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Crime : बाइक-कार टकराने के मामूली विवाद ने लिया जातीय संघर्ष का रूप, गांव में तनाव

अक्सर कहा जाता है कि छोटी सी चिंगारी भी बड़ा विस्फोट कर सकती है। ऐसा ही कुछ गाजियाबाद के मसूरी थाने क्षेत्र के मसौता गांव में रविवार की देर शाम देखने को मिला। एक साधारण सा सड़क हादसा जातीय संघर्ष में बदल गया और गांव में तनाव की स्थिति पैदा हो गई।घटना

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Syed Ali Mehndi
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जातीय संघर्ष में घायल दलित

गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता 

अक्सर कहा जाता है कि छोटी सी चिंगारी भी बड़ा विस्फोट कर सकती है। ऐसा ही कुछ गाजियाबाद के मसूरी थाने क्षेत्र के मसौता गांव में रविवार की देर शाम देखने को मिला। एक साधारण सा सड़क हादसा जातीय संघर्ष में बदल गया और गांव में तनाव की स्थिति पैदा हो गई।घटना की शुरुआत शनिवार को हुई थी जब गांव के एक दलित युवक की बाइक राजपूत समाज के लोगों की कार से टकरा गई। टक्कर मामूली थी, लेकिन आरोप है कि इसी बात पर कार सवारों ने बाइक सवार युवक को थप्पड़ मार दिया। यही नहीं, जब युवक अपनी मां को साथ लेकर शिकायत करने पहुंचा तो मां और बेटे दोनों को बंधक बनाकर पीटने की बात भी सामने आई। इस घटना के बाद गांव का माहौल बिगड़ना तय था।

8 के खिलाफ मुकदमा दर्ज

पीड़ित पक्ष की तहरीर पर पुलिस ने आठ लोगों के खिलाफ विभिन्न धाराओं के साथ ही एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया। यहीं से मामला तूल पकड़ने लगा। मुकदमा दर्ज होने के बाद गांव में भीम आर्मी के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में जुटने लगे। यह जमावड़ा स्थानीय राजनीति और जातीय समीकरणों को हवा देने लगा। धीरे-धीरे यह विवाद आपसी झगड़े से बढ़कर जातीय संघर्ष का रूप ले बैठा।रविवार की शाम दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए। देखते ही देखते गांव की गलियां पत्थरबाजी और मारपीट के शोर से गूंज उठीं। दोनों तरफ से लाठियां चलीं और पत्थर बरसे। हालात बिगड़ते देख आस-पास के लोग दहशत में घरों में दुबक गए। कई लोग मामूली रूप से घायल भी हुए।

जमकर हुआ संघर्ष 

हालांकि पुलिस बल मौके पर पहुंचा और किसी तरह स्थिति को काबू में लिया गया। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए छह लोगों को हिरासत में ले लिया है। बावजूद इसके गांव में तनाव अब भी बना हुआ है।गौर करने वाली बात यह है कि शुरूआती दौर में पुलिस ने इस मामले की गंभीरता को नजरअंदाज कर दिया। यदि शनिवार की घटना के बाद गांव में पुलिस की पर्याप्त तैनाती की जाती तो शायद रविवार को पत्थरबाजी और मारपीट की नौबत ही न आती। स्थानीय लोग भी पुलिस की इस लापरवाही को खुलकर जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

राजनीतिक दल सक्रिय 

फिलहाल यह मामला सिर्फ कानून-व्यवस्था तक सीमित नहीं रहा है। राजनीतिक दलों और संगठनों की सक्रियता ने इसे और जटिल बना दिया है। जातीय पहचान और राजनीतिक हितों के बीच फंसा यह विवाद अब केवल एक बाइक-कार की टक्कर का मसला नहीं रहा, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक टकराव का प्रतीक बन गया है।पुलिस प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती अब गांव में शांति बहाल करना है। प्रशासनिक अधिकारी लगातार दौरे कर रहे हैं और गांव के दोनों समुदायों से बातचीत करके माहौल सामान्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

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जातीय संघर्ष 

मसौता गांव की यह घटना समाज के सामने कई सवाल खड़े करती है। आखिर क्यों छोटे-छोटे विवाद जातीय और सामुदायिक संघर्ष में तब्दील हो जाते हैं? क्यों राजनीति ऐसे मामलों को सुलझाने की जगह भड़काने का माध्यम बन जाती है? और सबसे अहम सवाल – क्या पुलिस व प्रशासन समय रहते कड़े कदम नहीं उठा सकता ताकि हालात बिगड़ने से पहले संभाले जा सकें?बहरहाल, अभी हालात नियंत्रण में बताए जा रहे हैं, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि मसौता गांव की इस घटना ने फिर से साबित कर दिया कि छोटी-सी अनबन भी यदि समय रहते न सुलझाई जाए तो वह समाज में बड़ी दरार का कारण बन सकती है।

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