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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सत्ता में आने के बाद से अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई हुई है। प्रदेशभर में पुलिस ने इस नीति को लागू करते हुए सैकड़ों दुर्दांत अपराधियों को या तो जेल भेजा है या मुठभेड़ में परलोक पहुंचा दिया है, लेकिन गाजियाबाद जैसे बड़े और संवेदनशील जिले में इस नीति का प्रभाव कमजोर पड़ता दिख रहा है। कारण यह है कि अपराध के आंकड़े खुद पुलिस की कार्यवाही पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
बड़ी तादात में फोन बरामद
बुधवार को डीसीपी सिटी धवल जायसवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर खुलासा किया कि सर्विलांस के माध्यम से अब तक डेढ़ सौ मोबाइल फोन बरामद किए हैं। इन मोबाइलों को उनके असली स्वामियों को सौंपा गया। डीसीपी ने बताया कि ये मोबाइल फोन चोरी, लूट, स्नैचिंग या गुम होने के मामलों से जुड़े हुए थे। यह निश्चित रूप से पुलिस की सक्रियता का परिणाम है, लेकिन इसके साथ यह सवाल भी उठता है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर चोरी और लूट की घटनाएं हो ही क्यों रही हैं।
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गुमशुदगी में की जाती है रिपोर्ट दर्ज
यह तो केवल वे मामले हैं जिनकी रिपोर्ट दर्ज की गई। जबकि गाजियाबाद जैसे बड़े शहर में न जाने कितने ऐसे पीड़ित हैं जिनकी एफआईआर तक दर्ज नहीं होती। कई बार पुलिस शिकायतों को गुमशुदगी मानकर नजरअंदाज कर देती है या फिर मामले को सुलझा लिया गया बताकर बंद कर देती है। ऐसे में यह कहना कि अपराध का ग्राफ घटा है, तो यह वास्तविकता से कोसों दूर है।
अपराधी भयमुक्त या पुलिस सुस्त
गाजियाबाद पुलिस की ओर से आए दिन मुठभेड़ की खबरें आती रहती हैं। पुलिस दावा करती है कि बदमाशों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन इन मुठभेड़ों के बावजूद चोरी, लूट और स्नैचिंग की घटनाओं में कोई खास कमी नहीं आई है। यह इस बात का संकेत है कि अपराधी पुलिस के भय से मुक्त होकर सक्रिय हैं।
पुलिस गश्त बेहद जरूरी
दिल्ली से सटे इस शहर में हर दिन हजारों लोग नौकरी, व्यापार या पढ़ाई के लिए आते-जाते हैं। ऐसे में यहां की सुरक्षा व्यवस्था का मजबूत होना बेहद जरूरी है। लेकिन जब डीसीपी स्तर के अधिकारी खुद यह बताते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में मोबाइल चोरी या लूट के बाद बरामद हुए हैं तो यह साफ है कि अपराध नियंत्रण की दिशा में अभी बहुत काम बाकी है।