/young-bharat-news/media/media_files/2025/08/09/untitled-design_20250809_103959_0000-2025-08-09-10-41-23.jpg)
पीड़िता की गुहार
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
थाना मुरादनगर क्षेत्र से एक बार फिर इंसाफ की राह में प्रशासनिक लापरवाही का दर्दनाक चेहरा सामने आया है। यहां एक रेप पीड़िता, जो पहले ही मानसिक और शारीरिक पीड़ा से गुजर रही है, अब सरकारी सिस्टम की उदासीनता का शिकार बन रही है। मामला संजय नगर स्थित संयुक्त जिला अस्पताल का है, जहां पीड़िता का समय पर अल्ट्रासाउंड न किए जाने से उसके केस पर गंभीर असर पड़ने का खतरा है।जानकारी के अनुसार, आरोपी ने पीड़िता को नशीला पदार्थ खिलाकर उसके साथ बलात्कार किया था। इस तरह के मामलों में मेडिकल जांच और साक्ष्यों का समय पर संकलन बेहद जरूरी होता है, ताकि आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत पेश किए जा सकें। पुलिस ने भी डॉक्टर से आग्रह किया कि अल्ट्रासाउंड तुरंत किया जाए, क्योंकि देरी से महत्वपूर्ण सबूत नष्ट हो सकते हैं, लेकिन अस्पताल में मौजूद लेडी डॉक्टर ने समय का हवाला देते हुए जांच करने से साफ इनकार कर दिया।
घटनाक्रम
पीड़िता शुक्रवार सुबह से थाने में अपने बयान दर्ज कराने में व्यस्त रही। लगभग पूरे दिन की कार्यवाही के बाद वह करीब 2:00 बजे संजय नगर स्थित संयुक्त जिला अस्पताल पहुंची। वहां डॉक्टर ने कह दिया कि 2:00 बजे के बाद अल्ट्रासाउंड नहीं किया जाएगा। डॉक्टर ने यह भी साफ कर दिया कि अब जांच सोमवार को ही होगी, क्योंकि शनिवार को रक्षाबंधन की छुट्टी है और रविवार को अवकाश रहेगा। इस फैसले से पीड़िता और उसके परिजनों पर मानो पहाड़ टूट पड़ा। दो दिन की देरी का मतलब है कि मेडिकल साक्ष्य कमजोर हो सकते हैं, खासकर तब जब मामला नशीला पदार्थ खिलाने और यौन शोषण से जुड़ा हो। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे मामलों में तुरंत जांच न होना, न्याय प्रक्रिया को कमजोर कर देता है और आरोपी के बच निकलने के अवसर बढ़ा देता है।
सरकारी तंत्र की उदासीनता
मामले में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पुलिस के अनुरोध के बावजूद डॉक्टर ने जांच करने से इनकार कर दिया। एक ओर सरकार और प्रशासन महिलाओं की सुरक्षा और त्वरित न्याय की बातें करते हैं, तो दूसरी ओर जमीन पर स्थिति बिल्कुल उलट नजर आती है। यह केवल एक महिला की नहीं, बल्कि पूरे न्याय तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है।पीड़िता ने अपनी फरियाद सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंचाई है। अपने प्रार्थना पत्र में उसने स्पष्ट लिखा है कि यह देरी उसके केस को कमजोर कर देगी और आरोपी को बच निकलने का मौका मिल जाएगा। उसने मांग की है कि दोषी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की जाए और मेडिकल जांच में किसी भी तरह की देरी न हो।
सम्बंधित कानून और नियम
भारतीय दंड संहिता (IPC) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत, रेप पीड़िता की मेडिकल जांच तुरंत और मुफ्त करने का प्रावधान है।
CrPC की धारा 164A: किसी भी बलात्कार पीड़िता की मेडिकल जांच जल्द से जल्द और बिना अनावश्यक देरी के की जानी चाहिए।
धारा 166A IPC: किसी सरकारी कर्मचारी (जिसमें डॉक्टर भी शामिल हैं) द्वारा ऐसे मामलों में कर्तव्य पालन में लापरवाही या मना करने पर यह एक दंडनीय अपराध है, जिसकी सजा एक साल से लेकर तीन साल तक हो सकती है।
निर्भया एक्ट, 2013 के बाद संशोधित कानूनों के तहत, मेडिकल जांच में देरी को गंभीर लापरवाही माना जाता है, और इसका सीधा असर केस की मजबूती पर पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश: अदालत ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि पीड़िता का बयान और मेडिकल जांच, FIR दर्ज होते ही प्राथमिकता के आधार पर की जानी चाहिए।
न्याय की राह में रुकावटें
यह मामला केवल एक अस्पताल की लापरवाही का नहीं, बल्कि उस सोच का भी है जिसमें पीड़ित को सहानुभूति और त्वरित मदद के बजाय नियम-कायदों के बोझ तले दबा दिया जाता है। ऐसे मामलों में हर मिनट कीमती होता है, लेकिन यहां दो दिन की देरी के लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया गया।
समाज और प्रशासन के लिए सबक
यह घटना बताती है कि जब तक प्रशासनिक व्यवस्था में संवेदनशीलता और जवाबदेही नहीं आएगी, तब तक महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी लाना मुश्किल है। सरकारी अस्पतालों में पीड़ित महिलाओं के लिए अलग और त्वरित जांच व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि किसी भी कानूनी प्रक्रिया में साक्ष्यों के नष्ट होने का खतरा न रहे। गाजियाबाद की यह घटना न केवल प्रशासन की उदासीनता को उजागर करती है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती है कि क्या हमारे सिस्टम में पीड़ित के दर्द से ज्यादा महत्व ‘दफ्तर के समय’ को दिया जाता है? अगर जवाब ‘हां’ है, तो यह पूरे समाज के लिए शर्मनाक है।
/young-bharat-news/media/agency_attachments/2024/12/20/2024-12-20t064021612z-ybn-logo-young-bharat.jpeg)
Follow Us
/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/11/dXXHxMv9gnrpRAb9ouRk.jpg)