खुले तो मनीष सिंह का नाम बतौर सरगना सामने आया। इस खुलासे के बाद पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया और तुरंत ही आरोपी सिपाही को सस्पेंड कर दिया गया। हालांकि, सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब तक मनीष के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया गया है।यह भी सामने आया है कि यह पहला मौका नहीं है जब मनीष सिंह का नाम आपराधिक गतिविधियों में आया हो। वर्ष 2019 में भी वह जेल जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद उसे दोबारा सेवा में बहाल कर दिया गया। यही वजह है कि अब पुलिस की आंतरिक कार्यप्रणाली और जिम्मेदार अधिकारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर बार-बार अपराध में पकड़े जाने वाले सिपाही को क्यों बख्शा गया।
मचा हड़कंप
मनीष का यह प्रकरण पुलिस व्यवस्था की उस खामी को उजागर करता है, जिसमें विभागीय जांच और जवाबदेही का अभाव साफ दिखाई देता है। जिस पुलिस पर अपराधियों पर लगाम लगाने और जनता की सुरक्षा का दायित्व है, वहीं अगर उसके सिपाही खुद अपराधी बन जाएं तो आम नागरिकों का भरोसा कैसे कायम रह पाएगा?गाजियाबाद का यह मामला केवल एक सिपाही की करतूत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़े सिस्टम की कमजोरी को सामने लाता है। अब देखना यह है कि पुलिस प्रशासन इस पूरे प्रकरण में किस तरह की सख्त कार्रवाई करता है और क्या आरोपी सिपाही पर मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेजा जाता है या फिर मामला यूं ही दबा दिया जाएगा।इस पूरे घटनाक्रम ने न सिर्फ गाजियाबाद बल्कि पूरे प्रदेश में पुलिस की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा कर दिया है। जनता यह उम्मीद कर रही है कि इस मामले में निष्पक्ष और कड़ी कार्रवाई हो ताकि भविष्य में पुलिस बल की विश्वसनीयता बनी रहे और ऐसे उदाहरण दोहराए न जा सकें।