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Cyber crime : जामताड़ा से लेकर गाजियाबाद तक फैला साइबर अपराध का जाल

डिजिटल युग में जहां तकनीक ने जीवन को सरल और सुविधाजनक बनाया है, वहीं साइबर अपराधियों ने इसका दुरुपयोग कर आम नागरिकों की मेहनत की कमाई को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। गाजियाबाद, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का एक प्रमुख जिला है, अब तेजी से साइबर ठगी का

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Syed Ali Mehndi
साइबर अपराधी

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गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता 

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डिजिटल युग में जहां तकनीक ने जीवन को सरल और सुविधाजनक बनाया है, वहीं साइबर अपराधियों ने इसका दुरुपयोग कर आम नागरिकों की मेहनत की कमाई को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। गाजियाबाद, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का एक प्रमुख जिला है, अब तेजी से साइबर ठगी का नया गढ़ बनता जा रहा है। एक वर्ष के भीतर यहां दर्ज हुए मामलों से स्पष्ट है कि अपराधी अब केवल झारखंड के कुख्यात जामताड़ा जैसे इलाकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि शहरी और विकसित क्षेत्रों में भी सक्रिय हैं।

 448 केस, 109 करोड़ ठगे 

गाजियाबाद साइबर क्राइम थाने में दर्ज रिपोर्टों के अनुसार, पिछले एक वर्ष में जिले में 448 साइबर धोखाधड़ी के मामले दर्ज हुए हैं। इन मामलों में कुल ठगी गई राशि लगभग 109 करोड़ रुपये रही, जिसमें से 26.48 करोड़ रुपये पुलिस द्वारा पीड़ितों को वापस कराए गए हैं। यह आंकड़ा न केवल साइबर अपराध की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि पुलिस की तत्परता और तकनीकी दक्षता का भी परिचायक है।

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 शेयर ट्रेडर्स सावधान 

साइबर ठगी के मामलों में सबसे अधिक धोखाधड़ी शेयर ट्रेडिंग फ्राड के माध्यम से की गई है। जनवरी 2022 से अप्रैल 2023 के बीच इस श्रेणी में 244 मामले दर्ज हुए, जिसमें 77.36 करोड़ रुपये की ठगी की गई। इन मामलों में खासतौर पर महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को टारगेट किया गया, जिन्हें जल्दी और अधिक मुनाफे का लालच देकर फर्जी निवेश योजनाओं में फंसाया गया।

 फ्रॉड के नए तरीके 

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इसके अलावा टेलीग्राम टास्क फ्रॉड के 99 मामलों में 15.98 करोड़ रुपये, डिजिटल अरेस्ट के 30 मामलों में 5.34 करोड़ रुपये, और डुप्लीकेट ईमेल या अकाउंट हैकिंग के 3 मामलों में 82.85 लाख रुपये की ठगी की गई। इसी तरह क्रिप्टो ट्रेडिंग फ्रॉड, फोन हैकिंग, लोन फ्रॉड, सेक्सटॉर्शन और इंश्योरेंस पॉलिसी फ्रॉड जैसे मामलों में भी लाखों रुपये की चपत लगी है।

हिडन पर रैकेट सक्रिय 

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन अपराधों की जड़ें केवल दूरदराज के क्षेत्रों में नहीं हैं, बल्कि इंदिरापुरम, वसुंधरा, राजनगर एक्सटेंशन जैसे गाजियाबाद के पॉश और शहरी इलाकों में भी ऐसे रैकेट सक्रिय हैं। ये गिरोह सोशल मीडिया, फर्जी वेबसाइटों और मोबाइल ऐप्स के माध्यम से लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं। टेलीग्राम, व्हाट्सएप, और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म इन अपराधों का नया माध्यम बन चुके हैं।

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 प्रतिदिन 5.50 लाख की वसूली

गाजियाबाद पुलिस का दावा है कि वह रोजाना औसतन 5.5 लाख रुपये की राशि पीड़ितों को वापस करा रही है। साइबर क्राइम थाना खुलने से इस दिशा में कार्यवाही तेज हुई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जनता को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है। अनजान लिंक पर क्लिक न करना, संदिग्ध कॉल्स से बचना और वित्तीय लेनदेन करते समय सुरक्षा मानकों का पालन करना अत्यंत जरूरी है।

 सावधानी जरूरी 

आज साइबर अपराध केवल एक तकनीकी चुनौती नहीं है, बल्कि यह समाज की आर्थिक सुरक्षा पर भी खतरा बन चुका है। यदि समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह आने वाले वर्षों में और गंभीर रूप ले सकता है। समाज, प्रशासन और तकनीकी विशेषज्ञों को मिलकर इस डिजिटल अपराध के खिलाफ एकजुट प्रयास करने होंगे, तभी "डिजिटल इंडिया" का सपना सुरक्षित और सशक्त हो सकेगा।

 

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